Tuesday, July 15, 2025
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स्मृति शेष:प्रोo पूरन चंद्र जोशी

अल्मोड़ा के छोटे से गांव खैराकोट,मनान से दिल्ली यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक कुलपति तक का सफर
-हरीश जोशी
अल्मोड़ा जिले में अल्मोड़ा कोसी कौसानी मोटर मार्ग पर स्थित है पर्वतीय कस्बा मनान। मनान स्टेशन के कोसी नदी के पार्श्व में सड़क मार्ग में गांव है खैराकोट। इसी खैराकोट गांव में वर्ष 1956 में प्रेमबल्लभ जोशी और रेवती जोशी दंपति के घर जन्म हुआ बालक पूरन का।
पूरन का शैशव काल खैराकोट में ही बीता,पिता दिल्ली बिजली बोर्ड में सेवा करते थे तो पूरन की उम्र स्कूल योग्य होने तक ये परिवार दिल्ली में रहने लगा। पूरन की शिक्षा दिल्ली के सरकारी प्राथमिक स्कूलों से आरम्भ हुई। दिल्ली में तब भी आवास वो भी छोटे कर्मचारियों के लिए रही होगी , पूरन के पिता को कई जगह आवास बदलने पड़े और उसी क्रम में पूरन के स्कूल भी बदलते रहे।
स्कूलों में पढ़ते हुए मैं टॉपर छात्र था ऐसा प्रोफेसर पूरन एक हालिया साक्षात्कार में स्वीकारते हैं और उनकी कॉलेज की शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी से एंथ्रोपोलॉजी (मानविकी विज्ञान) में हुई। पी एच डी उपाधि मिलने तक उन्हें गढ़वाल विश्वविद्यालय में एंथ्रोपोलॉजी विभाग का दायित्व मिला,जहां पर आपने वर्ष 1985 से वर्ष 2003 तक उल्लेखनीय योगदान दिया,या यूं कहें कि गढ़वाल विश्वविद्यालय में इस विभाग के अध्ययन अध्यापन को रुचिकर व स्वीकार्य बनाने में प्रोफेसर पूरन चंद्र जोशी का विशेष योगदान आज भी याद किया जाता है।
अपने विभाग के कार्य दायित्व के साथ साथ प्रोफेसर पूरन चंद्र जोशी को सामाजिक सांस्कृतिक जुड़ाव की भी खासी दिलचस्पी थी। गढ़वाल प्रवास दौरान आपने पर्यावरण विद सुन्दर लाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, गौरा देवी आदि के सानिध्य में “डालियों का दगड़िया” जैसी संस्थाओं से जुड़कर पर्यावरणीय जागरूकता की मुहिम को आगे बढ़ाया,और संस्कृतिक संस्था “शैलनट” के माध्यम से थियेटर से भी जुड़े रहे।
वर्ष 2003 में इनकी नियुक्ति दिल्ली यूनिवर्सिटी के मानविकी विभाग में हुई। जहां पर आपने देश विदेश में खासी ख्याति प्राप्त की। और दिल्ली यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक कुलपति का दायित्व भी निभाया,और अनेकों नामचीन संस्थाओं के परामर्श दाता और सलाहकार भी रहे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रोफेसर पूरन चंद्र जोशी का बीती रात दिल्ली में आकस्मिक निधन हो गया है जो शैक्षिक व सामाजिक जगत में एक विराट शून्य छोड़ गए हैं।उनके जानने व चाहने वाले लोगों ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए इसे अपूरणीय क्षति करार दिया है।
अंतराष्ट्रीय छवि के बाद भी प्रोo पूरन का अपने पैतृक गांव मनान से सतत जुड़ाव बना रहा।कुमाऊनी बोली को आपने व्यवहार में तरजीह दी,संघर्षों के बावजूद इतने बड़े पद तक पहुंचे प्रोo पूरन चन्द्र जोशी के निधन से पैतृक गांव मनान में शोक की लहर है उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में ही किया गया ।

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