भवन एवं अन्य सन्निर्माण बोर्ड में बड़ा भ्रष्टाचार, हाईकोर्ट ने तलब की जांच रिपोर्ट
टूल किट, सिलाई मशीन और साइकिल खरीद में हुई थी अनियमितताएं
उत्तराखण्ड के भवन एवं अन्य सन्निर्माण कल्याण बोर्ड में हुए भ्रष्टाचार के मामले में बृहस्पतिवार को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है। आज इस मामले पर पुन- सुनवाई होनी है। जबकि इस प्रकरण में सन्निर्माण कल्याण बोर्ड के चेयरमैन शमशेर सिंह सत्याल ने भी खुद को पक्षकार बनाए जाने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया है। बृहस्पतिवार को काशीपुर निवासी खुर्शीद अहमद की जनहित याचिका पर वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया था कि वर्ष 2020 में भवन एवं सन्निर्माण कल्याण बोर्ड ने श्रमिकों को टूल किट, सिलाई मशीनें और साइकिलें देने के लिए विभिन्न समाचारपत्रों में विज्ञापन दिया था। आरोप है कि उक्त सामान की खरीद में बोर्ड के अधिकारियों ने वित्तीय अनियमितताएं की हैं। याचिकाकर्ता का कहना है किजब ब इसकी शिकायत प्रशासन और राज्यपाल से की गई तो अक्तूबर 2020 में बोर्ड को भंग कर दिया गया। बोर्ड का नया चेयरमैन शमशेर सिंह सत्याल को नियुक्त किया गया। जब इस मामले की जांच चेयरमैन ने कराई तो घोटाले की पुष्टि हुई। याचिका में कहा गया कि मामले में श्रमायुक्त उत्तराखंड ने भी जांच की, जिसमें कई नेताओं और अधिकारियों के नाम सामने आए लेकिन सरकार ने उन्हें हटाकर नया जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया। याचिका में कहा गया कि नया जांच अधिकारी निष्पक्ष जांच नहीं कर रहा है। याचिकाकर्ता ने उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर निष्पक्ष जांच कराने का अनुरोध कोर्ट से किया है।
दूसरी ओर बोर्ड चेयरमैन शमशेर सिंह सत्याल ने भी कोर्ट में प्रार्थनापत्र देकर कहा है कि वह बोर्ड के चेयरमैन हैं लेकिन उन्हें इस जनहित याचिका में पक्षकार ही नहीं बनाया गया है। वह पूरे घोटाले से वाकिफ हैं। उनका कहना था कि बोर्ड के सदस्यों ने कोटद्वार में ईएसआई हॉस्पिटल बनाने के लिए सरकार और कैबिनेट की मंजूरी के बिना ही ब्रिज एंड रूफ इंडिया लिमिटेड को 50 करोड़ का ठेका दे दिया। इतना ही नहीं, कंपनी को 20 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान भी कर दिया गया, जबकि हकीकत यह है कि अभी तक हॉस्पिटल बनाने के लिए जमीन का चयन तक नहीं किया गया है। इस भुगतान के लिए भी सरकार की अनुमति नहीं ली गई। सरकार ने 9 दिसंबर 2020 को इसकी जांच के लिए कमेटी गठित की। कमेटी से कहा गया कि कंपनी से 20 करोड़ रुपये वसूलकर उसे संबंधित खाते में जमा करवाएं। इस जांच कमेटी ने सरकार को अपनी रिपोर्ट 23 मार्च 2021 को सौंप दी थी। जांच में 20 करोड़ रुपये के लेनदेन में अनियमितता पाई गई।