20 साल में उत्तर भारत ने बर्बाद कर दिया 450 घन किमी भूजल
-केसर सिंह
आने वाले दिनों में जल संकट गहरा सकता है। क्योंकि धरती के नीचे पानी का तेजी से घट रहा है। यह जानकारी एक स्टडी में सामने आई है। स्टडी के मुताबिक उत्तर भारत में साल 2002 से लेकर 2021 तक लगभग 450 घन किलोमीटर भूजल (ग्राउंड वाटर) घट गया और निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी मात्रा में और भी गिरावट आएगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान के ‘विक्रम साराभाई चेयर प्रोफेसर’ और अध्ययन के मुख्य लेखक विमल मिश्रा ने बताया कि यह भारत के सबसे बड़े जलाशय इंदिरा सागर बांध की कुल जल भंडारण मात्रा का करीब 37 गुना है। शोधार्थियों ने स्टडी के दौरान यह पता लगाया कि पूरे उत्तर भारत में 1951-2021 की अवधि के दौरान मानसून के मौसम (जून से सितंबर) में बारिश में 8.5 प्रतिशत कमी आई। इस अवधि के दौरान इस क्षेत्र में सर्दियों के मौसम में तापमान 0.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है।
बारिश में कमी
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान के ‘विक्रम साराभाई चेयर प्रोफेसर’ और अध्ययन के मुख्य लेखक विमल मिश्रा की स्टडी में बारिश में 8.5 प्रतिशत की कमी पता किया गया है। अध्ययन के दौरान छात्रों ने स्टडी के दौरान यह जानकारी प्राप्त की कि पूरे उत्तर भारत में, 1951-2021 की अवधि में, मानसून के मौसम (जून से सितंबर) में बारिश में 8.5 प्रतिशत की कमी आई।
रिचार्ज में कमी रनऑफ में बढ़ोंत्तरी
ग्राउंड वाटर रिचार्ज में कमी हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के शोधार्थियों के दल ने कहा कि मानसून के दौरान कम बारिश होने और सर्दियों के दौरान तापमान बढ़ने के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ेगी और इसके कारण ग्राउंड वाटर रिचार्ज में कमी आएगी, जिससे उत्तर भारत में पहले से ही कम हो रहे भूजल संसाधन पर और अधिक दबाव पड़ेगा।
सिंचाई के लिए मांग भूजल की मांग बढ़ेगी
शोधार्थियों ने 2022 की सर्दियों में अपेक्षाकृत गर्म मौसम रहने के दौरान यह पाया कि मानसून के दौरान बारिश कम होने से फसलों के लिए भूजल की अधिक जरूरत पड़ती है और सर्दियों में तापमान अधिक होने से मिट्टी अपेक्षाकृत शुष्क हो जाती है, जिस कारण फिर से सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। स्टडी के मुताबिक, ‘‘जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के दौरान बारिश की कमी और उसके बाद सर्दियों में अपेक्षाकृत तापमान अधिक रहने से ग्राउंड वाटर रिचार्ज में लगभग 6-12 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है।‘’ मिश्रा ने कहा, ‘‘इसलिए हमें अधिक दिनों तक हल्की वर्षा की आवश्यकता है।’’ भूजल के स्तर में परिवर्तन मुख्य रूप से मानसून के दौरान हुई वर्षा तथा फसलों की सिंचाई के लिए भूजल का दोहन किये जाने पर निर्भर करता है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि सर्दियों के दौरान मिट्टी में नमी में कमी आना पिछले चार दशकों में काफी बढ़ गई है, जो सिंचाई की बढ़ती मांग की संभावित भूमिका का संकेत देती है।
सिंचाई के लिए पानी की मांग में वृद्धि
सिंचाई के लिए पानी की मांग 20 प्रतिशत तक और बढ़ेगी। अध्ययन में आया कि 2009 में लगभग 20 प्रतिशत कम मानसून और उसके बाद सर्दी में तापमान में एक डिग्री की बढ़ोतरी ने भूजल भंडारण पर हानिकारक प्रभाव डाला और इसमें 10 प्रतिशत की कमी आई। पिछले चार दशकों में सर्दियों के दौरान मिट्टी में नमी की कमी भी काफी बढ़ गई है। अध्ययनकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि निरंतर गर्मी के कारण मानसून 10-15 प्रतिशत तक शुष्क रहेगा और सर्दियां एक से पांच डिग्री सेल्सियस तक गर्म रहेंगी। इससे सिंचाई के लिए पानी की मांग में छह से 20 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
नीतिगत फैसले लेने का समय
विमल मिश्रा की स्टडी में कहा गया है कि निष्कर्षों में नीतिगत निहितार्थ हैं क्योंकि इस साल की गर्मी के दौरान देखा गया जल संकट भूजल के सतर्क और विवेकपूर्ण दोहन की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। लेखक ने कहा, भारत में खाद्य और जल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूजल, सिंचाई और उद्योग की बढ़ती मांग के कारण गर्म जलवायु में अधिक महत्वपूर्ण संसाधन बन जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि सतही जल भंडारण, जैसे जलाशयों और बांधों में, गर्मियों के दौरान मांगों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है, जैसा कि दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों में देखा गया है। संसाधन पर ध्यान न देने से भविष्य में जल सुरक्षा चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।
स्रोत – भाषा की रिपोर्ट