उत्तराखण्ड : मुख्यमंत्रियों की प्रयोगशाला

त्रिलोक चन्द्र भट्ट

सत्ता पर काबिज किसी भी पार्टीं का आंतरिक अनुशासन और उसके सदस्यों की एकजुटता ही राज्य में स्थिर सरकार देने में सफल होती है। अगर महत्वाकांक्षा और आंतरिक कलह बढ़ती है तो वह प्रदेश के मुखिया और मंत्रियों का ही नहीं सत्ता का भी परिवर्तन करा देती है। यही कारण है कि उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य में जहां 20 साल के सफर में 5 मुख्यमंत्री होते वहाँ इस प्रदेश को 9 चेहरे (11 मुख्यमंत्री) देखने पडे़। इनमें भुवन चन्द्र खंडूरी और हरीश रावत ऐसे दो चेहरे हैं जो एक से अधिक बार पुनः मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। इन बीस सालों में उत्तराखण्ड भारत की एक ऐसी राजनैतिक प्रयोगशाला बन गया है जहां मुख्यमंत्री के पद पर एक के बाद एक कई एक्सपेरीमेंट किये गये जिनमें एक प्रयोग को छोड़ कर अन्य सभी फेल ही हुये हैं।

अब तक उत्तराखण्ड की सत्ता में दो प्रमुख राष्ट्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है। जिसमें अपने आपको सबसे बड़ी और अनुशासित पार्टी कहने वाली भारतीय जनता पार्टी नेे अब तक 7 मुख्यमंत्री दिये हैं तो कांग्रेस ने 3 मुख्य दिये हैं। बीस साल में पूर्व मुख्यमंत्री स्व0 नारायण दत्त तिवारी ही अपने पांच साल का कार्यकाल पूर्ण कर सके थे। जबकि अन्य 10 तो औसतन केवल डेढ़ वर्ष प्रति मुख्यमंत्री की दर से ही राज्य की सत्ता में टिके रह सके हैं। उत्तराखण्ड में अब तक सबसे लंबे समय तक राज करने वाली भाजपा के लिए वर्ष 2017-21 तो ऐसा मनहूस साबित हुआ कि उसे राज्य में मुख्यमंत्री के एक के बाद एक 3 चेहरे लाने पड़ गये लेकिन आंतरिक कलह और असंतोष को वह फिर भी शांत नहीं कर पा रही है।

आज राज्य के 11वें मुख्यमंत्री के रूप से पुष्कर सिंह धामी के साथ ही उनके मंत्रीमंडल में, सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत ने भी शपथ ली है. राज्यपाल ने अरविंद पांडेय, गणेश जोशी को भी मंत्री पद की शपथ दिलवाई है. इसके अलावा, रेखा आर्य, डॉ. धन सिंह रावत ने भी मंत्री बनाए गए हैं।

पिथौरागढ़ जनपद में डीडीहाट विकासखंड के हड़खोला गांव के एक साधारण परिवार में जन्मे धामी ने 1994-95 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ने के बाद जो राजनैतिक सफर तय किया उसके बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखा। 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी, 2005 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष, 2010-12 में शहरी अनुश्रवण समिति के उपाध्यक्ष, रहने के बाद वे वर्ष 2012 में पहली बार विधायक बने। 2013 में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष बने और 2017 के विधानसभा चुनाव में दूसरी बार खटीमा से विधायक बनने के बाद 3 जुलाई को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। राज्य के मुखिया के पद पर वरिष्ठों की उपेक्षा और युवा चेहरे को आगे करने के पीछे भाजपा की मंशा चाहे कुछ भी हो प्याली में उठा तूफान शांत नहीं हुआ है।

राजनैतिक उथल-पुथल में कांग्रेस के एक हरीश रावत ही उत्तराखण्ड के ऐसे मुख्यमंत्री रहे जो 01 फरवरी 2014 से 18 मार्च 2017 के बीच 3 बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लौट कर आये लेकिन भाजपा ने 18 मार्च, 2017 से 2 जुलाई 2021 की अवधि में मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की जनता 3 चेहरे दिखा कर अस्थिरिता का माहौल उत्पन्न कर दिया है।

चुनौतियां सबके सामने रही हैं लेकिन मौजूदा पांच वर्षीय कार्यकाल में सत्ता असंतुलन के पुराने सभी रिकार्ड ध्वस्त हो गये हैं।  त्रिवेन्द्र की विदाई कर भाजपा जिस उम्मीद के साथ तीरथ सिंह रावत को लेकर आई तो वह सबसे कम केवल 4 महिने भी राज्य की सत्ता में नहीं टिक पाये। भगत सिंह कोश्यारी को भी 122 दिन बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी से विदा होना पड़ा था।

        उत्तराखण्ड राज्य स्थापना के बाद नित्यानंद स्वामी (09 नवंबर 2000 से 29 अक्तूबर 2001), भगत सिंह कोश्यारी (30 अक्तूबर 2001 से 01 मार्च 2002), नारायण दत्त तिवारी (02 मार्च 2002 से 07 मार्च 2007), भुवन चंद्र खूडूडी, (07 मार्च 2007 से 26 जून 2009), डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक (27 जून 2009 से 10 सितंबर 2011), भुवन चंद्र खंडूडी (11 सितंबर 2011 से 13 मार्च 2012), विजय बहुगुणा (13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014), हरीश रावत (01 फरवरी 2014 से 27 मार्च 2016), हरीश रावत (21 अप्रैल 2016 से 22 अप्रैल 2016), हरीश रावत (11 मई 2016 से 18 मार्च 2017), त्रिवेंद्र सिंह रावत, (18 मार्च 2017 से 09 मार्च 2021), तीरथ सिंह रावत (10 मार्च 2021 से 02 जुलाई 2021) तथा पुष्कर सिंह धामी (02 जुलाई 2021 से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं।

विगत चार वर्ष में राज्य के दोनों मुख्यमंत्रियों व सरकार की कार्यशैली के कारण जनता के बदलते मूड को भांप भाजपा आलाकमान की चिंतायें बढ़ गयी थी। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में नुकसान के बचने और फिर सत्ता पर काबिज होने के लिए ही उसने 45 वर्षीय पुष्कर सिंह धामी को आगे कर युवा चेहने पर दांव तो खेला है। लेकिन इस चेहरे को आगे कर चंद महिनों में जनता का मूड बदलवा कर 2022 की चुनावी वैतरिणी पार करने में भाजपा सफल होगी यह कहना अभी मुश्किल है।

One thought on “उत्तराखण्ड : मुख्यमंत्रियों की प्रयोगशाला

  • July 4, 2021 at 3:03 pm
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    आपकी इस हाईटेक खबर के प्रचारित में प्रसार के लिये आपको बधाई।

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