उत्तराखण्ड की नई प्रेस मान्यता नियमावली के लिए नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने दिये संशोधन प्रस्ताव
देहरादून/हरिद्वार। उत्तराखण्ड की प्रस्तावित प्रेस प्रतिनिधि मान्यता नियमावली-2022 को लेकर सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा सार्वजनिक सूचना के माध्यम से मांगे गये सुझावों के क्रम में नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (एनयूजे उत्तराखण्ड) ने पत्रकारों के हित में अनेक संशोधन प्रस्ताव पेश किये हैं।
यूनियन के संरक्षक त्रिलोक चन्द्र भट्ट एवं अध्यक्ष सुरेश पाठक की ओर से महानिदेशक सूचना को भेजे संशोधन प्रस्ताव में यूनियन ने कहा है कि सूचना विभाग मेें प्रेस प्रतिनिधियों को शासकीय नीतियों, जन कल्याणकारी योजनाओं, कार्यक्रमों की कवरेज व समाचारांे के संकलन के प्रयोजन से मान्यता दिये जाने हेतु प्रस्तावित नियमावली, प्रेस प्रतिनिधियों की मान्यता के लिए सरल, और उनके हितों को संरक्षण प्रदान करने वाली होनी चाहिए। त्रिलोक चन्द्र भट्ट ने प्रस्तावित अधिसूचना के अंतर्गत राज्य में मीडिया प्रतिनिधियों को मान्यता देने हेतु सलाह के लिए गठित की गई समिति ‘सलाह’ शब्द को विलोपित करने का सुझाव दिया है। यूनियन द्वारा सक्रिय पत्रकार के किसी अन्य व्यवसाय में लिप्त न होने तथा ‘गैर सरकारी’ और ‘निजी’ शब्द को विलोपित करते करने का आग्रह करते हुए कहा गया है कि उसे ‘सरकारी कार्यालयों, स्थानीय निकायों, अर्द्ध सरकारी प्रतिष्ठानों तथा सरकार द्वारा संचालित निगमों का कर्मचारी नहीं होना चाहिए’’। कहा गया है कि उसे ‘‘सरकारी/अर्द्ध शासकीय संस्थानों/निगम/बोर्ड/परिषद में नियुक्त अथवा सेवांत लाभ के रूप में मिलने वाली सर्विस पेंशनभोगी नहीं होना चाहिए।
वेब पोर्टल से प्रेस मान्यता के मामले में उत्तराखण्ड के पर्वतीय परिवेश का हवाला देते हुए प्रतिमाह एनांलिटिक यूजर डाटा एवं वार्षिक टर्नओवर को कम किये जाने की आवश्यकता बतायी है। यूनियन ने जहां प्रेस मान्यता समिति में गैर सरकारी सदस्यों की न्यूनतम संख्या छह की जरूरत बतायी है, वहीं प्रेस मान्यता राज्य का अधिकार और विषय बताते हुए श्रम विभाग उत्तराखण्ड से पंजीकृत प्रिंट मीडिया संगठनों से 3 प्रतिनिधि लेने और उन संगठनों को अधिमान दियेे जाने की बात कही गयी है जो राज्य के 13 जनपदों अथवा अनुपालिक रूप से अधिक जनपदों में सक्रिय हों। यह भी कहा गया है कि तहसील स्तरीय मान्यता के लिए संबंधित पत्रकार का निवास तहसील में ही निवास होना चाहिए। यूनियन ने राज्यस्तरीय मान्यता के लिए आवेदन करने की तिथि को आवेदक की पूर्णकालिक श्रमजीवी/सक्रिय पत्रकार के रूप में पत्रकारिता का न्यूनतम 10 वर्ष रखने की बात कही है। प्रेस मान्यता के लिए शैक्षिक योग्यता को उचित ठहराया गया है, लेकिन यह भी कहा गया है कि पुराने मान्यता प्राप्त पत्रकार जिनके शैक्षिक अभिलेख किसी कारणवश क्षतिग्रस्त या अनुपलब्ध हों उनकी मान्यता पर विचार किया जाना चाहिए।
यूनियन की ओर से दूरदर्शन/आकाशवाणी के नियमित आवेदकों को मान्यता देने में बारे में कहा है कि कार्यरत नियमित कार्मिक कंेद्र सरकार के राजकीय कर्मचारी हैं। अतः केन्द्र प्रमुख की संस्तुति पर अधिमान्यता (शासकीय श्रेणी में) प्रेस मान्यता प्रदान करने का प्राविधान रखा जाता है तो यह दूसरे राजकीय कर्मचारियों के लिए भी इसे लागू किया जाना चाहिए। उन्होंनेे यह भी सुझाव दिया है कि दूरदर्शन/आकाशवाणी/प्रिंट एंव इलेक्ट्रॉनिक न्यूज एजेंसी में अंशकालिक रूप में नियुक्त ऐसे कार्मिक जो अन्य किसी व्यवसाय में भी संलग्न हों की मान्यता अनुमन्य किये जाने का विचार किया जायेगा तो ऐसे मामले में सामान्य पत्रकारों के मामलों को भी लिया जाना चाहिए।
पत्र में इस बात को भी प्रमुखता से उठाया गया है कि उत्तराखण्ड से प्रकाशित एबीसी/आरएनआई प्रसार संख्या प्रमाणित अथवा 75 हजार से अधिक प्रसार संख्या वाले दैनिक समाचार पत्रों के संपादकों जिनका नाम समाचार पत्र की प्रिंट लाइन में प्रकाशित होगा को भी अधिमान्यता समिति की बैठक की निर्धारित प्रक्रिया से समानरूप से गुजरना चाहिए। साप्ताहिक, पाक्षिक समाचार पत्रों हेतु मान्यता के लिए स्वामी और संपादक, संवाददाता भिन्न-भिन्न व्यक्ति होने पर संपादक एवं प्रतिनिधि की औपचारिक नियुक्ति एवं उसका पूर्णकालिक वेतन भोगी के साथ नियमित मानदेय पर अनुबंधित वालों को भी मान्यता देने की बात कही गयी है।
महासचिव अरूण मोगा ने प्रेस मान्यता समिति में चार पत्रकार सदस्य रखने, शपथ पत्र की जगह एलआईयू जांच, पूर्व की भांति नवीनीकरण तथा वयोवृद्ध पत्रकारों का आवेदन के बिना नवीनीकरण का सुझाव दिया है।