प्रयाग कुंभ में सम्मिलित होने वाले अखाड़ों की सरकार से पांच करोड़ रुपए अनुदान की मांग
-डॉ० रमेश खन्ना
एक चौंकाने वाला समाचार सामने आया है। प्रयागराज में आगामी पूर्ण कुंभ में सम्मिलित होने वाले अखाड़ों ने सरकार से पांच करोड़ रुपए अनुदान राशि देने की मांग की है। सभी प्रकार से संपन्न अखाड़ों की इस प्रकार की मांग अचंभित करती है। अखाड़ों का इतिहास बताता है कि पूर्व में राजा-महाराजा एवं धनाढ्य समाज भी समय समय पर बहुत उदारता के साथ न केवल धन बल्कि भू-दान भी इन्हें करते रहते थे।
150-200 वर्ष पूर्व तक अखाड़े देश की आंतरिक एवं बाहरी सुरक्षा के लिए अपना योगदान देने के लिए तैयार रहते थे। सेना की तरह अखाड़ों में भी अस्त्र-शस्त्र चलाने का अभ्यास होता है और हथियारों का अच्छा-खासा ज़ख़ीरा उपलब्ध रहता है। अखाड़ों में हथियारों के रखरखाव वाले स्थान को छावनी कहा जाता है
धीरे-धीरे समय बीतने के साथ अखाड़ों के संचालन में भी परिवर्तन सामने आने लगे। धन एवं भूमि की कमी न होने के कारण ज़मीनों से आर्थिक लाभ लेने के लिए व्यवसायिक गतिविधियां संचालित की जाने लगीं। अखाड़ों की भूमि पर किराए के लिए दुकानों का निर्माण होने लगा। सिलसिला आगे बढ़ा किराये के लिए फ्लैटों का निर्माण शुरू हो गया। अब तो बताया जा रहा है कि होटल भी बन रहे हैं। अखाड़ों की ज़मीन भी चुपचाप इधर-उधर हो रही है।
व्यवसाय की तरफ रुझान बढ़ने से अखाड़ों में राजनीति पैर पसारने लगी है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। आज की राजनीति अर्थ सिद्धांत पर टिकी हुई है। आज के राजनीतिज्ञ अर्थ को अनर्थ बनाने की कला में माहिर हैं। इस तरह के निर्णयों से धीरे-धीरे गलत संदेश निकल रहे हैं। आध्यात्मिकता एवं व्यवसाय परस्पर विरोधी विचारधाराएं हैं। व्यवसाय सात्विक चिंतन को प्रभावित करता है। अखाड़ों से जुड़े संत-महात्माजन अब वैभव प्रदर्शन के द्वारा अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लिप्त हैं। बेशकीमती ज़ेवर जवाहारात धारण करना। अपने साथ । महंगी लक्जरी गाड़ियों के काफिले के साथ सफर करना। अपने साथ शिष्यों एवं अनुयायियों की फौज लेकर निकलना। यह सब तामझाम है, दिखावा है, दान में मिले धन का निष्ठुर दुरुपयोग है। हरिद्वार में अखाड़ों के पास आलीशान हवेलियां आधुनिक फर्नीचर से सुसज्जित हैं।
मेरा व्यक्तिगत दृढ़ मत है कि हमारे देश में सबसे अधिक भ्रष्टाचार धार्मिक गतिविधियों से जुड़ा हुआ है। आयकर से बचने वालों को धार्मिक संस्थाएं फर्जी रसीद उपलब्ध कराती हैं। यह संस्थाएं किसी प्रकार का टैक्स नहीं देती हैं।
हरिद्वार क्षेत्र के अखाड़ों से समय-समय पर आपसी खूनी संघर्ष के अपुष्ट समाचार भी सामने आते रहे हैं। इनका कारण सम्पत्ति विवाद, उत्तराधिकारी विवाद और महिलाओं की अखाड़ों के साथ दिनों-दिन बढ़ती नजदीकियां भी हैं। कुंभ/अर्द्ध कुंभ अवसरों पर अखाड़ों में नयी भर्ती की भी परंपरा है। अब समय बदल चुका है ज्यादातर युवा अब शिक्षित हैं एवं धार्मिक कुरुतियों को भी समझते हैं। वो साधु बनने या बाबाओं के पिछलग्गू नहीं बनना चाहते। परंतु कम पढ़े-लिखे या बेरोज़गार या अपराधिक पृष्ठभूमि के युवा इन अखाड़ों में से जुड़ जाते हैं। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति का उनका कोई उद्देश्य नहीं होता। ऐसे युवाओंं को कुछ संघर्ष किए बगैर जीवनयापन की सुविधाएं इन अखाड़ों मिल जाती हैं।
कुछ अखाड़ो में सनातन धर्म को खण्डित करने वाले कुछ ऐसे काम होते हैं जिसका मैं जिक्र करना उचित नहीं समझता
विगत वर्ष 2021 के कुम्भ में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा अखाड़ो को एक-एक करोड रुपए की राशि प्रदान की गई।
उत्तराखण्ड एक गरीब राज्य है यहां के युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं, सरकार को इस पर सोचना चाहिए।
हरिद्वार में यदि कुछ अखाड़ो को छोड़ दिया जाए तो इन राईस अखाड़ो ने उत्तराखण्ड की जनता के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज व् अस्पताल की स्थापना पर कभी विचार नहीं किया यह मात्र अपने राजशाही थाट, वैभव व धन कमाने तक ही सीमित है।
मेरा किसी भी राजनैतिक दल के प्रति कोई विशेष लगाव नहीं है। लेकिन सत्तधारी दल के कार्यकलापों का विश्लेषण करना मेरा शौक है चाहे मैं इसे किसी के साथ शेयर न करूं। मेरा अनुभव बताता है कि पिछले दस ग्यारह वर्षों के दौरान धर्मांधता में काफी बढ़ोतरी हुई है। धर्म की राजनीति करने से भ्रष्टाचार बढ़ा है जबकि प्रधानमंत्री जी ने भ्रष्टाचार कम करने का वायदा किया था। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है युवा पीढ़ी अब सबसे अधिक हतोत्साहित है। रोज़गार हैं नहीं और धार्मिक आडंबर तथा पाखंड चरम पर हैं।