Friday, November 8, 2024
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उत्तराखण्ड के पहले वैज्ञानिक के रूप में पदमश्री से सम्मानित नीलाम्बर जोशी

-त्रिलोक चन्द्र भट्ट
यह मानव की फितरत में शामिल रहा है कि वह नई-नई खोजों के द्वारा अपनी जिज्ञासा को शान्त करता आया है। धरती से लेकर पाताल तक, सूर्य से चन्द्रमा तक ग्रह, नक्षत्र आदि सभी पर वह विजय प्राप्त करना चाहता है। किसी पद या सम्मान से लालायित होकर इतना ही नहीं अपितु मृत्यु को भी अपने वश में करने की उसकी प्रवृत्ति रही है। इसी पथ के पथिक, अपनी बुद्धि बल से विज्ञान में खयाति अर्जित कर सन्‌ 1984 में उत्तराखण्ड  के पहले वैज्ञानिक के रूप में ‘पदमश्री’ से सम्मानित नीलाम्बर जोशी ने यह साबित कर दिखाया कि मंजिल चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो अगर हौंसला बुलंद हो तो राहें खुद-ब-खुद आसान हो जाती हैं। 

बचपन से ही विज्ञान के प्रति रूचि उन्हें सफलता के उस शिखर पर ले गयी जहाँ उन्हें ‘पद्मश्री’ प्राप्त करने वाले उत्तराखण्डक के पहले ख्याति प्राप्त अंतरिक्ष वैज्ञानिक का गौरव मिला। प्रो0 जोशी ने विभिन्न संस्थाओं से कई अन्य सम्मान भी प्राप्त किये हैं जिनमें 1975 में श्री हरिओम आश्रम प्रीरित द्वारा डा0 विक्रम साराभाई अनुसंधान पुरस्कार और 1995 में एयरोनाटिकल सोसाइटी आफ इण्डिया द्वारा प्रदान किया गया डॉ0 बिरन राय अंतरिक्ष पुरस्कार विशेष उल्लेखनीय हैं।
25 जुलाई 1931 को अल्मोड़ा में जन्मे नीलाम्बर जोशी को प्रारम्भ से ही विज्ञान के प्रति काफी लगाव था इसी लिए पढ़ाई के लिए उन्होंने विज्ञान विषय ही चुना। इन्टर की पढ़ाई के बाद इन्होंने विशेष रूप से भौतिक विज्ञान को ही अपना मुखय विषय चुना। बी0एस0सी0 करने के बाद 21 वर्ष की आयु सन्‌ 1952 में लखनऊ विश्व विद्यालय से भौतिक विज्ञान (वायरलेस) में एम0एस0सी0 की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1971 में जब पूना के निकट आर्वी में देश में पहले प्रयोगात्मक उपग्रह संचार ‘पृथ्वी स्टेशन’ की स्थापना की जा रही थी तब नीलाम्बर जोशी भी इस स्टेशन को स्थापित करने वाले दल में शामिल थे। उनकी कार्यशैली और योग्यताओं को देखते हुए योजना को पूरा करते समय इन्हें मुख्य प्रक्रिया इंजीनियर का दायित्व सौंपा गया।
1974-75 में जोशी जी के दिशा निर्देशन में मेजर अर्थ स्टेशन सब-सिस्टम सफलतापूर्वक विकसित हुआ। तदोपरान्त भारत के दिल्ली, अहमदाबाद और अमृतसर शहरों में पृथ्वी केन्द्रों में सैटेलाइट इन्सट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरीमेन्ट साइट स्थापित किये गए। सेवाकाल के दौरान नीलाम्बर उन्नत तकनीक विकसित करने की दिशा में सतत्‌ प्रयत्नशील रहे। इन्हें प्रायोगिक संचार पृथ्वी केन्द्र, अहमदाबाद का निदेशक और संचार क्षेत्र भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधन संगठन के अंतरिक्ष प्रायोगिक केन्द्र, अहमदाबाद का भी अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1977 में ये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सार केन्द्र के निदेशक बने। इन्हीं के निर्देशन में एस0एल0वी0-3 का सपफल परीक्षण हुआ। इसके बाद रोहिणी श्रृंखला के तीन उपग्रह कक्षा में स्थापित किये गये तथा भाष्कर, रोहिणी और एप्पल उपग्रह भी सार केन्द्र से सपफलता पूर्वक संचालित किए गये। सन 1985 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, उपग्रह केन्द्र, बंगलौर के निदेशक बनने के बाद देश की आई0आर0एस0, एस0आर0ओ0एस0एस0 तथा इन्सेट-2 जैसी बड़ी उपग्रह परियोजनाएँ प्रोफेसर जोशी के निर्देशन में ही तैयार की गई। 17 मार्च 1988 को प्रक्षेपित आई0आर0एस0 श्रृंखला के पहले उपग्रह के बाद विभिन्न उपयोगों के लिए अन्य श्रृंखलाओं का विकास हुआ। भारत ने इन्सेट-1 नामक जिस बहुद्देशीय उपग्रह को प्रक्षेपित किया उसकी कार्यविधियों के निरीक्षण के लिए इन्हें प्रोजेक्ट मैनेजमेन्ट बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। मई 1990 में नीलाम्बर जोशी को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधन संगठन के उपाध्यक्ष बनने का भी अवसर मिला। करीब सवा साल इस पद पर रहने के बाद 31 जुलाई 1991 को प्रोफेसर जोशी ‘इसरो’ से सेवा निवृत्त हुए।

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