Tuesday, June 17, 2025
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शिक्षा, सेवा क्षेत्र में आजीवन समर्पित रहे पद्मश्री शुकदेव पाण्डे

लेखन/संकलन: त्रिलोक चन्द्र भट्ट

अपनी प्रतिभा और कर्तव्यनिष्ठा से महामना मदन मोहन मालवीय तथा प्रतिष्ठित बिरला घराने को प्रभावित कर शैक्षिक उन्नयन और समाजसेवा को अपना ध्येय बनाने वाले शिक्षाविद् शुकदेव पाण्डे का जन्म सन्‌ 1893 में देहरादून में हुआ। अल्मोड़ा के मूल निवासी सुखदेव पांडेय 1956 में उत्तराखंड से पद्मश्री पाने वाले प्रथम व्यक्ति थे। 
गणित और भौतिक ज्यामिति की 4, 400 शब्दों की शब्दावली लिखने और गणित बीज गणित तथा त्रिकोणमिति की पुस्तकों का प्रणयन कर खयाति पाने वाले शुकदेव पाण्डे की प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई। वहीं से उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा के लिए वे इलाहाबाद गये सन्‌ 1917 में म्योर कालेज से गणित में एम0एस0सी0 करने के उपरान्त अगले ही वर्ष 1918 में इन्हें बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में गणित के सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति मिल गई। सेवाकाल में ही उन्होंने विश्वविद्यालय में एन0सी0सी0 के ऑफीसर कमांडिग रहते हुए अपने दायित्वों का बखूबी निर्वाह किया। इन्होंने प्रसिद्ध गणितज्ञ डा0 गणेश प्रसाद के निर्देशन में शोध भी किया। शुकदेव पाण्डे की प्रतिभा और कर्तव्यनिष्ठा ने महामना मदन मोहन मालवीय को ही नहीं विश्व प्रसिद्ध प्रतिष्ठित बिरला घराने को भी प्रभावित किया। उनसे स्व0 घनश्याम दास बिरला इतने प्रभावित हुए कि वे पिछड़े हुए अपने पैतृक निवास शेखावटी क्षेत्र को शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत देखने की कामना के साथ मदन मोहन मालवीय से आग्रह कर पाण्डे जी को पिलानी ले गये।
घनश्याम दास बिरला ने उन्हें ‘बिरला इन्टरमीडिएट कालेज' का प्रधनाचार्य और ‘बिरला एजूकेशन ट्रस्ट' का सचिव नियुक्त किया। अपनी लगन व मेहनत से शुकदेव पाण्डे ने शेखावटी क्षेत्र की तस्वीर बदल दी। उन्होंने थोड़े ही समय में वह सब कर दिखाया जिस उम्मीद के साथ घनश्याम दास बिरला उन्हें पिलानी लाये थे। शुकदेव जी बाल शिक्षा के पक्के समर्थक थे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्रा में विद्यार्थियों के लिए अनेक सुविधाएँ प्रदान की। ये एक बार जो ठान लेते थे उसे करके ही दम लेते थे। अपनी मेहनत और लगन के बल पर 50 मील के क्षेत्रा में 400 विद्यालयों की स्थापना करने और बच्चों को विद्यालय जाने के लिए प्रेरित करने का श्रेय पाण्डे जी का ही था। हजारों विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने वाले इन विद्यालयों और पाण्डे जी की मेहनत देख कर घनश्याम दास प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। 35वें वर्ष जब बिड़ला एजूकेशन ट्रस्ट का दीक्षान्त समारोह हुआ तो सुखदेव पाण्डे को बतौर ‘एमरायट्स प्रोफेसर' सम्मानित किया गया। पाण्डे जी भी जीवन के 37 वर्षों तक पिलानी में ‘बिड़ला एजूकेशन ट्रस्ट' से जुड़े रह कर सेवा कार्य करते रहे। ज्ञान और प्रतिभा की पाण्डे जी में कोई कमी नहीं थी। सौंपे गये किसी भी कार्य को पूरा करने में वे कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते थे। उनके कार्य करने के तौर तरीकों और कर्तव्यनिष्ठा के कारण ही द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्हें पिलानी में खोले गये नावल प्रशिक्षण केन्द्र भ्प्ड का आनरेरी प्रधनाचार्य नियुक्त कर लेफ्टीनेन्टौ कमान्डर का मानद पद दिया गया था।
विज्ञान, तकनीकी एवं कृषि से सम्बन्धित विभिन्न संस्थान के अध्ययन के लिए उन्होंने कई बार विदेश यात्राएं की। वे लन्दन, बर्किघम, आक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय भी गये। इस दौरान उन्होंने पब्लिक स्कूलों, ग्रामीण कालेजों, विगलांग बच्चों के स्कूलों व प्रसार-प्रशिक्षण केन्द्रों आदि मंर जाकर वहाँ की शैक्षिक पद्धति का अध्ययन तथा पेरिस सिटी विश्व विद्यालय, जर्मनी के हेल्डेवलर्ग, बान और म्यूनिख विश्व विद्यालयों का कामकाज देखा। शुकदेव पाण्डे ने 1961 में जापान, अमेरिका, इंगलैंड, फ्रॉंस, जर्मनी, स्वीटजरलैंड, आस्ट्रिया, हालैण्ड, डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन, इटली और यू0एस0एस0आर0 का भ्रमण कर विभिन्न विश्व विद्यालयों के शिक्षाविदों से शिक्षा की तकनीक आदि विभिन्न मुद्दों पर विचार विमर्श किया।
शिक्षा के क्षेत्र में श्रेष्ठ सेवाओं के लिए 1956 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मश्री' से सम्मानित शुकदेव पाण्डे 1945 में विधान परिषद के उपाध्यक्ष रहे। वे नागरी प्रचारिणी सभा के आजन्म और बनारस मैथेमेटिकल सोसाइटी के संस्थापक सदस्य थे। स्टेट डवलपमेन्ट काउन्सिल, राजपूताना यूनिवर्सिटी कमेटी, आगरा विश्व विद्यालय, माध्यमिक शिक्षा परिषद, अजमेर और काशी हिन्दू विश्व विद्यालय की ‘कोर्ट ऑफ काउन्सिल' तथा स्टेट स्काउट्स एण्ड गर्ल्स गाइड एसोसिएशन की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य के रूप में भी पाण्डे जी ने कापफी दिनों तक कार्य किया। वे ‘मान्टेसरी इन्टरनेशनल एसोसिएशन' के उपाध्यक्ष भी रहे। पिलानी के बिरला संस्कृत एवं आयुर्वेदिक कालेज तथा नारायण स्वामी के अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्होंने कुमाऊँ अंचल में बालिका विद्या मन्दिर नैनीताल को अपनी सेवाएं प्रदान की वे ‘बिरला विद्या मन्दिर' नैनीताल के बोर्ड आफ गवर्नर्स तथा बालिका विद्या मंदिर की कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष भी रहे।

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