अपंगों के जीवन में खुशियां बिखेररहे टीएमयू के डॉ. जीएल अरोड़ा

तीन दशक में ढाई हजार हैंडीकैप को बना चुके हैं सक्षम

यूं तो हर इंसान के जीवन की डोर ईश्वर के हाथों में है, लेकिन धरती पर डॉक्टर भगवान की मानिंद हैं। यदि ईश्वर किसी मानव के बेइंतहा दर्द को नहीं हर्ता तो छोटी से बड़ी पीड़ा से राहत को चिकित्सक की ही शरण लेता है। डॉक्टर भी पेशेंट के विश्वास की खातिर जी-जान लगा देता है। पेशेंट्स के प्रति सेवा, समर्पण और संकल्प की यह छोटी-सी कहानी है, देश के जाने-माने ऑर्थोपैडिक्स डॉ. जीएल अरोड़ा की। तीन दशक से डॉ. अरोड़ा अपंगों के जीवन में आशा की नई किरण की मानिंद हैं। करीब-करीब ढाई हजार विकलांगों के जीवन में खुशियां भर चुके हैं। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद का सौभाग्य है, डॉ. अरोड़ा टीएमयू हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, मुरादाबाद से संबद्ध है।

दुर्लभ ऑपरेशन का प्रतिफल चमत्कारिक
यदि दुर्भाग्यवश यानी जन्मजात- पोलियो या किसी दुर्घटनावश आपके अपने परिजनों- बच्चों या बड़ों में हाथ या पैर में टेढ़ापन है तो यकीनन डॉ. अरोड़ा उनके लिए किसी देवदूत से कम नहीं हैं। एमएस में गोल्ड मेडलिस्ट डॉ. अरोड़ा के हाथों में बेमिसाल सफाई है। हजारों मरीज उनके मुरीद हैं तो डॉ. अरोड़ा भी सालों-साल बाद उन्हें विस्मृत नहीं करते हैं। गुफ्तगू में न तो नौ माह के ऑपरेशन भूलते हैं, न ही किसी उम्र दराज का। दुर्लभ से दुर्लभ ऑपरेशन का प्रतिफल भी किसी मिरकल के मानिंद है।

बकौल डॉ. अरोड़ा अपंगता की तीन श्रेणियां
डॉ. अरोड़ा बताते हैं, कोई भी बाय बर्थ विकलांग हो सकता है। किसी हादसे में उसका कोई अंग भंग हो सकता है या किसी बीमारी की चपेट में आकर वह हैंडीकैप्ड हो सकता है। मोटे तौर पर यह धारणा रहती है, लाखों-करोड़ों के मेडिकल खर्च के बाद भी हमारा परिजन सेहतमंद नहीं हो पाएगा, लेकिन प्रसिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ कहते हैं, ये सब मिथक हैं। डॉ. अरोड़ा कहते हैं, टीएमयू में ऐसे ऑपरेशन हजारों के खर्च में ही हो जाते हैं। ऐसा उनके ट्रीटमेंट से सेहतमंद हुए मरीज और उनके परिजन भी मानते हैं। बस जरूरत है तो सही समय पर सही डॉक्टर और सही हॉस्पिटल के चयन की।

हाथ-पैरों के टेढ़ेपन के दो कारण
डॉ. अरोड़ा कहते हैं, किसी के भी हाथ या पैर के टेढ़ेपन के दो कारण होते हैं- पोलियो और सेरेब्रल पाल्सी। डॉक्टर का साफ मानना हैं, डिलीवरी गैर अनुभवी नर्स से कराने पर बच्चे के अपंग होने की आशंका रहती है, इसीलिए डिलीवरी प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ से ही कराई जानी चाहिए। यह सच है, पोलियो देश और दुनिया से लगभग अलविदा हो गया है। मौजूदा वक्त में डिलीवरी के समय सेरेब्रल पाल्सी ही शारीरिक अक्षमता का कारण है। ऐसे में डिलीवरी के वक्त बेहद सतर्क रहने की जरूरत है।

आत्मविश्वास से लबरेज हो जाते हैं अपंग
डॉ. अरोड़ा भी अपंगों के लिए किसी भगवान से कम नहीं हैं। वे न केवल अपंगों के अंगों को नया रूप देते हैं बल्कि अपने पेशेंट को एक नया जीवन और आत्मसम्मान से जीने योग्यता भी देते है। मसलन, डॉ. अरोड़ा उसकी अपंगता को दूर करके उसे शारीरिक रूप से सक्षम बनाते हैं, जिससे वह दूसरों पर निर्भर न रहकर स्वंय सामाजिक और आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बन सकें।

ज्वाइंट रिप्लेसमेंट वरदान
ऑर्थोपेडिक्स डिपार्टमेंट के हेड प्रो. अमित सराफ कहते हैं, नी और हिप रिप्लेसमेंट कराते वक्त घबराने की कोई जरूरत नहीं है। इनके ऑपरेशन 100 प्रतिशत कामयाब हैं। आंकडे़ बताते हैं, पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं में यह बीमारी ज्यादा है, क्योंकि चौका-बर्तन से लेकर दिन में कई मर्तबा उन्हें घुटनों के बल बैठना होता है। इससे महिलाओं की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। प्रो. सराफ बताते हैं, यदि हम ओपीडी में 200 मरीजों को रोज देखते हैं तो 40 प्रतिशत महिलाओं को घुटने और कूल्हे की शिकायत रहती है। तीर्थंकर महावीर हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर का ऑर्थोपेडिक्स विभाग ऐसे रोगियों के लिए हर सोमवार और वृहस्पतिवार को स्पेशल ड्राइव चलाता है। ऑपरेशन की सफलता को लेकर शक की कोई गुंजाइश नहीं है। नी और हिप के रिप्लेसमेंट को मेडिकल साइंस का वरदान बताते हुए कहते हैं, ऑपरेशन के दूसरे दिन पेशेंट चलने-फिरने लगता है। पांच या छह दिन बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया जाता है। प्रो. सराफ कहते हैं, स्माल इनसिश़न सर्जरी से लेकर ट्रामा सर्जरी, स्पाइन सर्जरी, दूरबीन सर्जरी की सहूलियत अस्पताल में मौजूद हैं।

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