Thursday, November 14, 2024
Haridwar

अखाड़ा परिषद का पत्र कहीं न्यायालय की अवमानना तो नहीं

हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (निरंजनी गुट) की ओर से पत्र जारी कर श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण के विवाद को हवा देने का कार्य किया है। सोशल मीडिया पर जारी कथित पत्र जहां समर्थन बढ़ाने का कार्य कर रहा है वहीं पत्र द्वारा न्यायालय के आदेश की भी अवहेलना की जा रही है।


श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के दुर्गादास गुट द्वारा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (निरंजनी गुट) को दिए पत्र में श्रीमहंत रघुमुनि, मुकामी महंत अग्रदास व मुकामी महंत दामोदर द्वारा को अखाड़े की परम्पराओं व मर्यादाओं के खिलाफ कार्य करने पर अखाड़े से वहिष्कृत करने की बात कही गई है। उसी पत्र का हवाला देते हुए अखाड़ा परिषद ने भी उक्त तीनों महंतों को अखाड़ा परिषद से वहिष्कृत करने की बात कहते हुए पत्र जारी किया है। पत्र 4 अक्टूबर को जारी किया गया है।


इस संबंध में श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के श्रीमहंत रघुमंनि महाराज का कहना है कि अखाड़ा परिषद से वहिष्कृत किए जाने की बात ही हास्यास्प्रद है। कहा कि जिस परिषद का हम हिस्सा ही नहीं हैं, उससे वहिष्कृत किया जाना समझ से परे है। उनका कहना था कि हमारा समर्थन ( निर्वाणी गुट) को था, है और रहेगा। कहाकि अखाड़े से वहिष्कृत किए जाने के संबंध में माननीय न्यायलय द्वारा स्टे दिया गया है। साथ ही उनके अधिकारों को यथावत बने रहने की आदेश में बात कही गई है। ऐसे में उनको वहिष्कृत करने और अखाड़े की परम्पराओं के विरूद्ध कार्य करने जैसे गंभीर आरोप लगाना न्यायालय की अवमानना है। जरूरत पड़ने पर वह पुनः न्यायालय की शरण ले सकते हैं।


वहीं बड़ा सवाल यह कि अखाड़ा परिषद की नियमावली के मुताबिक अखाड़े में पदेन पदाधिकारी ही अखाड़ा परिषद का पदाधिकारी हो सकता है। जबकि अखाड़ा परिषद (निरंजनी गुट) में महामंत्री अखाड़े में किसी भी पद पर नहीं हैं। ऐसे में अखाड़ा परिषद की नियमावली के मुताबिक महामंत्री पद पर बैठा हुआ व्यक्ति ही पद के योग्य नहीं है। ऐसे अयोग्य व्यक्ति को किसी अन्य को वहिष्कृत करने संबंधी पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। नियमानुसार नियम व कानून की दुहाई देने वाले संतों व अखाड़ा परिषद को स्वंय अयोग्य महामंत्री के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए।


वहीं दूसरी ओर परिषद की नियमावली के मुताबिक परिषद में अध्यक्ष या महामंत्री से एक सन्यासी तो दूसरा बैरागी या उदासीन सम्प्रदाय का संत होना चाहिए। जबकि वहिष्कृत करने वाले महामंत्री की परिषद में ऐसा नहीं है। इस कारण भी किसी को वहिष्कृत करने का अधिकारी कैसे हो सकता है। इसके साथ ही परिषद में अध्यक्ष, महामंत्री, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष व प्रवक्ता पंाच पदों का होना जरूरी है। जबकि यहां केवल दो ही पदाधिकारियों की खिचड़ी पक रही है।


अब देखना दिलचस्प होगा की श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के श्रीमहंत रघुमुनि महाराज इसके खिलाफ कोर्ट की शरण लेते हैं या कोई अन्य कदम उठाते हैं। कुल मिलाकर पत्रबाजी स्वंय को श्रेष्ठ साबित करने और अपना समर्थन अधिक साबित करने की रणनीति के सिवा और कुछ नहीं है। संतों में स्ंवय को श्रेष्ठ साबित करने की चाह काष्ठ में दीमक के समान कही जा सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!