Sunday, June 15, 2025
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Haridwar : आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की कार्याशाला फ्लाप, कार्यशाला के नाम पर केवल रस्म अदायगी

-त्रिलोक चन्द्र भट्ट
हरिद्वार। मेला नियंत्रण भवन में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में आयोजित जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की कार्यालशाला फ्लाप शो साबित हुयी है। कार्यशाला के नाम पर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने जिलाधिकारी, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में रश्मअदायगी कर जिस तरह कार्यशाला का समापन किया उस पर अब कई सवाल उठ रहे हैं।
इस कार्यशाला के लिए बकायदा अपर जिलाधिकारी दीपेन्द्र सिंह नेगी की ओर से जिला सूचना अधिकारी को पत्र भेज कर कार्यशाला में पत्रकारों को सूचित करते हुए कार्यशाला में प्रतिभाग कराना सुनिश्चित करने का निर्देश दिये गये थे। लेकिन कार्यशाला में जो कुछ हुआ उसने इसके आयोजन के उद्श्यों और अधिकारियों की मंशा पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
कार्यशाला वह होती है जहाँ किसी एक जगह पर बैठककर लोग मिलकर किसी खास विषय पर गहन चर्चा और व्यावहारिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य सीखने, सहयोग करने, समस्या-समाधान और नए विचारों को विकसित करना होता है। लोग अपने ज्ञान और अनुभव को साझा करते हैं। प्रतिभागियों को अपने विचारों को व्यक्त करने और नए समाधानों के बारे में सोचने का मौका मिलता है। विशेषज्ञ या प्रशिक्षक प्रतिभागियों को मार्गदर्शन और प्रशिक्षण देते हैं। यही नहीं कार्यशाला में लोगों को अपने कौशल का अभ्यास करने और नई चीजें सीखने के लिए व्यावहारिक गतिविधियांें के अवसर मिलते हैं। लेकिन यह एक ऐसी कार्यशाला थी जिसके मूल विषय का दूर-दूर तक पता नहीं था। इसीलिए प्रेस वार्ता की तरह आयोजन हुआ और अधिकारी अपनी बात कहकर चलते बने।
आपदा प्रबंधन के जिन चरणों क्रमबद्ध क्रमशः आपदाओं को रोकने अर्थात उनके शमन, आपदा के निपटने की तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति पर जो सीधी बात होनी चाहिये थी, उसके बजाय जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी मीरा रावत ने कार्याशाला का अधिकांश समय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का उद्भव, नीतियां, कार्यकलाप और उत्तरदायित्व, नितियों को बताने में लगाया। अधिनियम की धाराओं, उसके विधिक और प्रशासनिक पक्षों को वे सालाइड शो के माध्यम से बताने में लगी रही। जबकि कार्याशाला में मौजूद लोग ‘‘आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका’’ संबंधी मूल विषय विषयवस्तु की प्रतीक्षा करते रहे।
अलबत्ता स्लाइड शो खत्म होने के बाद जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह ने जरूर कार्यशाला की विषयवस्तु को छुआ लेकिन कार्यक्रम के अध्यक्ष होते हुए वे इस कार्यशाला को पर्याप्त समय नहीं दे सके। जिलाधिकारी के बाद 15वीं एनडीआरएफ बटालियन के अधिकारी कपिल कपिल और एसडीआरएफ के उपनिरीक्षक आशीष त्यागी ने सूक्ष्म संबोधन दिया। जब पत्रकारों की बारी आयी तो पत्रकार अश्वनी अरोड़ा, सुनील पाण्डे और डॉ0 हिमांशु द्विवेदी ही बामुश्किल अपनी बात रख पाये। कई पत्रकार विषय विशेष पर अपनी पर बात रखना चाहते थे लेकिन जिलाधिकारी पौने घंटे में ही यह कहकर निकल लिए कि उन्हें किसी और कार्यक्रम में जाना है। जबकि सभाध्यक्ष का दायित्व होता है कि वह कार्यक्रम का व्यवस्थित तरीके से परिचालन कराये। चर्चाओं को नियंत्रित करे, सभी के लिए एक समान मंच प्रदान करे और यह सुनिश्चित करे कि कार्यक्रम निष्पक्ष रूप से चले, सभाध्यक्ष निष्कर्ष निकालता है और सभी का धन्यवाद करता है। लेकिन कार्यशाला में इसकी नौबत ही नहीं आयी। जिलाधिकारी के उठते ही पूरा सदन उठ गया। जिलाधिकारी ने भी चलते-चलते पत्रकारों को बाइट दी। जिलाधिकारी के सभाकक्ष से बाहर निकलते ही हाल में बैठे लोग भी बाहर निकल गये। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी कार्यशाला को जारी नहीं रख सकी वे भी पत्रकारों को बाइट देने में लग गयी। तब तक पूरा हाल खाली हो गया था जबकि एनडीआरएफ और एसडीआरफ के प्रतिनिधि चुपचाप बैठे रह गये।
यह बड़े आश्चर्य का विषय था कि जिस मुद्दे पर चर्चा के लिए पत्रकारों को आमंत्रित किया गया था उस मुद्दे पर पत्रकारों को अपना पक्ष रखने का अवसर ही नहीं मिला। वैसे भी जिस मीडिया के लिए यह कार्यशाला रखी गयी थी। आपदा में उसकी भूमिका से संबंधित पक्ष, जिसमें आपदा को लेकर जनता को शिक्षित करना, उसे एलर्ट करना, सूचना का प्रसार, आपातकालीन संचार, स्वयं सेवकों को जुटाना, तैयारी को बढ़ावा देना, वास्तविक समय पर सूचना देना, समुदायों को एकजुट करना, मानवीय सहायता तथा भ्रामक और गलत सूचनाओं का रोकना तथा उनका मुकाबला करने जैसे विषय, पत्रकारों की सहभागिता के बिना अछूते रहे।
गौरतलब है किहरिद्वार में गंगा का प्रवाह क्षेत्र, लक्सर खादर की बेल्ट और रूड़की का कुछ क्षेत्र प्रमुखतः प्रतिवर्ष बाढ़ का सामना करता है। गलियारे में बसा हरिद्वार शहर जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण हर वर्ष जलभराव का दंश झेलता है। जब रानीपुर मोड़ पर कारें तैरने लगती हैं, मोतीबाजार में मंशादेवी पहाड़ी की गाद भर जाती है। लोग के घरों, दुकानों मंे पानी भर जाता है ऐसे संकट के समय आपदा प्रबंधन की क्या भूमिका होनी चाहिए इस पर खुल कर कोई बात सामने नहीं आ पायी।
जैविक आपदाओं में फंगल, बैक्टीरिया और वायरल रोग (जैसे बर्ड फ्लू, डेंगू, आदि) का कार्यशाला में जिक्र तक नहीं हुआ। जलीय आपदाओं में बाढ़, के अलावा आंधी, तूफान का किसी ने जिक्र तक नहीं किया। मानव जनित तकनीकी और सामाजिक आपदाओं में औद्योगिक दुर्घटनाएं, परिवहन दुर्घटनाएं, संरचनात्मक विफलताएं और पर्यावरण प्रदूषण अपराध, आतंकवाद, युद्ध, नागरिक अशांति और भगदड़ जैसे विषयों को शामिल कर उन पर भी चर्चा हो सकती थी। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के लिए विषयवस्तु पर नहीं केवल खानापूर्ति के लिए इस कार्यशाला आयोजन किया था।

 

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