Tuesday, October 15, 2024
ArticlesIndiaUttarakhand

एवरेस्ट पर तिरंगा लहराने वाली भारत की प्रथम महिला बछेन्द्री पाल

पर्वतारोहण के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित नाम, युवाओं के कदमों की स्फूर्ति व ‘हिमालय पुत्री के नाम से विख्यात बछेन्द्री पाल ने विश्व के सर्वाेच्च एवरेस्ट पर्वत शिखर पर आरोहण करने वाली भारत की पहली और विश्व की चौथी महिला होने का कीर्तिमान स्थापित कर पूरे विश्व के सामने भारत का मस्तक गर्व से ऊँचा करवाया है।  

लेखन/संकलन : त्रिलोक चन्द्र भट्ट

24 मई 1954 को जन्मी बचेन्द्री पाल पाँच भाई-बहनों में तीसरे नम्बर पर थी। एक भाई और बहन इनसे बड़े और एक बहन और भाई इनसे छोटे थे। बचेन्द्री का बड़ा भाई बचन सिंह सीमा सुरक्षा बल में सब इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हुआ। उसने उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से प्रारंम्भिक और उच्च श्रेणी के कोर्स पूरे किये थे। पर्वतारोहण में विशेष रूचि के कारण वह छोटे भाई राजू से पर्वतारोहण जैसे बाहरी कामों में भाग लेने के लिए कहता रहता था। इस बात को लेकर बचेन्द्री पाल को क्रोध् आता था और यह मन ही मन यह सोचती रहती ‘राजू की क्यों, मैं क्यों नहीं पर्वतारोहण का कोर्स कर सकती?श् उसने अपने बड़े भाई को पर्वतारोहण के जोखिमपूर्ण कार्यों को करते देखकर यह निश्चय किया कि मैं पाल परिवार में किसी से पीछे नहीं रहूँगी और न केवल सबकी तरह साधारण रहूँगी बल्कि वह सब कुछ करूँगी जो लड़के करते हैं।
बचपन से ही शरारती, व तेज-तर्रार बछेन्द्री की बालपन की नटखट शरारतों से तंग आकर एक दिन उसके पिताजी ने पूजा में व्यवधन होने के कारण उसको धक्कान दे दिया जिससे वह ढलान से लुढ़क पड़ी लेकिन नीचे गिरने से पहले ही उसके हाथों में क्षाड़ियाँ आ गई और वह गिरने से बच गयी। बचपन के इस गिरने और सँभलने की प्रक्रिया ने उसे हिम्मती और निडर बना दिया। यहाँ से शुरू हुए इस निर्भीकता के सपफर ने उसे जंगलों, पहाड़ों और खंदकों में बेधड़क अकेले घूमने की हिम्मत दे दी।
बुलन्द हौंसलों वाली यह हिमालय पुत्री व बचपन की शरारती बालिका पत्र-पत्रिकाओं में तत्कालीन प्रधनमंत्री इंदिरा गाँधी के चित्र देखकर उनसे मिलने, सड़क पर गुजरती कार को देखकर बड़ी होने पर कार खरीदने और हवाई जहाज अथवा हेलीकॉप्टर को देखकर उसमें उड़ान भरने की केवल कल्पनाओं तक ही सीमित नहीं रही अपितु कठिन परिश्रम से बचपन में देखे सपनों को अपने जीवन में साकार कर दिखाया। हालांकि बचपन में भाई-बहनों के साथ होने वाली इन बातों को सुनकर वे जब बचेन्द्री की खिल्ली उड़ाते थे तो वह ऊँची आवाज में यही चिल्लाती थी कि ‘इन्तजार करो मैं तुम्हें सब-कुछ कर दिखा दूँगी।श्
पाँच साल की उम्र में बचेन्द्री ने ‘डुन्डा-हरसिल जूनियर हाई स्कूलश् में प्रवेश लिया। ये अपनी कक्षा में सबसे शरारती होते हुए भी पढ़ाई-लिखाई में भी तीक्ष्ण बुद्धि रखती थी। सर्दियों में यह विद्यालय डुन्डा में चलता था और गर्मियों में हरसिल में स्थानान्तरित हो जाता था।
आर्थिकाभाव के कारण इनका पालन-पोषण गरीबी में हुआ। आठवीं कक्षा पास करने के बाद इनके पिताजी ने इनको आगे पढ़ाने में अपनी असमर्थता दिखाई, लेकिन उन्होंने निश्चय किया कि वे उच्च शिक्षा लेकर आगे कुछ करके दिखायेंगी। अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए ये देर रात तक पढ़ती थी। यहाँ तक कि घर से पुस्तकों का खर्चा न मिलने के कारण ये अपने मित्रों से किताबें उधर लेकर पढ़ती थी। इतना ही नहीं अपने इरादों में भी पहाड़ सी ऊँचाई रखने वाली बचेन्द्री ने खर्च चलाने के लिए सिलाई का काम सीखा। ये एक दिन में सलवार कमीज सिलकर पाँच छः रूपये रोज कमा लेती थी। घर-परिवार, और पढ़ाई का कार्य करते हुए भी ये खेल-कूद में सबसे आगे रहती थी। गोला पफेंक और भाला पफेंक आदि में इन्होंने अनेक पुरस्कार जीते। बचेन्द्री ने विज्ञान विषयों के इण्टर उत्तीर्ण किया। बी0ए0 में संस्कृत जैसा कठिन विषय लेकर इन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण की। डी0ए0वी0 कॉलेज देहरादून से संस्कृत में ही एम0ए0 किया। इसके बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर से बी0एड0 किया। तदनन्तर इन्होंने पर्वतारोहण के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया। इन्होंने अध्यापिका पद के लिए आवेदन किया लेकिन प्राइमरी और कम वेतन मिलने के कारण इन्होंने ये ऑफर स्वीकार नहीं किये और नेहरू पर्वतारोण संस्थान में ट्रेनिंग लेनी शुरू की।
बचेन्द्री पाल ने सन्‌ 1981-82 में उत्तरकाशी के नेहरू इंस्टीयूट ऑफ माउन्टेनयरिंग से बेसिक और एडवांस माउन्टेनयरिंग कोर्स उत्तीर्ण कर 6, 387 मीटर ऊँची माउण्ट काला नाग चोटी फतह की। व 6, 672 मीटर ऊँची गंगोत्री-1 और 5, 819 मीटर रूदगैरा तथ माणा चोटियों के त्रि-अभियान दलों की सदस्या रही। 23 मई 1984 को 29028 फीट ऊँचे एवरेस्ट पर विजय पताका फहराई। सन्‌ 1986 में 6, 380 मीटर ऊँची केदारनाथ चोटी के पर्वतारोही दल की नायक रही। इसी वर्ष इन्होंने यूरोप के सर्वाेच्च शिखर 15, 782 मीटर ऊँचे माउण्ट ब्लांक पर्वत शिखर पर सपफल आरोहण किया। मई 1986 में ही इन्होंने पर्वतारोहण के अध्ययन के लिए प्रफान्स, स्वीटजरलैंड, पश्चिम जर्मनी, आस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड आदि देशों की यात्राएँ की। तदनन्तर भारत की प्रमुख औद्योगिक कम्पनी ‘टाटाश् द्वारा 1988-89 में प्रायोजित 22, 744 फीट ऊँचे श्रीकैलाश, 7, 756 मीटर ऊँचे कामेट और 7, 735 मीटर अबिगामिन पर्वत पर आरोहण करने वाले पर्वतारोही दल का नेतृत्व किया। उन्होंने 1990 में न्यूजीलेन्ड के रूआपेह, अर्नस्लो तथा आग्रीयस पर्वत शिखरों पर सफल आरोहण कर अपनी बुलन्दी और हौंसलों की छाप छोड़ी तथा मई के महिने में चार विभिन्न शहरों में पर्वतारोहण पर व्याखयान दिये। उन्होंने न्यूजीलैन्ड की शोटोवर नदी में 14 किलोमीटर की राफ्ंिटग भी की। भारत वापसी पर सितम्बर 1991 में कामेट और 25, 350 पफीट ऊँचे अबिगामिन पर्वत शिखरों पर महिलाओं के प्री-एवरेस्ट सलेक्शन एक्सपीडिशन तथा 24,686 पफीट मामोस्टाँग काँगड़ी पर्वत शिखर दूसरे प्री-एवरेस्ट एक्सपीडिशन का नेतृत्व किया। सन्‌ 1992 में टाटा कम्पनी द्वारा प्रायोजित माउण्ट शिवलिंग एक्सपीडिशन का भी इन्होंने नेतृत्व किया। इस वीरबाला को 1993 में उस भारत-नेपाल संयुक्त महिला एवरेस्ट अभियान दल का नेतृत्व करने का गौरव भी मिला जिस अभियान दल में 07 महिलाओं सहित 18 सदस्यों ने एवरेस्ट विजय की असाधरण सपफलता का विश्व रिकार्ड कायम किया। अपने साहस और दृढ़ संकल्प शक्ति से कठिन से भी कठिन कार्य को चुनौती के रूप में स्वीकार करने वाली बचेन्द्री ने 1994 में हरिद्वार से कलकत्ता तक गंगा में 2, 150 किलोमीटर इंडियन वूमेन्स राफ्रिंटग अभियान का नेतृत्व किया। उन्होंने 1997 में ‘दि इंडियन वूमेन्स पफस्ट ट्राँस-हिमालयन, जर्नी-97श् का नेतृत्व करते हुए सात महीनों में अरूणाचल प्रदेश से भूटान और नेपाल के रास्ते सियाचिन ग्लेशियर तक पैदल चलकर 40 से अधिक दर्रों को पार किया।
उनकी उपलब्धियों के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने उन्हें ढेरों पुरस्कारों से सम्मानित किया। सन्‌ 1984 में इण्डियन माउन्टेनियरिंग फाउन्डेशन ने स्वर्ण पदक, 1985 में भारत सरकार ने पद्मश्री, उत्तर प्रदेश सरकार ने नेशनल यूथ एवार्ड, यश भारती पुरस्कार तथा शिक्षा विभाग ने स्वर्ण पदक प्रदान किया। इसी वर्ष पश्चिम बंगाल का कलकत्ता स्पोर्ट्‌स-जर्नलिस्ट एसोसियेशन अवार्ड मिला। 1986 में भारत सरकार ने अर्जुन एवार्ड से सम्मानित किया। 1990 में बचेन्द्री पाल का नाम गिनीज बुक आपफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज किया गया। असाधरण नेतृत्व के लिए 1993 में इनको फर्स्ट एडवेंचर अवार्ड तथा 1995 में लिम्का बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड्‌स, पिपुल आफ दी इयर अवार्ड से नवाजा गया। 1997 में दिल्ली के शिरोमणि इंस्टीट्यूट ने महिला शिरोमणि सम्मान प्रदान किया। बचेन्द्री पाल की विशिष्ट उपलब्ध्यिों के लिए इसी वर्ष गढ़वाल विश्वविद्यालय ने उन्हें डी0 लिट्0 की मानद उपाधि से अलंकृत किया।
इण्डिया इन्टरनेशनल सेन्टर और भागीरथी सेवन सिस्टर्स एडवेंचर सेन्टर उत्तरकाशी की संस्थापक अध्यक्ष बछेन्द्री पाल देश-विदेश की कई संस्थाओं की सदस्य हैं। वे नेहरू इन्स्टीट्यूट आफ माउन्टेनियरिंग उत्तरकाशी और इन्स्टीट्यूट आफ हिमालयन माउन्टेनियरिंग दार्जीलिंग की एक्जीक्यूटिव काउंसिल तथा नेशनल यूथ काउंसिल और उसकी पुरस्कार चयन समिति, इण्डियन माउन्टेनियरिंग फाउन्डेशन नई दिल्ली व हिमालयन क्लब मुंबई की आजीवन सदस्य हैं। उनको एक्सप्लोरर्स क्लब न्यूयार्क, तथा यू0के0 की रायल जियोग्रापिफकल सोसायटी की फैलोशिप भी प्राप्त है।
बछेन्द्रीपाल ने विश्व के चिभिन्न देशों में आयोजित कार्यक्रमों में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। मास्को में आयोजित सन्‌ 1985 के ‘विश्व युवा महोत्सवश् में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप में भाग लिया। 1986 का वर्ष इनके लिए कापफी व्यस्ततापूर्ण रहा। उन्होंने मार्च 1986 में न्यूयार्क के एक्सप्लोरल क्लब को सम्बोधित किया। यू0एस0ए0 व कनाडा के टोरन्टों में भी इन्होंने व्याख्यान दिये। तथा प्रफान्स में आयोजित ‘वर्ल्ड ऐमीनेन्ट वोमेन माउन्टेनियरिंग मीटश् में भारत का प्रतिनिधित्वा किया। जुलाई के महीने में यू0एस0एस0आर0 में हुये भारत महोत्सव में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल के साथ शिरकत की। उन्होंने सन्‌ 1994 में जापान में आयोजित ‘क्रास कल्चरल क्लीन माउन्टेन यूथ प्रोजेक्टश् में भी भारतीय प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!