Tuesday, May 20, 2025
ArticlesGarhwalIndiaUttarakhand

चमोली में जन्मे ख्याति प्राप्त वनस्पति विज्ञानी आदित्य नारायण पुरोहित

 -लेखन/संकलन: त्रिलोक चन्द्र भट्ट
30 जुलाई सन्‌ 1940 को चमोली जिले के किमली गाँव में जन्मे ख्याति प्राप्त वनस्पति विज्ञानी प्रोफेसर आदित्य नारायण पुरोहित ने भारत के मध्य हिमालयी क्षेत्र मे वनस्पति शोधन, संवर्धन और संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों के सदस्य तथा प्रसिद्ध पुस्तक ‘ब्लौसमिंग गढ़वाल हिमालय' के रचयिता प्रोफेसर पुरोहित 30 से अधिक शोधार्थियों का पी0एच0डी0 में निर्देशन कर चुके हैं। इनके 120 शोध लेख प्रकाशित हो चुके हैं। 
वनस्पति विज्ञानी आदित्य नारायण पुरोहित की इन्टरमीडिएट से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई नैनीताल में हुई। सन्‌ 1961 से 1955 के मध्य इन्होंने इन्टरमीडिएट, बी0एस0सी0 और ‘प्लान्ट पैथोलॉजी' से एम0एस0सी0 किया। ये अत्यन्त मेधावी व प्रतिभावान विद्यार्थी थे। एम0एस0सी0 करते हुए इन्हें भारत सरकार की बार्डर स्कालरशिप प्राप्त हुई।  इन्होंने पंजाब विश्व विद्यालय चण्डीगढ़ से प्लान्ट फिजियोलौजी (पादप शरीर क्रिया विज्ञान) में शोध कर ‘मौर्फोफिजियोलौजिकल स्टडीज आफ दि शूट एपेक्स आफ कैंजिस्टेमन वाइमीनलिस' विषय के अन्तर्गत प्रोफेसर के0के0 नन्दी, एफ0एन0ए0 के निर्देशन में ‘डाक्टरेट' की उपाधि प्राप्त की। शोध की अवधि में भी इन्हें पंजाब विश्व विद्यालय से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई।
कुछ लोगों के हाथों ईश्वर को कुछ विशिष्ट कराना होता है इसलिए उनके हाथों सफलता की कुंजी थमा देता है। वे लोग जिस कार्य में हाथ डालते हैं उन्हें सफलता मिलती चली जाती है। अपनी मेहनत और लगन के बल पर वे जगत को कुछ नया दे जाते हैं। आदित्य नारायण पुरोहित ने भी पादप रोग विज्ञान में नई-नई खोजें करके पादप विज्ञान को अपना ऋणी बना लिया। पादप रोग विज्ञान और पादप शरीर क्रिया विज्ञान में डिग्रियाँ लेने के बाद इन्होंने कभी रुकने का नाम नहीं लिया और लगातार सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते चले गये। शीघ्र ही इन्हें मनमाफिक काम भी मिल गया और सन्‌ 1961 में  देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान में शोध् सहायक, पादप शरीर क्रिया विज्ञान (प्लान्ट फिजियोलौजी) के रूप में कार्य प्रारम्भ किया। कुछ समय यहाँ काम करने के बाद 1965-66 में पंजाब विश्व विद्यालय चण्डीगढ़ के वनस्पति विज्ञान विभाग में शोध अधिकारी और तीन वर्षों तक इसी विभाग में प्रवक्ता भी रहे। 
तत्पश्चात सन्‌ 1969 से 1972 तक शिमला के आलू शोध संस्थान में पादप शरीर क्रिया विज्ञानी रहे। निरन्तर आगे बढ़ने की इच्छा 1973 से 1975 तक उन्हें ब्रिटिश कोलम्बिया विश्व विद्यालय, वेंकुवर व कनाडा ले गई। इस अवधि में प्रोफेसर पुरोहित वनस्पति विज्ञान विभाग में शोध सहायक रहे। स्वदेश वापिस लौटने पर एक वर्ष तक नार्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी शिलाँग में प्लान्ट फिजोयोलौजी के रीडर के रूप में कार्य किया। इसके बाद 1976 से 1985 तक करीब 10 वर्ष का समय इन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के वनस्पति विज्ञान विभाग में रीडर और विभागाध्यक्ष के रूप में बिताया। इसके बाद हाई एल्टीट्यूड प्लान्ट फिजियोलौजी रिसर्च सेन्टर में प्रोफेसर और डायरेक्टर के रूप में पाँच वर्ष का कार्यकाल भी प्रो0 पुरोहित ने यहीं बिताया। 1990 मे अल्मोड़ा स्थित पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भारत सरकार की एक स्वायत्त संस्था जी0बी0 पन्त इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरनमेन्ट एण्ड डवलपमेन्ट कोसी-कटारमल में डायरेक्टर नियुक्त हुए। 1995 तक इन्होंने डायरेक्टर के रूप में बखूबी अपने दायित्वों का निर्वाह किया। अगस्त 1995 से इन्होंने गढ़वाल विश्व विद्यालय में प्रोफेसर एवं डायरेक्टर के रूप में पुनः कार्य प्रारम्भ किया।
देश के लिए की गयी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए 1997 में ‘पदमश्री' से सम्मानित प्रो0 आदित्य नारायण पुरोहित देश विदेश की कई संस्थाओं के अध्यक्ष, संयोजक, और सदस्य हैं। वे अमेरिकन सोसाइटी फॉर प्लान्ट फिजियोलौजी, प्लान्ट फिजियोलौजी सोसाइटी जापान तथा इण्डियन सोसाइटी फॉर प्लान्ट फिजियोलौजी तथा प्लान्ट ब्रायो बायोकेमिकल सोसाइटी सहित कई अर्न्तराष्ट्रीय व राष्ट्रीय संस्थाओं के सदस्य हैं। इन्हें इण्डियन नेशनल साइंस एकेडेमी, नेशनल एकेडेमी ऑपफ साइंसेज इण्डिया, इण्डियन एकेडमी ऑफ साइंसेज की फैलोशिप प्राप्त है। इन्टरनेशन जर्नल आफ सस्टेनेबिल फारेस्ट्री में 1991 से सम्पादक मण्डल के सदस्य रहे प्रो0 पुरोहित इस्टीट्यूट ऑफ बायोलौजी, लन्दन के 1975 से निर्वाचित सदस्य भी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!