जीवन परिचय : उत्तराखण्ड को गौरवान्वित करने वाले छत्रपति जोशी
लेखन/संकलन: त्रिलोक चन्द्र भट्ट
पुलिस विभाग में स्टेट रेडियो आफीसर के रूप में नौकरी की शुरूआत कर संचार क्षेत्र में विशिष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति के पुलिस पदक और बाद में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित छत्रपति जोशी ने सीमा सुरक्षा बल के अतिरिक्त महा निदेशक एवं भारत सरकार के महानिदेशक दूर संचार सहित विदेश मंत्रालय में सलाहकार, ‘अपट्रान’ के चेयरमैन आदि विभिन्न विभागों का लम्बा सफर तय कर जो राष्ट्रीय सम्मान पाया उसने पूरे पहाड़ को गौरवान्वित किया है।
छत्रापति जोशी का जन्म सन् 1922 में अल्मोड़ा के एक सम्भ्रान्त और सम्पन्न परिवार में हुआ। इनके दादा ज्वाला प्रसाद जोशी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के में कुमाऊँ के पहले अधिवक्ताा थे। पिता हरीश चन्द्र जोशी भी कुमाऊँ अंचल के एक प्रतिष्ठित वकील थे। समाज में इनके परिवार की अच्छी प्रतिष्ठा थी। अपनी कुमाऊँ यात्रा के दौरान 1921 में जब महात्मा गाँधी अल्मोड़ा आए तो वे जोशी परिवार के ही आतिथ्य में रानीधारा मार्म पर स्थित आवास पर ठहरे थे।
1938 तक छत्रपति की पढ़ाई अल्मोड़ा में ही हुई। इन्होंने अल्मोड़ा के राजकीय इन्टर कालेज से इन्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे विज्ञान के विद्यार्थी थे। प्रयाग विश्व विद्यालय से उन्होंने भौतिक विज्ञान से एम0एस0सी0 उत्तीर्ण कर डा0 विक्रम साराभाई के निर्देशन में शोध् प्रारम्भ किया। इस बीच उन्होनें कुछ जगह नौकरी के लिए भी आवेदन कर रखा था सौभाग्य से इनकी नियुक्ति उ0 प्र0 के रेडियो विभाग में स्टेट रेडियो ऑफीसर के पद पर हो गई। नौकरी पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बाद इन्होंने जिस लगन के साथ विभाग में काम करना शुरू किया उससे विकास के मार्ग खुलते चले गए। कुछ ही समय में उ0प्र0 के पुलिस वायरलेस विभाग ने कापफी उन्नति की। कड़ी चुनौतियों के बावजूद संवाद प्रेषण में श्रेष्ठता साबित करते हुए यह विभाग पूरे देश में अव्वल आया। इनके नेतृत्व में हुए शानदार कायोर्ं के लिए प्रदेश सरकार की पहल पर इनको राष्ट्रपति के पुलिस पदक से सम्मानित किया गया।
सन् 1971 में छत्रापति जोशी की नियुक्ति बी0एस0एपफ0 (सीमा सुरक्षा बल) की तकनीकी शाखा के महा निरीक्षक एवं निदेशक दूर संचार के पद पर हुई। बेतार संचार (वायरलेस) व्यवस्था के सदृढ़ीकरण और उसे अत्याधुनिक बनाने के लिए जोशी जी द्वारा किये गये प्रयासों के परिणाम स्वरूप इस व्यवस्था का रख रखाव और संचालन पहले की अपेक्षा संवर्धित और सुगम हो पाया। इस व्यवस्था में सुधर की संभावनाएँ तलाशने के लिए उन्होंने विभिन्न देशों की यात्राएँ कर उन्नत संचार व्यवस्थाओं का अध्ययन किया और अपेक्षित सुधार के लिए उनको भारत में लागू करने की सिफारिश की। उन्होंने अपने विभाग में भी पुरानी प्रणालियों में सुधर कर उसकी कार्य क्षमता बढ़ाने के लिए महत्वूपर्ण प्रयास किये। बी0एस0एफ0 के अतिरिक्त महानिदेशक एवं महानिदेशक दूर संचार भारत सरकार के रूप में इन्होंने अपनी सेवा से अवकाश ग्रहण किया। सेवा निवृत्ति के उपरान्त भी सन् 1982 के नवें एशियाई खेलों एवं निर्गुट शिखर सम्मेलन में तकनीकी सेल के संचालन के लिए भी भारत सरकार ने इनकी सेवाएँ ली थी। इनके कुशल मार्ग दर्शन की बदौलत पूरे विश्व ने एशियाड 82 का संजीव प्रसारण देखा।