मसूरी गोलीकांड : फायरिंग आर्डर के बिना चली थी आन्दोलनकारियों पर गोलियां

घटना के आधे घंटे बाद अधिकारियों पर राइफल तानकर पुलिस ने फायरिंग आर्डर पर करवाये थे हस्ताक्षर

-त्रिलोक चन्द भट्ट
उत्तराखंड की सामाजिक संरचना के प्रतिकूल शैक्षिक संस्थानों में 25 प्रतिषत ओबीसी आरक्षण लागू करने के सरकारी आदेश से गुस्साये मसूरी के छात्रों ने 5 अगस्त, 1994 को इसके विरोध में आंदोलन प्रारंभ किया था। 19 अगस्त को एडवोकेट हुकुम सिंह पंवार के संयोजन में बनी उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति ने इस आंदोलन की बागडोर संभाल कर आरक्षण विरोधी सहित उत्तराखंड राज्य निर्माण के समर्थन में मसूरी में अनिश्चितकालीन धरना प्रारंभ किया।
उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति की पहल पर मसूरी के राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों के एक मंच पर आने के बाद समाज के हर वर्ग के लोग एकजुट होकर इस आंदोलन से जुड़ते चले गए। जन समर्थन मिलने के बाद जैसे-जैसे आंदोलन को विस्तार मिला वैसे-वैसे जिला प्रशासन ने आन्दोलन को प्रभावहीन बनाने के लिए स्थानीय अधिकारियों पर दबाव डालना शुरू किया। हालांकि तब तक मंसूरी की स्थिति पूरी तरह सामान्य थी। आरक्षण विरोध एवं पृथक राज्य के समर्थन में चल रहे आंदोलन से न तो यहां जनजीवन अस्त व्यस्त था, और न ही कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हुई। इसके बावजूद प्रशासन ने मसूरी के तत्कालीन थानाध्यक्ष रमन पाल को आंदोलनकारियों के साथ सख्ती करने के आदेश दिए।
शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चला रहे लोगों पर बेवजह शक्ति करने में असमर्थता जाहिर करने पर पुलिस अधीक्षक ने 31 अगस्त को रमन पाल का स्थानांतरण कर उनके स्थान पर किशन सिंह तालान को मसूरी का नया थाना अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इसी दिन जनपद के अतिरिक्त जिलाधिकारी तनवीर जफर अली ने मसूरी आकर आंदोलन से उत्पन्न स्थिति की जानकारी ली 1 सितंबर को खटीमा में उत्तराखंड राज्य आंदोलन का पहला गोली कांड हुआ था। इसमें कई राज्य आन्दोनकारी लोग मारे गए थे। खटीमा कांड के विरोध में अगले दिन 2 सितंबर को मसूरी के लोगों ने भी मौन जुलूस निकालने की तैयारी की थी। लेकिन 2 सितंबर की सुबह 6.05 बजे शांति भंग की आशंका में पुलिस ने आंदोलनकारियों को सीआरपीसी की धारा 151 के अंतर्गत गिरफ्तार करने के बाद,धरना स्थल पर कब्जा कर आग में घी डालने का काम किया।
शांतिपूर्ण आंदोलन में पुलिस हस्तक्षेप की खबर पूरे मसूरी शहर में आग की तरह फैल गई देखते ही देखते सैकड़ों लोगों की भीड़ झूला घर में एकत्र होकर पुलिस कार्यवाही का विरोध करने लगी। अपने गिरफ्तार साथियों की रिहाई और धरना स्थल से कब्जा खाली करने की मांग को ले कर एकत्र जनसमूह 8.45 बजे थाने पहुंचा। लेकिन थाने में उपस्थित अधिकारियों ने गिरफ्तार आन्दोलनकारियों को रिहा करने और धरना स्थल से कब्जा खाली करने की मांग को अस्वीकार कर दिया। अधिकारियों के रवैए से खफा भीड़ ने प्रशासन विरोधी नारे लगाने शुरू कर दिए। उधर पुलिस गिरफ्तार किये गये 47 लोगों को देहरादून भेज दिया।
आन्दोलनकारियों का गुस्सा उबाल पर था। हमेषा शांत रहने वाली मसूरी जैसे गुस्से में उबल उठी। लोग घरों से बाहर निकलने लगे। ओबीसी आरक्षण का विरोध और उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर आंदोलनकारियों का जुलूस धरना स्थल की ओर बढ़ चला। 11.30 बजे करीब जब यह जलूस धरना स्थल के पास स्थित रोपवेज रेस्टोरेंट के बाहर पहुंचा तो हिल क्वीन व विश्वविलास कोठी के ऊपर से कुछ अज्ञात लोगों ने उकसावेपूर्ण कार्यवाही करते हुए जुलूस में शामिल लोगों पर पथराव भी किया। राज्य विरोधी और असामाजिक तत्वों द्वारा जलूस में शामिल लोगों पर कांच की बोतलें फैंकी गई। जिससे कई लोग घायल हो हुये।
इसके बावजूद श्रीमती लज्जा देवी, सुभाषिनी बर्तवाल, हंसा धनाई, बेलमती चौहान, एडवोकेट राजेन्द्र पंवार, राहसिंह बंगारी, मदनमोहन ममगाई, बलबीर सिंह उर्फ ‘गुड्डु’, धनपत सिंह, देवराज कपूर, मदन मोहन शर्मा आदि लगभग 150 आन्दोलनकारी धरना स्थल पहुंचे। यहां पर हो रही सभा के बीच एडीएम देहरादून तनवीर जफर अली, एसडीएम वीपी जसोला, थानाध्यक्ष मसूरी किषन सिंह तालान, सीओ मसूरी उमाकान्त त्रिपाठी, सब इंस्केक्टर आरएस भारती सहित 50 से अधिक पुलिस एवं पीएसी के हथियार बंद सिपाहियों ने झूलाघर क्षेत्र को घेर लिया। जब पुलिस और पीएसी ने आंदोलन क्षेत्र को घेर रखा था उस दौरान भी असामाजिक तत्व वहां पत्थर फेंक रहे थे। गन हिल की ओर वाली पहाड़ी से फेंके जा रहे कुछ पत्थर जुलूस में शामिल लोगों सहित कई पुलिसकर्मियों पर भी पड़े जिससे बौखलायी पुलिस ने पथराव करने वालों को पकड़ने के बजाय बिना सोचे समझे ही जुलूस में शामिल लोगों को तितर-बितर करने के लिए उन पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी। आंसू गैस के गोले दागकर भी भीड़ को तितर-बितर करने में असफल रही पुलिस और 44 बटा. पीएसी के जवानों ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के ही स्वचालित हथियारों से ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दी। कई लोग गोली लगने से जमीन पर गिर गये इससे वहां भगदड़ मच गयी।

आन्‍दोलनकारियों पर गोली चलाता पुलिस का जवान और जान बचाकर भागते आन्‍दोनकारी


पुलिस कार्यवाही से आक्रोषित लोगों ने भी 44 बटा. कंपनी मेरठ के शिविर में घुसकर वहां रखा सामान आगे हवाले कर दिया। कई जगह भीड़ ने भी पुलिस पर पथराव किया। पुलिस व पीएसी द्वारा गोली चलाने से कई लोग मौके पर ही मारे गए और बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए। सीओ उमाकांत त्रिपाठी के गनर ओम प्रकाश ने अपनी कार्बाइन से, कांस्टेबल स्वयंबर सिंह तथा कांस्टेबल शत्रुघ्न सिंह के द्वारा राइफल से ताबड़तोड़ गोलियां चलाने से भी कई लोग घायल हुए। कुछ लोगों द्वारा मौके पर बुलाई गई एंबुलेंस से घायलों को सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में भिजवाया गया। घायलों में से छह लोगों मदन मोहन ममगाई, राय सिंह बंगारी, धनपत सिंह, बेलमती चौहान, हंसा धनाई, और बलबीर सिंह नेगी को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। गंभीर रुप से घायल पुलिस क्षेत्राधिकारी उमाकांत त्रिपाठी को भी लोगों ने एंबुलेंस से सेंट मेरी अस्पताल पहुंचाया किंतु पुलिस द्वारा उन्हें अस्पताल के बाहर ही उतार लेने और समय पर उपचार उपलब्ध होने पर उनकी भी मृत्यु हो गई।

शहीद राज्‍य आन्‍दोलनकारियों की प्रतिमाएं


गोलीकांड में 6 आंदोलनकारियों के मारे जाने और दर्जनों लोगों के घायल होने के बाद रिपोर्ट दर्ज कराने के प्रयास करने पर पुलिस ने आंदोलनकारियों की ओर से रिपोर्ट दर्ज करने से भी साफ मना कर दिया। सायं 5.00 बजे क्षेत्रीय विधायक राजेंद्र शाह, विधान परिषद सदस्य नवप्रभात तथा बार एसोसिएशन देहरादून के अध्यक्ष एडवोकेट सूरत सिंह नेगी ने मसूरी पहुंचकर पुलिस से रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया। लेकिन पुलिस नेउनके अनुरोध को ठुकरा दिया। जबकि आन्दोनकारियों सहित कई बेकसूर लोगों के विरूद्ध कई गंभीर धाराओं में मुकदमा अपराध संख्या 136/94 यू/एस 147, 148, 149, 353, 352, 436, 307, 302, 395, 504 व 3/4 पी डी पी एक्ट व 7 क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर उनकी धरपकड़ शुरू कर दी।
आंदोलनकारियों पर गोली चलाने के विरोध स्वरूप मसूरी की जनता सड़कों पर उतर आई। भारी जन आक्रोश व तनाव को देखते हुए प्रशासन ने 3 सितंबर को मसूरी में कर्फ्यू लगा दिया। शहर से कर्फ्यू उठने के बाद आंदोलनकारियों की ओर से उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति ने प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, गृह सचिव तथा देहरादून के जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक को पत्र भेजकर गोली कांड के दोषी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की। उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति की इस कार्यवाही के बाद पुलिस ने आंदोलनकारियों की धरपकड़ के लिए व्यापक अभियान चलाया। नामजद आंदोलनकारियों सहित कई बेकसूर लोगों पर पुलिस ने झूठे आरोप लगाकर उन्हें जेल भेजा। 5 सितंबर को भाजपा विधायक राजेंद्र शाह को भी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जिन्हें 2 महीने बाद नवंबर 1994 में रिहा किया गया।
बाद में पुलिस रिपोर्ट के आधार पर क्षेत्राधिकारी उमाकांत त्रिपाठी की हत्या सहित मसूरी हत्याकांड की विवेचना करते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो ने हुकुम सिंह रावत, देवेंद्र मित्तल, हरिमोहन गोयल, दीपक बिष्ट, राजेंद्र पवार, शूरवीर सिंह, कर्ण बर्तवाल, कुमाई, सुभाषिनी बड़थ्वाल, प्रदीप भंडारी, यशपाल रावत, प्रताप सिंह, राजेंद्र शाह (विधायक) तथा कमल सिंह रावत के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल की गयी थी।
मसूरी गोलीकांड में पुलिस एवं पीएसी लोकतांत्रिक ने प्रषासनिक व्यवस्था को किस तरह ध्वस्त निरंकुषता दिखायी उसकी पुष्टि परगना अधिकारी एवं एडीएम द्वारा अदालत में गवाही के दौरान दिये गये बयान में स्पष्ट हुई थी। जिसमें अपर जिला मजिस्ट्रेट तंवर जफर अली ने अदालत में परगना अधिकारी वीपी जसोला के उस बयान को सही बताया था जिसमें उन्होंने कहा था कि पीएसी के जवानों ने बिना फायरिंग आर्डर के ही गोलियां चलाई थी और घटना के आधे घंटे बाद उन पर राइफल तानकर डरा धमकाकर फायरिंग आर्डर पर हस्ताक्षर करवा लिए थे। मानवाधिकार संगठन और विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई जांच में भी पुलिस द्वारा आंदोलनकारियों से निपटने के तौर-तरीकों पर गंभीर आपत्तियां उठाई गई थी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!