उत्तराखण्ड का अनोखा मेला: बीस हजार लोग मछली पकड़ने नदी में कूदे

देहरादून। उत्तराखण्ड अनेक मेले और उत्सवों की अपनी सांस्कृतिक विविधताओं के लिए प्रसिद्ध है। उन्हीं में से एक एक जौनपुर का ऐतिहासक राज मौण मेला है। कोरोनाकाल के दो साल बाद आयोजित इस मेंले में हजारों लोग उमड़े। पहले अगलाड नदी में टिमरू का पाउडर डालकर मछलियों को बेहोश किया। फिर 20 हजार से ज्यादा लोग मछली पकड़ने के लिये नदी में कूद पड़े और मछलियां पकड़ी। इस मौके पर ढोल नगाड़ों की थाप पर ग्रामीणों ने परंपरागत लोकनृत्य किया। उत्तराखण्ड के जौनसार क्षेत्र के इस
मेले में जौनपुर, जौनसार, रंवाई घाटी समेत आसपास के क्षेत्र के 20 हजार से अधिक लोगों ने शिरकत की। लोग सुबह से ही नदी के पास पहुंचने शुरू हो गए थे। नदी में पहुंचने पर ढोल नगाड़ों के साथ ग्रामीणों ने लोक गीतों संग पारंपरिक लोक नृत्य किया।
इस दौरान नदी में एक साथ आठ क्विंटल से अधिक टिमरू पाउडर डाला फिर जाल लेकर नदी में मछली पकड़ने के लिए कूद पड़े। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस बार नैनबाग क्षेत्र के करीब 16 गांवों के लोगों ने दो से तीन सप्ताह में टिमरू पाउडर तैयार किया। मौण मेला 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने शुरू कराया था। उस समय मेले की सुरक्षा का जिम्मा टिहरी नरेश द्वारा वन विभाग को दिया जाता था। तभी से यह मेला निरंतर आयोजित हो रहा है। अब यह मेला स्वतःस्वफूर्त है।
बता दें कि जिस टिमरू पाउडर को ग्रामीण मछली पकड़ने के लिए नदी में डालते हैं, उसको बनाने के लिए गांव के लोग एक माह पहले से तैयारी में जुट जाते है। इस बार सिलवाड़ पट्टी के खरसून, खऱक, सुरांशू बणगांव, जैद्वार तल्ला और मल्ला, टटोर, फफरोग, लिचागू, पाब, कोटि, भसोंन और संड़ब आदि गांवों द्वारा टिमरू पाउडर तैयार किया गया था। प्राकृतिक जड़ी बूटी और औषधीय गुणों से भरपूर टिमरू के पौधे की तने की छाल को ग्रामीण निकालकर सुखाते हैं फिर छाल को ओखली या घराट में बारीक पीसकर पाउडर तैयार करते हैं। टिमरू पाउडर के नदी में पड़ने के बाद कुछ देर के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं। पाउडर से मछलियां मरती नही हैं।

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