भगवान कहूँ या शैतान?
सचिन तिवारी
डॉक्टर मतलब धरती का भगवान, जब व्यक्ति बीमारियों से ग्रस्त होता है असहाय होता है और उसे सामने अपनी मौत दिखाई देती है तो वह किसी न किसी डॉक्टर के पास भागता है और उसकी नजरों में उस समय उस डॉक्टर की छवि किसी भगवान से कम नहीं होती , उसे लगता है कि अब डॉक्टर साब सब संभाल लेंगे मुझे पूरी तरह तंदुरुस्त कर देंगे ।
एक गरीब व्यक्ति जो दो सौ रुपये की दिहाड़ी मुश्किल से कमा पाता है जो कई सालों तक एक ही पुरानी पैंट शर्ट पहनता रहता है नई इसलिए नही लेता क्योंकि उसे उन पैसों से अपने छोटे बच्चे को दूध लेना होता है वह व्यक्ति जब डॉक्टर के पास जाता है तो पांच सौ रुपये की फीस बिना किसी बारगेनिंग के दे देता है और डॉक्टर जो दवाइयां लिखते हैं उन्हीं के स्टोर से खरीद भी लेता है , क्योंकि उसे लगता है यह डॉक्टर भगवान हैं जो कर रहे हैं सही ही कर रहे । एक बार डॉक्टर के यहाँ जाने का मतलब उसके परिवार की एक महीने की रोटी के लाले पड़ना ।
वहीं दूसरी ओर कुछ डॉक्टर जो अपने आप को बहुत बड़ा डॉक्टर मानते हैं करोङो की हवेली करोङो का क्लिनिक खोल कर बैठे हैं वो उस व्यक्ति को एक मुर्गा समझते हैं जिसका एक एक बूँद खून चूसने में उन्हें बिल्कुल रहम नहीं आता, उनका बस चले तो उस व्यक्ति की किडनी भी बेंच कर अपनी फीस और फर्जी दवाइयों के नाम पर पैसे ले लें ।
उनका न तो मानवता से कोई दूर दूर का नाता है न किसी के ऊपर कभी तरस आता है , हजारों रुपये फीस के नाम का वसूलने के बाद भी कभी एक बिल किसी को नहीं देते , हर महीने शासन को इन कुछ भेड़ियों द्वारा लाखों का चूना लगाया जाता है , यहाँ पर मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि भेड़िया शब्द का स्तेमाल मैंने उन चंद डॉक्टरों के लिए किया है जो लोंगो का फीस , टेस्ट, और दवाइयों के नाम पर उनकी खून पसीने की कमाई फर्जी रूप से ऐंठ रहे हैं ।
बड़ा शहर हो छोटा कस्बा आजकल हर जगह इनकी भरमार है सरकारी तंत्र इनपर लगाम लगाने में असमर्थ है क्योंकि उनका हिस्सा टाइम से उनके पास पहुँच जाता है , भले ही उसकी एवज में सरकार को लाखों का नुकसान हो रहा हो ।
हरिद्वार एक देवभूमि है करोङो लोग यहाँ अपने पापों को माँ गंगा में धोने आते हैं लेकिन इसी शहर में कुछ क्लिनिक और कुछ डॉक्टर लोगों का खून चूसने में लगे हैं न तो वो फीस का बिल देते हैं न ही दवाइयों का, यहाँ तक कि दवाइयां भी सही नही देते ताकि पेसेंट बार बार आए और वो उससे बार बार मोटी फीस और तरह तरह के टेस्ट के नाम पर पैसे ऐंठ सके । अधिकारियों से बात करने पर उनका जवाब होता है जब उनके पास कोई लिखित शिकायत आएगी तो वह जाँच करेंगे उसके पहले उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं ।
आप कहेंगे कि बिना सबूत के आप कैसे यह इल्जाम किसी पर लगा सकते हैं तो मैं यह बात इसलिए कह सकता हूँ क्योंकि मैंने अपनी आँखों से उस माँ को अपने बीमार बच्चे को सीने से लगाए रोते देखा है जिसके बेटे को एक डॉक्टर ने गलत दवाएं सिर्फ इसलिए खिलाई कि पांच दिन बाद उसे पाँच सौ रुपए और फीस मिलेगी, उसका बेटा जो दो साल का भी अभी नही हुआ उसको बुखार आने पर वो शहर के एक प्रतिष्ठित डॉक्टर जिन्होंने अपने घर पर ही एक बहुत बड़ा क्लिनिक खोल रखा है उनके पास गई, उन्होंने पाँच सौ रुपये फीस ली कुछ दवाई लिखी जो उन्ही के स्टोर जो कि नर्सिंग होम में ही खोल रखा है, से ली , डॉक्टर साब ने छः दिन दवाई खिलाने के बाद फिर आने को बोला एक टेस्ट भी लिख दिया , लगातार पाँच दिन तक दवाई खिलाने के बाद भी जब कोई रिलीफ नही हुआ और बच्चे को और ज्यादा दिक्कत होने लगी घर मे सब परेशान हो गए तो उसने एक दूसरे डॉक्टर को वो दवाइयां दिखाई , उन दवाइयों को देखते ही दूसरे डॉक्टर ने बोला इन दवाइयों से यह साल भर में नही ठीक हो सकता क्योंकि उसमें पैरासिटामोल और सिर्फ मिचली आने की दवाइयां थी , बिना एंटीबायोटिक के पैरासिटामोल सिर्फ टेम्प्रेचर कम करती है ठीक नही करती , और उन्होंने कोई एंटीबायोटिक लिखी ही नही , हर चार घंटे में पैरासिटामोल देने को बोला था । अब आप सोचें कि सिर्फ पैरासिटामोल लगातार पाँच दिन तक वो भी हर चार घंटे में उन्होंने एक छोटे से बच्चे को खिलाया उसका क्या हाल हुआ होगा , अगर आप भी एक बच्चे के पिता होंगे या माँ होंगी तो समझ सकते हैं उस दर्द को जो उस माँ ने और उसके घर वालों ने तब सहा होगा जब उनका बच्चा बुखार से लाल पड़ कर बिल्कुल असहाय अवस्था मे उनकी गोद पड़ा दर्द से तड़फ रहा होता था, उन्हें उस छोटे से बच्चे पर भी तरस नही आया , अब ऐसे व्यक्ति को आप भगवान कहेंगे या शैतान ?