Wednesday, October 9, 2024
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स्वाधीन भारत में उत्तराखण्ड की पहली महिला सांसद

लेखन/संकलन : त्रिलोक चन्द्र भट्ट

 1903 में हिमालच प्रदेश की ‘क्यूंठल रियासत’ की क्यूठल कोठी में जन्मी कमलेन्दुमति साह टिहरी गढ़वाल के राजा नरेन्द्र साह की रानी थीं। टिहरी रियासत के भारतीय संघ में विलय होने तक राज सत्ता का सुख भोगने वाली ‘राजमाता’ की समाज सेविका के रूप में ही पहचान नहीं थी बल्कि वे स्वाधीन भारत में इस क्षेत्र से सांसद चुनी जाने वाली उत्तराखण्ड की पहली महिला थी।1916 में महाराजा नरेन्द्र साह के साथ परियण सूत्र में बँधी कमलेन्दुमति एक  विदुषी लेखिका थी। 1950 में नरेन्द्र साह की मृत्यु से उन्हें बड़ा आन्तरिक आघात लगा लेकिन अन्तःमन की पीड़ा पर काबू रखते हुए उन्होंने समय के साथ जीना सीखा। राजशाही का अवसान होने के बाद भी गढ़वाली जन मानस का उनके प्रति पूर्ण आदर भाव था। कमलेन्दुमति साह का भी अपने क्षेत्र की जनता से विशेष लगाव रहा। पति के देहावसान के कुछ अन्तराल के बाद उन्होनें स्वर्गीय महाराज की स्मृति में महिलाओं की शिक्षा और जन क्लयाणकारी कार्यों के लिए अपनी सम्पत्ति का ‘स्व0 नरेन्द्र साह ट्रस्ट’ के नाम से एक न्यास का गठन किया। उन्होंने लोक सभा का चुनाव भी लड़ा। कमलेंदुमति ने गढ़वाली, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू व फ्रेंच का ज्ञान टिहरी राजमहल में ही लिया। उन्हें राजमाता का दर्जा था। वर्ष 1949 में टिहरी रिसायत का भारत में विलय हुआ। वर्ष 1952 में हुए लोकसभा के पहले चुनाव में जब टिहरी संसदीय सीट पर टिहरी के अंतरिम शासक (वर्ष 1946 से वर्ष 1950 तक) मानवेंद्र शाह का नामांकन रद्द हुआ तो राजमाता कमलेंदुमति को मैदान में उतारा गया स्वाध्ीन भारत के पहले संसदीय चुनाव में टिहरी से उन्होंने भारी मतों से सपफलता प्राप्त की।  पाँच वर्ष के अपने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी ठाकुर किशन सिंह (कृष्ण सिंह) को 13,982 मतों से हराया। संसदीय कार्यकाल में वे अपने क्षेत्र के विकास और उसकी दशा सुधरने के लिए निरन्तर प्रयासरत्‌ रही। इन्होंने संसद में ‘वीमन एण्ड चिल्डे्रन्स इंस्टीट्यूशन्स (लाईसेंसिंग) बिल 1954′ तथा इम्मोर्टल ट्रैफिक इन वीमेन्स बिल 1955′ नामक दो गैर सरकारी बिलों को प्रभावशाली तरीके से पारित करवाया। गढ़वाली संस्कारों की पोषक और सम्वाहक राज परिवार की इस महिला को जनसेवा और सामाजिक कार्यो में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने 1958 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। इन्होंने 1966 में जापान में आयोजित तीसरे पैन पैसिफिक कान्प्रेफंस में भारत का प्रतिनिधित्‍व किया.विभिन्न देशों की यात्रााएँ कर वहाँ शिक्षा और योग पर व्याखयान दिए।

      महाराजा नरेन्द्र साह ट्रस्ट की प्रबन्धक और अनेक शिक्षण संस्थाओं की संस्थापक कमलेन्दुमति को सरकार ने राज्य समाज कल्याण परामर्श दात्री समिति में बतौर सदस्य मनोनीत किया.वे ऑल इण्डिया वीमेन्स एसोसियेशन की आजीवन सदस्य भी थीं। लेखन के क्षेत्रा में इस विदुषी महिला का अच्छा दखल था। उन्होंने एक ‘जीवन ज्योति’ कविता संग्रह और ‘माई इम्प्रेशन आपफ अमेरिका’ नामक पुस्तकें भी लिखीं। कमलेंदुमति ने अनाथ बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए निजी विधेयक महिला एवं बाल संस्थाएं बिल (1954) और अनैतिक देह व्यापार बिल (1957) लोकसभा में पास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 1957 के आम चुनाव में उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत टिहरी रियासत के अंतरिम शासक रहे मानवेंद्र शाह को सौंपी। 15 जुलाई 1999 को कमलेंदुमति शाह का निधन हुआ।

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