Saturday, June 21, 2025
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ग्रामीण परिवेश से वैश्विक शिखर को छूने वाले पद्श्री डॉ0 श्याम सिंह ‘शशि’

-त्रिलोक चन्द्र भट्ट
सृष्टि नियन्ता अपने हाथों से कुछ ऐसी प्रतिभाओं की सरंचना कर देता है जिन पर सर्व जन गर्व करता है। वह मानो अपने लिए नहीं वरन संसार समूह के लिए ही जीवन धारण करते हैं। न उनके लिए कोई विषय अछूता रहता है और न कोई मंजिल मुश्किलें पैदा करती है। वे जिस राह पर कदम बढ़ाते हैं अपनी मेहनत, लगन और परिश्रम के बल पर अपना मुकाम हासिल करते चले जाते हैं। सफलता के पुष्प उनके चरणों को आकर स्वयंमेव ही चूमते हैं। इसी श्रेणी में बहुमुखी प्रतिभा के धनी और साहित्य जगत् के पुरोधा मानवविज्ञानी, सामाजिक वैज्ञानिक, शिक्षाविद और लेखक डॉ0 श्याम सिंह का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। 1 जुलाई 1935 को हरिद्वार जिले के ग्रामीण परिवेश में जन्मे श्याम सिंह ‘शशि’ हिमालय के घुमक्कड़ों में समाज विज्ञान में पहले पी0एच0डी0 तथा विश्व के रोमा जिप्सियों पर विदेश से ‘नृ विज्ञान’ में प्रथम डी0 लिट् हैं।

जूनियर हाई स्कूल में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने के बाद इन्होंने एम0ए0 तक हर परीक्षा में प्रथम आने का सिलसिला निरन्तर बनाये रखा। एम0ए0 करने के बाद इन्होंने समाज शास्त्र में पी0एच0डी0, नृ विज्ञान व हिन्दी साहित्य में डी0 लिट् तथा इंगलैंड से पी0जी0 मैनेजमेन्ट सहित विद्या वाचस्पति व साहित्य रत्न भी किया। उन्होंने मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से मैन मैनेजमेंट और मैनपावर प्लानिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की और हिमालयन नोमैड्स पर अपने शोध के लिए आगरा विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। जिससे वे विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी करने वाले पहले व्यक्ति बन गए।
डॉ0 श्याम सिंह की साहित्य सेवा की इससे बढ़कर और क्या मिसाल हो सकती है कि अपने साहित्य, संस्कृति और भाषा के लिए इन्होंने तीन बार अपने पद से इस्तीफा दिया। एक सरकारी कर्मचारी के रूप में अपना करियर शुरू करने के बाद, उन्होंने अपनी सेवा के बीच में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और अंतर्राष्ट्रीय संस्कृति और भाषा संस्थान में मीडिया अनुसंधान और विश्वकोश प्रभागों के अध्यक्ष के रूप में शामिल हो गए,
हिमालय के यायावरों में अपना नाम लिखाने वाले श्याम सिंह ‘शशि’ हिमालय से बहुत प्रभावित हैं। इनके जीवन पर हिमालय का बहुत प्रभाव पड़ा। अंग्रेजी में नोमेड्स ऑफ दे हिमालयाज, रोमा द जिप्सी वर्ल्ड, गद्दीज ऑफ हिमालयाज, 50 खण्डों में सम्पादित एनसाइक्लोपीडिया ऑफ ह्‌यूमीनिटीज एण्ड साइंसेज, 12 खण्डों में एनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडियन ट्राइब्स, व 10 खण्डों में वर्ल्ड वीमेन और इंडिका विश्वकोश (150 खंड) का उनकी अनवरत साधना का प्रतिफल है। उन्होंने कई कविता संग्रह, यात्रा वृत्तांत, बच्चों की किताबें और मानवशास्त्रीय पुस्तकें भी लिखी हैं। वे हिंदी महाकाव्य ‘अग्निसागर’ और एनसाइक्लोपीडिया इंडिका (200 खंड) के लेखक हैं और उन्होंने विभिन्न शोध पत्रिकाओं (अंग्रेजी और हिंदी) और हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और स्टेट्समैन जैसे पत्रिकाओं, दैनिक पत्रों में 1000 से अधिक लेख, शोध पत्र और रिपोर्ट प्रकाशित हुए हैं। वे टेलीविजन और रेडियो पर साक्षात्कारों में भी शामिल हुए हैं। कुल मिलाकर 400 से अधिक प्रकाशन उन्होंने समाज को दिए हैं।
उसी का सुपरिणाम आज हमारे सामने है कि भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा अब हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं के अलावा उर्दू, पंजाबी, तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम, बंगला, मराठी और गुजराती आदि कई भारतीय भाषाओं में इनकी पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है।
भारत सरकार, उत्तर प्रदेश, बिहार, और दिल्ली राज्य हिन्दी अकादमी के साहित्य पुरस्कारों से सम्मानित डॉ0 श्याम सिंह ‘शशि’ साहित्यकार, कवि, लेखक व पत्रकार ही नहीं एक वैज्ञानिक भी रहे हैं। ‘पद्मश्री’ से अलंकृत इस महान व्यक्तित्व कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। जिनमें मानविकी अनुसंधान शिरोमणि (सामाजिक अनुसंधान पर सर्वाेच्च पुरस्कार), भारत के पूर्व राष्ट्रपतियों एच.ई. वेंकटरमन और श्री ज्ञानी जैल सिंह, डॉ. शंकर दयाल शर्मा और पूर्व प्रधानमंत्रियों श्रीमती इंदिरा गांधी और कई अन्य राष्ट्रीय नेताओं राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा भी पुरस्कृत किया गया। उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश द्वारा रचनात्मक लेखक और सामाजिक वैज्ञानिक के रूप में भी वे सम्मानित और पुरस्कृत हुए हैं। उत्तराखंड और हरियाणा सरकार द्वारा भी उन्हें साहित्यिक शोध के लिए सम्मानित किया जा चुका है। दिल्ली विश्वविद्यालय, भारतीय विद्या भवन, हिंदी साहित्य सम्मेलन, नाहरी प्रचारिणी सभा, बाल शिक्षा परिषद द्वारा भी सम्मानित हुए हैं। साहित्य और मानविकी के क्षेत्र में उपलब्धियों के लिए ऑथर्स गाइड ऑफ इंडिया, इंडियन राइटर्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया ट्रांसलेटर्स एसोसिएशन आदि द्वारा भी श्याम सिंह शशि को सम्मान मिला है। गॉटिंगटन विश्वविद्यालय, लंदन विश्वविद्यालय और दुनिया भर के विभिन्न रोमा संगठनों द्वारा विशेष रूप से जिप्सोलॉजी और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में सर्वाेत्तम योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है। भारतीय अनुसंधान संघ ने विश्व के खानाबदोशों पर शोध कार्य के लिए अपना सर्वाेच्च अनुसंधान पुरस्कार मानविकी अनुसंधान शिरोमणि उन्हें प्रदान किया है।
डॉ0 ‘शशि’ का साहित्य प्रेम स्कूली दिनों से से जाग उठा था जब वे इन्टर के विद्यार्थी थे तभी उनकी ‘लाल सबेरा’ नामक पुस्तक छप गयी थी। स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करते करते चार लघु कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुके थे। शिला नगर में, एक दधिचि, यायावरी, ढाई आखर, लहू के फूल, एकलव्य आदि इनकी चर्चित काव्य कृतियाँ हैं। इनकी
कुछ अन्य चर्चित कृतियों में भारतीय जनजातियों का विश्वकोश नागालैंड और त्रिपुरा की जनजातियाँ (वर्ष-2012), अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक विज्ञान विश्वकोश (वर्ष-2007), अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक विज्ञान विश्वकोश (20 खंडों का सेट) (वर्ष -2007), खानाबदोशों की दुनिया, (वर्ष-2006), अरुणाचल प्रदेश की जनजातियाँ (वर्ष-2004), विश्व.कविता की ओर (वर्ष-2003), एनसाइक्लोपीडिया इंडिका भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश (सिंधु सभ्यता: भूगोल, जनसंख्या और संस्कृति) (वर्ष-2001), एनसाइक्लोपीडिया इंडिका भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश (स्वतंत्रता सेनानी) (वर्ष-2000), केरल की जनजातियाँ (वर्ष-1995), दक्षिणी हाइलैंड्स की जनजातियाँ (वर्ष-1995), जनजातीय संस्कृति (रीति-रिवाज और समानताएं) (वर्ष-1995), भारतीय जनजातियों का विश्वकोश:अंडमान और निकोबार की द्वीप जनजातियाँ, (वर्ष-1995), बिहार की जनजातियाँ (वर्ष-1995), भारतीय जनजातियों का विश्वकोश: आंध्र प्रदेश (वर्ष-1994), भारतीय जनजातियों का विश्वकोश: परिवर्तन में जनजातीय विश्व (वर्ष-1994), सामाजिक विज्ञान हिन्दी विश्वकोष (वर्ष-1993), पूर्व-अपराधी समुदायों ओबीसी का सामाजिक इतिहास (वर्ष .-1991), नेहरू और तिरबल (वर्ष-1990), विश्वव्यापि एकता वा धर्मतत्व (वर्ष-1990), हमारे आदिवासी बच्चे (वर्ष-1978) तथा भारतीय आदिवासियों की रात्रि जीवन (वर्ष-1978) आदि प्रमुख हैं।

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