Haridwar में ‘आपदा कार्यशाला ’ के नाम पर संवाद की, रश्म अदायगी
हरिद्वार. जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा आयोजित “आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका” विषय पर कार्यशाला एक गंभीर विषय होते हुए भी सिर्फ एक औपचारिक विज्ञप्ति तक सीमित होकर रह गई। आयोजन स्थल पर 150 से अधिक पत्रकार पहुंचे थे. मंच पर जिलाधिकारी कुमेन्द्र सिंह की अध्यक्षता रही, लेकिन जैसी उम्मीद थी—वैसा संवाद नहीं हो सका।
आपदा प्रबंधन पर गंभीर कार्यशाला बनी औपचारिकता का शिकार
कार्यशाला की संपूर्ण रूपरेखा मीरा रावत द्वारा प्रस्तुत की गई, जिसमें एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के विशेषज्ञों ने भी हिस्सा लिया। लेकिन जब मंच से जिलाधिकारी महोदय ने ‘सही समय पर सही सूचना’ देने की महत्ता बताकर अपनी बात समाप्त की और अन्य कार्यक्रम के लिए रवाना हो गए—तो सारा आयोजन ढह सा गया।
क्या सिर्फ डीएम को दिखाने आए थे पत्रकार? तीर्थ नगरी के हित पर मौन क्यों?
दो पत्रकारों की आवाज, बाकी ‘भीड़’ बनकर रह गए
कार्यशाला में केवल दो पत्रकारों के सुझाव लिए गए—वरिष्ठ पत्रकार सुनील दत्त पांडे और अश्वनी अरोड़ा। दोनों ने शहरी नालों और खड़खड़ी सुखी नदी में अवैध पार्किंग को लेकर गंभीर सवाल उठाए। सोशल मीडिया पर भ्रामक खबरों की रोकथाम की जरूरत पर भी बल दिया गया।
लेकिन जैसे ही जिलाधिकारी कार्यक्रम से उठे—वैसे ही मंच से संवाद उठ गया। पत्रकारों की भीड़ एका एक ‘नो-दो-ग्यारह’ हो गई। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आपदा प्रबंधन अधिकारी मंच पर ही रह गए और शेष हाल खाली!
गंभीर विषय, खोखला संवाद—आपदा प्रबंधन की कार्यशाला पर सवालों की बाढ़
तीर्थ नगरी की सुरक्षा पर चर्चा होनी थी, पर हुआ मौन
यह कार्यशाला हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थल की आपदाजन्य तैयारियों और चुनौतियों पर मंथन का मंच बन सकती थी। जलभराव, अवैध निर्माण, अतिक्रमण, श्रद्धालुओं की सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय विचार के लिए प्रतीक्षित रहे। कई वरिष्ठ पत्रकार तीर्थ नगरी के हित में अपने सुझाव देने को आतुर थे—लेकिन मंच उन्हें सुनने से पहले ही “राह से हट” गया।
कड़े सवाल, जिनका उत्तर कोई नहीं दे रहा:
अगर जिलाधिकारी को समय नहीं था तो इस कार्यशाला की तारीख ही क्यों रखी गई?
क्या कार्यशाला का उद्देश्य केवल ‘फोटो सेशन’ और प्रेस विज्ञप्ति था?
क्या आपदा प्रबंधन विभाग ने डीएम की समय-संभावना को बिना जांचे ही आयोजन तय कर दिया?
क्या पत्रकार केवल डीएम को दिखाने और चाय पीने आए थे?
जो पत्रकार सिर्फ डीएम के उठते ही चले गए, क्या उन्हें पत्रकारिता से कोई लेना-देना है?
जवाब मांगता है आयोजन का यह मखौल
इस कार्यशाला में काफी बजट खर्च हुआ, लेकिन उसका परिणाम शून्य रहा। संवाद नहीं हुआ, सुझाव नहीं लिए गए और जवाबदेही नदारद रही। यह सवाल उठता है कि जब इतनी बड़ी जिम्मेदारी पर तैनात लोग ही सजग न हों, तो आपदा के समय तीर्थ नगरी का क्या होगा?
क्या हरिद्वार को एक गंभीर आपदा के बाद ही जागना होगा? या ऐसी कार्यशालाओं को गंभीरता से लेने की परंपरा अब शुरू की जाएगी?
रामेश्वर गौड़
स्वतंत्र पत्रकार |Haridwar