उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का काला दिन

खटीमा से एक झूठा वायरलेस संदेश …..कई कांस्टेबल मार दिए गए हैं तथा कई गंभीर घायल पड़े हैं…. फोर्स नहीं है….। दूसरी ओर से आदेश- फायर ..फायर.. फायर..। 1 सितंबर, 1994 को खटीमा में यह वायरलेस पर बोले गये वह शब्द थे जिसने कई राज्य आन्दोलनकारियों को शहीद कर दिया।

-त्रिलोक चन्द्र भट्ट

वर्ष 1994 के दौरान अविभाजित उत्तर प्रदेश में जनसंख्या अनुपात के विपरीत उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र उत्तराखंड में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की घोषणा से उस समय ऐसा विस्फोट हुआ जिसने पूरे आंदोलन की दशा और दिशा ही बदल दी थी।पहले से ही जनसंख्या के आधार पर ग्राम सभाओं का परिसीमन कर उनका स्वरूप यथावत रखने और हिल कैडर को सख्ती से लागू करने सहित कई मांगों को लेकर लामबद्ध हो रहे लोगों को 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के एक ही सरकारी फरमान ने पूरे उत्तराखंड को ही 27 प्रतिशत आरक्षण की परिधि में लेने की मांग के साथ जोड़ दिया। अंतत: सब कुछ उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के सूत्री आन्दोरलन में समाहित हो गया।
जुलाई 1994 में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण विरोध के बाद पृथक राज्य की मांग को लेकर व्यापक पैमाने पर शुरू हुए जुलूस प्रदर्शनों के सिलसिले में पूरे उत्तराखण्ड में जगह-जगह आंदोलनकारियों व पुलिस के बीच कई बार नोकझोंक हुई। लेकिन 1 सितंबर, 1994 को खटीमा जैसी पुलिस बर्बरता की कार्यवाही इससे पूर्व कहीं देखने को नहीं मिली। जब पुलिस ने कई आंदोलनकारियों को मौत के घाट उतार कर उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में नैनीताल जिले के खटीमा शहर से खूनी अध्याय की शुरुआत की।
पहाड़ की जनसंख्या के अनुपात के विपरीत 27प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की सरकारी घोषणा के विरोध एवं उत्तराखंड राज्य के समर्थन में खटीमा की आंदोलन समर्थक शक्तियों ने 1 सितंबर, 1994 को शहर में शांतिपूर्वक जुलूस निकालने का निर्णय लिया था। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार खटीमा और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों लोगों ने जुलूस में शिरकत की। जुलूस में शामिल होने के लिए खटीमा शहर सहित बिचुआ, झनकट, विचपुरी, श्रीपुर तथा अमरकलां गांव के हजारों लोग अभूतपूर्व उत्साह से भरे थे। शहर के रामलीला मैदान से शुरू होकर नगर के विभिन्न मार्गों से आरक्षण के विरोध एवं पृथक राज्य के समर्थन में सरकार विरोधी नारे लगाता हुआ शांतिपूर्ण जलूस जब रोडवेज बस स्टैंड, पीलीभीत रोड स्थित पेट्रोल पंप होते हुए जैसे ही सितारगंज रोड पर पुलिस थाने के सामने पहुंचा तो अचानक आंसू गैस का गोला भीड़ पर आकर गिरने से भगदड़ मच गई। इसी बीच आसपास के मकानों से भी पहले पथराव और फिर हवाई फायरिंग शुरू हो गई।
जुलूस में शामिल कुछ लोगों द्वारा थाने की ओर पत्थर फेंकने के कारण पहले से ही तैयार पुलिस ने थाने में एकत्र किये गये पत्थरों से भीड़ पर पथराव के साथ बिना किसी पूर्व चेतावनी के ताबड़तोड़ आंसू गैस व गोलियां दागनी शुरू कर दी। जिससे जुलूस में शामिल लोगों में चीख-पुकार मच गई। पुलिस द्वारा की गई अंधाधुंध फायरिंग से जान बचाने के लिए जिसे जहां जगह मिली वह उधर ही भागता चला गया। इस गोली कांड में पुलिस द्वारा कम से कम 8 राउंड गोली चलाई गई थी। जिससे कई लोग मौके पर ही मारे गए और कई पुलिस की लाठियों का शिकार होकर गंभीर रूप से घायल हुए। जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रहे दर्जनों लोग भगदड़ में भी कुचले गये। कुमाऊं रेजिमेंट के भूतपूर्व फौजी धर्मानंद भट्ट अमरकलां गांव से अपने साथियों के साथ जुलूस में शामिल होने गये थे। लेकिन वह जिंदा वापस नहीं लौट सके। श्रीपुर बिचुवा के भवान सिंह तहसील में अपनी पेंशन लेने गये थे। वह तहसील में बैठे ही थे कि अचानक पुलिस द्वारा चलाई गई गोली से उनका हाथ उड़ गया। बाद में भवान सिंह ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। भूतपूर्व सैनिक प्रताप सिंह की भी तहसील प्रांगण में ही गोली लगने से मृत्यु हो गयी थी। बिचपुरी गांव के बहादुर सिंह भी गोली कांड के समय तहसील में मौजूद थे उनके मुंह पर छर्रा लगने से वह घायल हो गये। इसी तरह श्रीपुर बीछुवा के ग्राम प्रधान पूरन चंद्र के सिर में छर्रे लगने से वे भी घायल हुये।
खटीमा में हुए खौफनाक हादसे के बाद पुलिस के प्रति लोगों का आक्रोश फूट पड़ा। पूरे उत्तराखण्ड में जगह-जगह लोग विरोध प्रदर्शन में उतर आये। जबकि खटीमा व आसपास के लोगों ने कई दिन पुलिस के आतंक के साए में बिताए। गोलीकांड का दोष निर्दाेषों के सिर मढ़ने के लिए रात को शहर और गांव में छापे मारकर पुलिस ने दर्जनों लोगों को हमला करने और सरकारी काम में बाधा डालने आदि के फर्जी मुकदमों में गिरफ्तार कर जेल भेजा। भाजपा सांसद बलराज पासी, विधायक तिलकराज बेहड़ सहित पांच अन्य नेताओं को पुलिस ने सितारगंज से बंदी बनाकर कोतवाली प्रभारी निरीक्षक प्रेम सिंह के साथ 4 सितंबर को पीलीभीत भेजा दिया था। सितारगंज से गिरफ्तार कर यहां लाए गए सभी नेताओं को रात्रि में गाजीपुर जेल भेज दिया गया था
खटीमा में बेकसूर लोगों की हत्या वहां के तत्कालीन कोतवाल देवकरण की और कुछ अन्य लोगों की पूर्व नियोजित साजिश का परिणाम था। 1 सितंबर, 1994 की सुबह से ही खटीमा में पूर्व निर्धारित स्थानों की बहुमंजिला इमारतों पर पुलिस ने राइफल लेकर मोर्चा संभाल थाने के ऊपर भी ईट-पत्थर एकत्र कर लिए थे। जबकि प्रशासन व आंदोलनकारियों में पहले दिन ही यह तय हो गया था कि 1 सितंबर, 1994 को आंदोलनकारी जुलूस के बाद एसडीएम को ज्ञापन देंगे। किंतु निर्धारित समय पर एसडीएम बीके त्रिपाठी अपने कार्यालय के बजाय पुलिस थाने में देव करण केन के साथ बैठे थे।
पुलिस के द्वारा जलूस के रामलीला मैदान से नगर भ्रमण तथा बाद में सितारगंज रोड पर मुड़ने तक जिला प्रशासन को दी गई सूचनाओं में पूरी स्थिति शांतिपूर्ण बताई गई। कोतवाली के पास जलूस के पहुंचते ही पुलिस अधीक्षक और जिला प्रशासन को झूठी सूचना भेज दी गई थी जिसमें कहा गया था कि भीड़ ने कोतवाली घेर ली है, पथराव शुरू कर दिया है, पुलिस वाले मार दिए गए हैं, फोर्स नहीं बची है। जिला प्रशासन से भीड़ को नियंत्रित करने हेतु लाठीचार्ज आंसू गैस के गोले छोड़ने पानी के फव्वारे रबड़ की गोलियां चलाने के संबंध में निर्गत सभी आदेशों को ताक पर रखकर पुलिस ने सीधे फायरिंग शुरू कर दी। जबकि भीड़ की ओर से ऐसी कोई उकसावे की कार्रवाई नहीं की गई जिससे गोली चलाने की आवश्यकता पड़ती। भीड़ की ओर से न तो पुलिस पर फायरिंग की गई और न ही किसी ऐसे हथियार का प्रयोग किया गया जिससे कोई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल होता। फिर भी आंदोलनकारियों का बलपूर्वक दमन करने की मानसिकता से ग्रसित पुलिस ने झूठा संदेश भेजकर खटीमा में जघन्य हत्याकांड किया। वायरलेस लॉग बुक में ज्ये्ष्ठ पुलिस अधीक्षक नैनीताल द्वारा जो फायरिंग आदेश दिया गया है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण खटीमा पुलिस द्वारा आंदोलनकारियों के हाथों पुलिसकर्मियों के मारे जाने की झूठी खबर दिया जाना है।
वायरलेस लॉग बुक में दर्ज संदेशों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
11.35 बजे- जुलूस सभा स्थल से प्रारंभ होकर थाने से गुजर रहा है शांतिपूर्वक गुजर गया है। 11.56 बजे- थाने पर पथराव हो रहा है पूरा थाना घेर रखा है।
12.06 बजे- दोनों ओर भीड़ की तरफ से पत्थरबाजी और फायरिंग हो रही है।
(संबंधित अधिकारी इससे पहले ही कारगर फायरिंग का आदेश दे चुका है)
14.40 बजे- कई कांस्टेबल मार दिए गए हैं तथा कई गंभीर घायल पड़े हैं, फोर्स नहीं है।
आदेश में फायरिंग-फायरिंग-फायरिंग (तीन बार कहा गया है)
गोली कांड के बाद कई दिन तक पुलिस केवल तीन ही मौतों को स्वीकार करती रही। जबकि रतनपुर फ़ुलैया के गोपीचंद, अमरकलां के धर्मानंद भट्ट, राजीव नगर के परमजीत सिंह और बरेली के रामपाल घटना स्थल पर ही पुलिस की गोली के शिकार हो गए थे लेकिन पुलिस चारों व्यक्तियों के मुआवजा पाने के लिए स्वत: ही लापता होने की बात प्रचारित करती रही। जबकि प्रत्यक्षदर्शियों और मानवाधिकार संरक्षण समिति सहित केंद्रीय जांच ब्यूरो के अनुसार चारों की मौत पुलिस की गोली से हुई थी। इन मृतकों की लाशों को उठाकर पुलिस ने खटीमा कोतवाली के पीछे एलआईयू कार्यालय के पास कोठरी में छुपाया था। जिनको पुलिस कप्तान विजय सिंह व जिलाधिकारी बीपी वर्मा तक ने देखा था। 1 सितंबर, 1994 लगभग 7.00 बजे चारों लोगों को टाटा मॉडल 407 वाहन नंबर यूपी 02/6755 और यूपी 02/2578 में लादकर पुलिस थाने के पुलिस इंस्पेक्टर राधा कृष्ण शर्मा, उप निरीक्षक एसडी शर्मा तथा दो सिपाही, उपरोक्त वाहन के चालक तथा दूसरे अन्य के साथ मुनकैया वन विभाग की चौकी होते हुए शारदा सागर बांध की ओर गये थे। वन विभाग की चौकी पर तैनात वन कर्मी तथा शारदा सागर बांध के बैरियर पर तैनात कर्मचारी ने भी इस घटना की पुष्टि की थी। रात 8.00 बजे पुलिस पुलिस कप्तौन से सब इंस्पेक्टर राधा कृष्ण से पूछा माल का क्या हुआ। राधा कृष्ण का कहना था डिस्पोजल के लिए पीलीभीत रवाना हो गया है। वायरलैस पर हुई इस बातचीत को प्रत्येक केन्द्र पर सुना गया। रात 8.30 बजे माल डिस्पोजल की सूचना पुलिस कप्तान को दे दी गई। बताया जाता है कि पुलिस ने चारों शव सागर बांध में फेंक दिये थे।
खटीमा कांड में मारे गए उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी

खटीमा में शहीद राज्‍य आन्‍दोलनकारी


1.भवान सिंह
2.प्रताप सिंह
3.सलीम अहमद
4.गोपीचंद
5.धर्मानन्द भट्ट
6.परमजीत सिंह
7.रामपाल

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