पद्मविभूषण से अलंकृत उत्तराखण्ड के पहले व्यक्ति “भैरव दत्त पाण्डे”
लेखन/संकलन : त्रिलोक चन्द्र भट्ट
उत्तराखण्ड की वादियों से निकल कर पश्चिम बंगाल और पंजाब में राज्यपाल का पद सुशोभित करने वाले भैरव दत्त पाण्डे पहाड़ के ऐसे पहले व्यक्ति हैं जो यहाँ से सर्वप्रथम आई0सी0एस0 बने। मूल रूप से ग्राम सिमल्टा (चम्पानौला) अल्मोड़ा निवासी बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी भैरव दत्त पाण्डे का जन्म 17 मार्च 1917 को हल्द्वानी मे हुआ था। उन्होंने पहाड़ की धरती से पहले केबिनेट सैक्रेटरी और पहले कमिश्नर जनरल एण्ड चीफ सैक्रेटरी बनने का गौरव तो हासिल किया ही ‘पद्मविभूषण’ से अलंकृत होने वाले वाले भी वे पहाड़ के पहले व्यक्ति हैं।
विद्यार्थी जीवन में उनकी विज्ञान के प्रति विशेष रूचि थी। इन्टर की पढ़ाई के बाद 1935 में उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी0एस0सी0 करने के बाद 1939 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से बी0ए0 भी किया। इससे पूर्व 1938 में इन्होंने इण्डियन सिविल सर्विस में प्रवेश करने पर बिहार से अपनी राजकीय सेवा की शुरूआत की। वे गया जिले के असिस्टेंट कलक्टर भी रहे। 20 साल तक उन्होंने बिहार में विभिन्न पदों पर कार्य किया। 1939 से 1959 तक वित्त सचिव, खाद्य एवं रसद आयुक्त, भूमि सुधार आयुक्त, विकास आयुक्त तथा मुख्य सचिव के पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने अपने कर्तव्यों का कुशलता पूर्वक निर्वहन किया। भैरव दत्त पाण्डे ने 1960 मे केन्द्र सरकार की सेवाओं में आकर विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव, केन्द्रीय राजस्व परिषद के अध्यक्ष और स्वर्ण नियंत्रक के महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 31 मार्च 1977 को राजकीय सेवा से सेवानिवृत्ति से पूर्व उन्होंने 1965 से 1967 तक भारतीय जीवन बीमा निगम के चेयरमैन, तदोपरान्त बिहार के कमिश्नर-जनरल एण्ड चीफ सैक्रेटरी, 1967 से 1970 तक योजना आयोग के सचिव, 1971-72 में औद्योगिक विकास और वित्त विभाग के सचिव तथा 1972 से 1977 तक कैबीनेट सचिव के रूप में दीर्घकालीन कार्य किया।
राजकीय सेवा में इनकी कार्य कुशलता तथा उत्कृष्ट सेवाओं के सराहनीय व दीर्घकालीन अनुभवों को देखते हुए सेवानिवृत्ति के बाद भी भारत सरकार ने इनकी सेवाएँ लेते हुए 1978 में इन्हें नेशनल ट्रान्सपोर्ट पालिसी कमेटी का चेयरमैन बनाया। पाण्डे जी ने 1980 तक इस पद पर कार्य किया। 1981 में इन्हें रेलवे रिफार्म्स कमेटी का भी चेयरमैन बनाया गया। उक्त महत्वपूर्ण विभागों के शीर्ष पदों पर कार्य करने के बाद 12 दिसम्बर 1981 को ये पश्चिम बंगाल के राज्यपाल नियुक्त हुए। 10 अक्टूबर 1983 तक पश्चिम बंगाल में राज्य के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर रहने के बाद उन्हें इसी तिथि को पंजाब का राज्यपाल बनाया गया 2 जुलाई 1984 तक वे पंजाब के राज्यपाल रहे। इसके बाद उन्होंने अपना शेष जीवन उत्तराखण्डग में बिताने का निश्चय किया और 1986 से उत्तराखण्ड सेवा निधि नामक स्वयं सेवी संगठन का अध्यक्ष पद सँभाल कर सेवा कार्यों में लग गये।
देश के लिए की गयी सर्वोत्तम सेवाओं के लिए भारत सरकार ने इन्हें समाज में योगदान के लिए सन 1972 में पद्मश्री तथा 30 मार्च 2000 को ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किया।