प्रौद्योगिकीविद ऊर्जा संरक्षण, संतुलन और गुणवत्ता को संजीदगी से लें : प्रो. शिव दयाल

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के एफओईसीएस में रिसेंट ट्रेंड्स ऑन इन्नोवेशन्स इन सिविल एंड मेकैनिकल इंजीनियरिंग पर दो दिनी नेशनल कॉन्फ्रेंस का हुआ समापन

  • ख़ास बातें
  • -आखिरी दिन यूपी, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, हरियाणा समेत 08 सूबों के 46 शोधार्थियों ने पढ़े रिसर्च पेपर्स
  • -एमई के छात्र अमन गुप्ता, अनामिका जैन और सीई से मोहम्मद हारिस खान और सचिन जैन ने भी साझा किए अपने विचार
  • -सिविल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी तकनीक अपनानी चाहिए: डॉ. श्रीवास्तव

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ इंजीनियरिंग एंड कम्प्यूटिंग साइंसेज-एफओईसीएस में रिसेंट ट्रेंड्स ऑन इन्नोवेशन्स इन सिविल एंड मेकैनिकल इंजीनियरिंग पर ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड में आयोजित दो दिनी नेशनल कॉन्फ्रेंस के दूसरे और अंतिम दिन उत्तरांचल विश्वविद्यालय के डीन अकादमिक प्रो. शिव दयाल पांडेय, सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय, प्रयागराज के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. विकास श्रीवास्तव मुख्य वक्ता के रूप में ऑनलाइन मौजूद रहे। कॉन्फ्रेंस के कन्वीनर एवं सिविल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष प्रो. आरके जैन ने दो दिनी नेशनल कॉन्फ्रेंस की रिपोर्ट प्रस्तुत की,जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन के तकनीकी सत्र में यूपी, एमपी, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, हरियाणा के कुल 46 शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र पढ़े। इस दौरान सवाल-जवाब का दौर भी चला। अंत में प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र भी दिए गए। संचालन प्रो. आरके जैन ने किया।
उत्तरांचल विश्वविद्यालय के डीन अकादमिक प्रो. शिव दयाल पांडेय ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग के थर्मोडायनामिक पहलू पर ऑनलाइन बोलते हुए कहा, औद्योगिक प्रक्रियाओं में ऊर्जा परिवर्तन के साथ-साथ हमें ऊर्जा संतुलन पर भी विचार करना होगा। ऊर्जा विनाश हमें ऊर्जा रूपांतरण की दक्षता के बारे में बताता है। प्रौद्योगिकीविद को किसी भी रूपांतरण प्रक्रिया के दौरान ऊर्जा की गुणवत्ता बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए। विभिन्न औद्योगिक ऊर्जा रूपांतरण उपकरण हैं, जैसे हीट एक्सचेंजर, हीट पंप, रेफ्रिजरेटर, इत्यादि। इनका उपयोग विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं के जरिए ऊर्जा रूपांतरण के लिए किया जा रहा है। उन्होंने ऊर्जा की अवधारणा को विस्तार से समझाया।
सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय, प्रयागराज के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. विकास श्रीवास्तव ने वैलेडेक्टरी सेशन को ऑनलाइन संबोधित करते हुए कहा, इस प्रकार के अंतःविषय कॉन्फ्रेंस वास्तव में विचार मंथन हैं, जो हमें दूध के मंथन से मलाई जैसे परिणाम प्रदान करते हैं। यह सीई और एमई के लिए बहुत फलदायी होगा। हमें मौजूदा तकनीक को पर्यावरण हितैषी बनाने के लिए प्रभावी तरीके से बदलना होगा। हमें सिविल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी तकनीक अपनानी चाहिए।
जीईटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, उत्तराखंड के प्राचार्य डॉ. धीरज गुणवंत ने तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए उत्कृष्ट सीओएच-आरसी विधियों और अवशिष्ट उत्पादों के इष्टतम उपयोग के लिए रणनीतियों के आधार पर सरल और लागत प्रभावी अपशिष्ट प्लास्टिक पुनर्चक्रण उपकरण के विकास पर ज़ोर दिया। उन्होंने मेडिकल किट और प्लास्टिक सामग्री से बने विभिन्न चिकित्सा उपकरणों को जमा करके प्लास्टिक की बर्बादी से संबंधित कोविड स्थितियों के दौरान उत्पन्न होने वाली समस्या पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा, प्रौद्योगिकीविदों के लिए यह चिंता का प्रमुख क्षेत्र है, वे इस पर विचार करें और इसके स्वस्थ समाधान के लिए तरीके विकसित करें। उन्होंने सुझाव दिया कि इस अपव्यय को संपीड़ित करके और ईंटों के आकार में परिवर्तित करके प्लास्टिक से संबंधित समस्या के संभावित समाधानों में से एक हो सकता है। इन ईंटों का उपयोग निर्माण कार्य के लिए किया जा सकता है। अनुसंधान के सिविल, मैकेनिकल और संबद्ध क्षेत्रों को मिलाकर अंतःविषय दृष्टिकोण इसे व्यवहार्य बना सकता है।
तकनीकी सत्रों में मुख्य वक्ता के रूप में सिविल और मेकैनिकल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों- एनआईटी, कुरुक्षेत्र के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की प्रो. प्रतिभा अग्रवाल ने भारत में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थों में मिलावट पर एक अध्ययन, आईआईटी, बीएचयू, वाराणसी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के हेड प्रो. देवेंद्र मोहन, , केआईआईईटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन, दिल्ली-एनसीआर, गाजियाबाद के एसोसिएट डीन और सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एचओडी प्रो. अतुल कांत पियूष ने सर्वेक्षण और भूविज्ञान, सीएसआईआर-सीआरआरआई, नई दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. जी.के. साहू और सीएसआईआर-सीआरआरआई, नई दिल्ली के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक श्री दुर्गा प्रसाद गोला ने इंद्रावती ब्रिज का संरचनात्मक मूल्यांकन और उपचारात्मक उपाय- एक केस स्टडी पर चर्चा की।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के आखिरी दिन यूपी, एमपी, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, हरियाणा के कुल 46 शोधार्थियों ने आईसी इंजन और वैकल्पिक ईंधन, समग्र और स्मार्ट सामग्री, यांत्रिक कंपन, अनुकूलन, द्रव यांत्रिकी और द्रव गतिकी, थर्मल इंजीनियरिंग, नवीकरणीय ऊर्जा, उन्नत विनिर्माण प्रणाली/प्रक्रियाएं, सीएडी/सीएएम, ऑटोमेशन और रोबोटिक्स, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, लोजीस्टिक आउटसोर्सिंग, समवर्ती इंजीनियरिंग, विनिर्माण तकनीक, मृदा यांत्रिकी और भूमि सुधार, स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में प्रगति, अभिनव कंक्रीट और स्मार्ट सामग्री, परिवहन और राजमार्ग इंजीनियरिंग, संरचनाओं की स्वास्थ्य निगरानी, हरित प्रौद्योगिकी / भवन/अवसंरचना/ऊर्जा कुशल भवन, पर्यावरण और प्रदूषण नियंत्रण, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस, निर्माण में अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग, संरचनात्मक डिजाइन में मॉडलिंग तकनीक इत्यादि जैसे विषयों पर शोध पत्र पढ़े ।
कॉन्फ्रेंस के समापन सत्र के दौरान टीएमयू पॉलिटेक्निक के प्रिंसिपल डॉ. अमित शर्मा की मुख्य अतिथि के रूप में ऑफलाइन मौजूदगी रही। श्री भगवान ने उत्तरांचल विश्वविद्यालय के शैक्षणिक डीन प्रो. एस.डी. पाण्डे का संदेश पढ़ा। एमई के छात्र अमन गुप्ता, अनामिका जैन और सीई से मोहम्मद हारिस खान और सचिन जैन ने अपने विचार साझा किए। सह-संयोजक मैकेनिकल इंजीनियरिंग के डॉ. रोहित गौतम ने सभी का आभार व्यक्त किया। कॉन्फ्रेंस से मुख्य रूप से मैकेनिकल एवं सिविल इंजीनियरिंग विभाग से श्री माहिर हुसैन, श्री हिमांशु कुमार, श्री सुनील गौर, श्री सुनील कुमार, श्री केबी आनंद, श्री अरुण गुप्ता, श्री अंकित शर्मा के अलावा प्रो. एस.पी.पाण्डेय, डॉ. पवन कुमार, श्री राहुल विश्नोई, सुश्री इंदु त्रिपाठी, सुश्री नेहा आनंद, डॉ. संदीप वर्मा, श्री अजय चक्रवर्ती आदि जुड़े रहे । कॉन में एफओईसीएस की सभी फ़ैकल्टी के संग संग एमई और सीई के स्टुडेंट्स मौजूद रहे।

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