रोडवेज के पास घाटे से उबरने को केवल वीआरएस का सहारा

अपनी स्थापना के समय से ही लगातार घाटे का सामना कर रहे उत्तराखण्ड रोडवेज का अब दम फूल गया है। घाटा कम होने के बजाय लगातार बढ़ता जा रहा है कोरोनाकाल में यह स्थिति और खराब हो गयी है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद कर्मचारियों को वेतन तो मिला है लेकिन वह भी राज्य सरकार से मिली मदद के आधार पर दिया गया है। हाईकोर्ट ने सरकार को रोडवेज के सुचारू संचालन के लिए एक ठोस सुधारीकरण योजना बनाने के आदेश दिए थे। जिसके क्रम में अब स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति की योजना बनाई गई है। इसीलिए रोडवेज प्रबंधन अपने 800 कार्मिकों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति देने की तैयारी में जुटा है। इसके अलावा रोडवेज के पास विकल्प भी नहीं बचा है। वर्तमान समय में रोडवेज का प्रतिमाह वेतन खर्च करीब 20 करोड़ रुपये है। वीआरएस व अन्य मदों में सरकार रोडवेज को 173 करोड़ रुपये देने को राजी है। इसके अलावा 40 करोड़ रुपये विश्व बैंक से भी मिल जाएंगे। ऐसे में वीआरएस देने के अलावा प्रबंधन के पास रोडवेज के सुधार का कोई उपाय नहीं बचा है। अगर 800 कर्मचारी वीआरएस लेते हैं तो इन्हें तत्काल ग्रेच्युटी और नगदीकरण का एकमुश्त लाभ देने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही सेवाकाल के शेष वर्षों की एवज में मौजूदा प्रतिमाह वेतन का 25 फीसद भुगतान भी किया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो रोडवेज को प्रतिमाह वेतन में साढ़े चार करोड़ की बचत होगी।

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