संकल्प शक्ति के धनी : महान वैज्ञानिक डॉ0 बोशी सेन
अल्मोड़ा की विवेकानन्द कृषि अनुसंधानशाला के संस्थापक
लेखन/संकलन:त्रिलोक चन्द्र भट्ट
अल्मोड़ा में विवेकानन्द कृषि अनुसंधानशाला के संस्थापक डॉ0 बोशी सेन का मूल नाम वशीश्वर सेन था। वे प्रतिभा और संकल्प शक्ति के ऐसे धनी व्यक्ति थे जिन्होंने अपने जीवनकाल में वनस्पति और कृषि उपजों पर अनुसंधान कर ऐसी लाभदायक प्रजातियाँ विकसित की कि उनकी पहचान खयाति प्राप्त वैज्ञानिक के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी। बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ जाने के बाद हालातों के थपेड़ों का सामना करते हुए जिस लगन से उन्होंने अपनी मंजिल तय की उसने बोशी सेन को देश के तीसरे सबसे बडे़ सम्मान ‘पदमभूषण’ से विभूषित करवाया। भले ही बोशी सेन का जन्म कलकत्ता में हुआ था लेकिन अपने अनुसंधानों के लिए उन्हें पर्वतीय परिवेश इन्हें इतना पसन्द आया कि बाद में उन्होंने उत्तराखण्ड को ही अपनी कर्म स्थली बना लिया और अल्मोड़ा में अपना आशियाना बना यहीं निवास किया।
सन् 1887 में कोलकाता से लगभग 125 कि0मी0 दूर विष्णुपुर गाँव में जन्मे इस महान वैज्ञानिक को बाल्यवस्था में ही पितृसुख से वंचित होना पड़ा। जब ये मात्र 11 वर्ष के थे तभी इनके सिर से पिता का साया उठ गया था। जिस कारण पढ़ाई के लिये बड़ी बहन के पास जाना पड़ा। उनके पास रहते हुए बोशी सेन ने बांकुरा तथा राँची जाकर इन्टर की परीक्षा पास की। विज्ञान में उनकी अच्छी रूचि थी विज्ञान से लगाव के कारण उन्होंने कोलकाता विश्व विद्यालय से विज्ञान के साथ स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की। विद्याध्ययन के दौरान उनका परिचय एक अमरिकी महिला ‘क्राइस्टिन इमरसन’ से हुआ यह वही क्राइस्टिन थी जिनको स्वामी विवेकानन्द ने ‘निवेदिता’ नाम दिया और वे भारत में ‘सिस्टर निवेदिता’ के नाम से विख्यात हुई। निवेदिता ने ही भौतिक शास्त्री और पौध शरीर वैज्ञानिक डॉ0 जगदीश चन्द बसु से बोशी सेन का परिचय कराया। उन्हीं के सानिध्य में श्री सेन ने एम0एस0सी0 किया। उसके बाद वे शोध् कार्यों में जुट गये। डॉ0 जगदीश चन्द बसु के साथ उन्होंने 12 वर्ष तक कठिन परिश्रम किया। निरन्तर, अध्ययन के साथ वे जैव भौतिकी के शोध् कार्य करते रहे। फलतः उनकी राह बदल गई और वे भौतिक शास्त्री से वनस्पति शास्त्री बन गए। इस दौरान उन्होंने जापान, अमेरिका और इंग्लैंण्ड सहित विश्व के कई देशों का भ्रमण कर वहाँ के विश्वविद्यालयों में विविध् विषयों से सम्बन्ध्ति अनुसंधानों का अवलोकन किया। कई अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भी उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। चीन का टंग आयल, अमेरिकी समुद्री द्वीप की कपास, चूहों का जहर रेडस्विवल, नीबू घास, कुड़जू, रेमी, दूब की अप्रफीकी चचेरी बहन, जांइंट स्टार घास एवं लव घास, कश्मीर का पाईरेथम और सेफोन का स्थानीय परिस्थितियों में उत्पादन, उनकी विशेष उपब्ध्यिाँ रही हैं।
सन् 1932 में सिस्टर निवेदिता से इनका विवाह हुआ। उनकी पत्नी भी उनके कार्यों में विशेष सहयोगी रही। अमेरिकी लाल लकड़ी जिसे रेड वुड के नाम से जाना जाता है तथा केलिफोर्निया का एबोगाडो, अफगानी पिकानट का कुमाऊँ से परिचय कराने वाले यही दम्पत्ति थे। डा0 सेन 1936 से अल्मोड़ा में रहने लगे थे। 1953 तक सर्दी और गर्मी के मौसम के अनुसार कलकत्ता और अल्मोड़ा में बारी बारी से उनके अनुसंधान भी चलते रहे। विवेकानन्द प्रयोगशाला जो कोलकाता में थी उसको भी उन्होंने अल्मोड़ा स्थानान्तरित कर लिया। डॉ0 बोशी सेन ने प्राणियों के जीवन आधार तत्व, उसकी क्षिल्ली की पारगम्यता पर तापक्रम का प्रभाव देने के बाद विद्युत हलचल के अन्तर्गत एकल कोशिका के विद्युत शक्ति उत्पन्न करने वाले गतिमान प्रमाण पर प्रभाव और पारगम्यता के परिवर्तन को मापने की विधि की खोज की। मानव की बढ़ती आवश्यकताओं के लिए उन्नत गुणकारी खाद्यान, चारा उत्पादन एवं उद्योगीय आवश्यकता की गुणवत्ता युक्त वनस्पतियों की प्रचुर मात्रा में उपलब्ध्ता के लिए उन्होंने कई प्रोजक्टों पर कार्य करते हुए इन्हें कुशलतापूर्वक संचालित किया। उन्होंने 1943 में अल्मोड़ा में उगाए गए खजूर से गुड़ बनाने की सम्भावना प्रदर्शित की। भारत में मक्का के पथप्रदर्शक अनुसंधनकर्ता माने जाने वाले डॉ0 सेन ने बिना रेसे की बीन और खील मक्का का परष्किृत रूप ही नहीं दिया बल्कि टमाटर, बीन, भिण्डी, मटर, मिर्च, शंकर प्याज की उन्नत किस्में और चुकन्दर, साधारण आलू, स्ट्राबेरी, ज्वार, बाजरा, भिण्डी, मटर, मिर्च, सोयाबीन, मसूर की अधिक पैदावार देने वाली उन्नत प्रजातियाँ विकसित कर उन्होंने अपने सफल शोधों को पूरे देश के सामने रखा। इनके शोध् कार्यों के कारण अल्मोड़ा स्थित इनके आवास कुन्दन हाउस ने भी एक प्रयोगशाला का रूप ले लिया था।
बोशी सेन के शोध् कार्यों को प्रसिद्वि मिलने पर जब उनका नाम चर्चित हुआ तो शोध् कार्यों से जुड़े लोग और संस्थाएं इनकी ओर आकर्षित हुई। केन्द्र के साथ साथ प्रदेश सरकार ने भी इनके अनुसंधानों में रूचि ली। पहले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने विशेष कार्य योजना के लिए विवेकानन्द प्रयोगशाला को आर्थिक सहायता देना प्रारम्भ कर संस्थान के निदेशक के रूप मे डा0 बोशी सेन के आधीन कुशल कर्मचारी सम्बद्व किये। उनके द्वारा किये किये उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत सरकार ने 1957 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। अमेरिका ने भी ‘बाटुमल’ पुरस्कार से नवाजा। पन्तनगर कृषि विश्व विद्यालय ने बोशी सेन को 1971 में ‘डाक्टर ऑफ साइंस’ की मानद उपाधि प्रदान की।
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति का यह महान वैज्ञानिक 1971 में अपना नश्वर शरीर त्याग कर इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गया।