मीरा बहन, जिनके विदेशी शरीर में भारत की आत्मा बसती थी
लेखन/संकलन : त्रिलोक चन्द्र भट्ट
भारत के प्रति अपनी सेवाओं के लिए समर्पित और ‘पद्मविभूषण’ की उपाधि से सम्मानित मीरा बहन का नाम समाज सेवा में सक्रिय चोटी के लोगों में शुमार है। उत्तराखण्ड के ऋषिकेश में आज भी मीरा बहन द्वारा बसाया ‘पशुलोक’ नामक स्थान तो है मगर उनकी कुटिया का कहीं नामोनिशान भी नहीं है। मीरा बहन मानव जीवन में सौ साल का सफर तय करने वाली ‘मेडेलीन स्लेड’ नामक ब्रितानी महिला महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर भारत आई और उत्तराखण्ड में उन्हें भारत के अनुपम सौन्दर्य के दर्शन हुए। इस सौन्दर्य ने उन्हें पहाड़ों से बाँध दिया। प्रकृति के साथ-साथ वे गाँधी जी और उनके विचारों से विशेष रूप से प्रभावित थी। उन्हें लगता था कि वे भारत के लिए ही बनी हैं और पूर्व जन्म में वे भारत की ही आत्मा रही होंगी लेकिन उन्हें जन्म से केवल विदेशी शरीर मिला। भारत में उनकी अटूट श्रद्धा और मीरा की तरह अपने कार्य में लगन देखकर गाँधी जी ने उन्हें ‘मीरा’ नाम दे दिया था। बस फिर क्या था वें सभी के लिए ‘मीरा बहन’ बनकर रह गयी।
सन् 1882 में लंदन के एक सम्भ्रांत परिवार में जन्मी ‘मेडेलीन स्लेडश् को संगीत से विशेष लगाव था। संगीत के प्रति अपनी रूचि के कारण वे पश्चिम के महान संगीतज्ञ बीथोवन के संगीत से जुड़ी रहीं। महात्मा गाँधी को ईसा मसीह का दूसरा रूप मानने वाले विश्वविख्यात फ्रांसिसी दार्शनिक और साहित्यकार ‘रोमां रोलाश् के सानिध्य में भी वे रही। उन्हीं से ‘मेडेलीन स्लेडश् को गाँधी जी के जीवन चरित्र के बारे में पता चला। महात्मा गाँधी की सादगी, अछूतोद्धार और सत्याग्रह के बारे में जान कर उनका मन गाँधी से मिलने के लिए लालायित रहने लगा। अपने मन की बात जब एक दिन मेडेलीन ने रोमां रोला को बताई तो उन्होंने इस बारे में महात्मा गाँधी को बताया।
सन् 1925 में उन्होंने महात्मा गाँधी को पत्र लिख कर उसके भारत आने की सूचना दी कि ‘’कु0 मेडेलीन स्लेड जिसे आपने कृपा पूर्वक अपने आश्रम में रहने की अनुमति दी है शीघ्र ही साबरमती पहुँच रही है। वह मेरी बहन की प्रिय मित्रा है। मैं खुश हूँ कि वह आपके सानिध्य में आ रही है।श्श् समुद्री मार्ग से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर मुम्बई बन्दरगाह पर पहुँची मेडेलीन स्लेड की अगवानी देवदास गाँधी और दादा भाई नौरोजी के पारिवारिक लोगों ने की। अगले दिन अहमदाबाद पहुँचने पर स्टेशन पर महादेव देसाई, सरदार बल्लभ भाई पटेल और स्वामी आनन्द ने भारत भूमि पर कदम रखने वाली अपने इस विदेशी मेहमान की अगवानी की। भारत की ध्रती और यहाँ की संस्कृति उन्हें इतनी भाई कि वह यहीं की हो कर रह गई और जीवन के 34 बसन्त भारत भूमि पर ही बिताये। महात्मा गाँधी की सेवा मे उन्होंने काफी दिन बिताये। निश्छल और समर्पित भाव से की गई सेवा के कारण महात्मा गाँधी से ‘मेडेलीन स्लेडश् को ‘मीराश् नाम मिला। तभी से वह ‘मीरा बहनश् हो गई।
भारत में रहते हुए उत्तराखण्ड की प्रकृति से भी उनका इतना लगाव बढ़ा कि वे वर्षों तक पहाड़ों की वादियों में रह कर जनसेवा करती रहीं। सन् 1944 में जब वे महात्मा गाँधी के साथ जेल से रिहा हुई तो उनके मन में सेवा केन्द्र स्थापित करने की प्रबल इच्छा थी। गाँधी जी को अपना मन्तव्य बताने के बाद सेवा केन्द्र स्थापित करने की इच्छा से उन्होंने उत्तराखण्डथ की ओर रूख किया। वे हरिद्वार-रूड़की के मध्य मूलदासपुर गाँव में पहुँची, गाँव के प्रमुख अमीर सिंह ने सेवा केन्द्र के लिए उन्हें 10 एकड़ जमीन दी। मीरा बहन द्वारा यहाँ स्थापित ‘किसान आश्रमश् शीघ्र ही अपने उद्देश्यों को पूरा करने लगा। उन्होंने यहाँ पर आयुर्वेदिक चिकित्सालय व गौशाला खोली और खादी वस्त्र उत्पादन शुरू करवाया। इससे आश्रम की जरूरतों के लिए कुछ आर्थिक सहायता प्राप्त होने लगी।
इसी बीच ‘अधिक अन्न उपजाओश् अभियान के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें अवैतनिक सलाहकार नियुक्त किया। उन दिनों केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकारें विकास की दृष्टि से कुछ नई योजनाओं का शुभारम्भ करना चाहती थी। गम्भीरता पूर्वक इन योजनाओं के अध्ययन के उपरान्त मीरा बहन ने किसान आश्रम को उत्तर प्रदेश सरकार के ग्राम्य विकास विभाग को सौंपने का प्रस्ताव तैयार कर उसे सरकार के सामने रखा। उन्होंने पशुओं की नस्ल सुधरने की एक योजना तैयार की और इसे स्वीकृति के लिए केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकारों को भेजा। सन् 1948 में सरकार ने इनकी योजना को स्वीकार कर लिया और इसी वर्ष वन विभाग ने ऋषिकेश के पास 2,146 एकड़ जमीन लीज़ पर दी। वन-विभाग की इस निष्प्रयोज्य भूमि को ‘पशु लोकश् नाम देकर यहाँ अशक्त, बूढ़ी तथा दूध न देने वाली गायों की योजनाएँ प्रारम्भ की गई। पशु लोक के निकट ही मीरा बहन ने तीन दर्जन भूमिहीन लोगों की सहकारी समिति बनाकर सामूहिक कृषि के लिए प्रत्येक परिवार को 10-10 एकड़ भूमि जमीन उपलब्ध् करा कर एक आदर्श गाँव स्थापित किया। महात्मा गाँधी के नाम पर इस गाँव का नाम ‘बापू ग्रामश् रखा।
सन् 1947 में कुछ समय उन्होंने उत्तरकाशी में बिताया लेकिन वहाँ की जलवायु अनुकूल न होने के कारण अधिक समय तक वहाँ नहीं रह पाई। उन्होंने कुछ समय टिहरी नरेश के प्रताप नगर स्थित अतिथि गृह में भी बिताया। 15 अगस्त सन् 1947 को जब भारत गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुआ उस दिन मीरा बहन नरेन्द्र नगर में थी। कुछ समय बाद दिल्ली जाकर वहाँ के बिड़़ला हाउस में ठहरी। करीब एक महीना उन्होंने पिलानी में भी बिताया। दिसम्बर 1947 को जब वे पशुलोक लौटकर आई तो वहाँ उन्हें गाँधी जी की हत्या का हृदय विदारक समाचार सुनने को मिला। वहीं रहकर उन्होंने पशुलोक सेवा मण्डल के द्वारा गरीबों की सेवा करने की सोची और उसका उद्घाटन भी डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद से करवाया लेकिन धीरे-धीरे वहाँ के रवैये से ऊबकर मीरा बहन वह जमीन राज्य सरकार को लौटाने का निश्चय कर टिहरी में आ गयी। वहाँ वन विभाग द्वारा उन्हें दो एकड़ जमीन लीज पर दी गई। इसके बाद वहीं रहते हुए मीरा बहन ने सम्पादन के
क्षेत्र में भी कार्य किया और 1953 में एक पत्रिका का सम्पादन प्रारम्भ किया जिसका नाम उन्होंने गाँधी जी के नाम पर बापू राज पत्रिकाश् रखा। लेकिन वहाँ भी राजनैतिक रवैये से ऊबकर मीरा बहन कश्मीर चली गई। सन् 1954 में कश्मीर में जिस स्थान पर वे रही उस श्कंगनश् नामक स्थान का नाम बदलकर उन्होंने ‘गऊबलश् रखा। वहाँ पर वे 1956 तक रही लेकिन कहीं भी उनके मन को शांति नहीं मिल पाई। उसके बाद वे टिहरी गढ़वाल में चम्बा के निकट रानीचौरी के पास मोलधर गाँव में भी रही। तत्पश्चात् 28 जनवरी 1959 को वे इंग्लैण्ड वापस लौट गई। वहाँ कुछ समय पश्चात् रुक कर आस्ट्रिया चली गई। वहीं पर इन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली।