उत्तराखण्ड : लीज रेंट केवल 100 रूपये का, और राजस्व चोरी 80 करोड़ से अधिक

हरिद्वार में किसी समय लोगों ने तीर्थ यात्रियों की सुख सुविधाओं और धर्मशालाओं के निर्माण के लिए यहां के मठ, मंदिरों, अखाड़ों और धार्मिक संस्थाओं को सैकड़ों बीधा जमीने दान की। लेकिन जिन लोगों व संस्थाओं को ये सम्पत्तियां धार्मिक और समाजिक कार्यों के दान की उनके रखवालों की ही उस पर ऐसी नियत खराब हुई कि उन्होंने एक-एक कर इन धार्मिक सम्पत्तियों को बेचना शुरू कर दिया। हालात यह हैं कि मात्र 100 रूपये के स्टाम्प पेपर पर इकरारनामें, किरायेदारी या लीज रेंट दर्शा कर फ्लैट के खरीददारों को बिना रजिस्ट्री करोड़ों की जमीन या फ्लेट दे दिये गये। इसके लिए माफिया तंत्र का एक ऐसा सिंटीकेट बना जिसमें हरिद्वार विकास प्राधिकरण उत्तराखण्ड पावन कार्पोरेशन, जल संस्थान आदि सब निर्माण क्षेत्र में सुविधाएं विकसित करते रहे। जब जमीने कम पड़ पड़ने लगी तो शामिल हिस्सेदारों ने भूमाफियाओं और बिल्डरों के साथ मिल कर देहात तक में बहुमंजिली इमारते और अपार्टमेंट बनाकर और उनमें बिजनी पानी के कनेक्शन देकर लोंगों को बेचने शुरू कर दिये। इसके लिए भी मात्र 100 पर किरायानामा लिखवाया गया जबकि बिना रजिस्ट्री कई लाख रूपये वसूल कर उन्हें कई पीढ़ियों के लिए अघोषित मालिक बना दिया। इस तरह लंबे समय से हरिद्वार की धार्मिक सम्पत्तियां ठिकाने लगायी जा रही हैं। इस संबंध में शासन प्रशासन और सरकार को कई बार शिकायते हुई लेकिन ऊँची पहुंच के चलते मामले दबा दिये जाते रहे। सहायक महानिरीक्षक निबंधक, सहायक आयुक्त स्टाप ने इस वर्ष मार्च में मामले की जांच कर संबंधितों पर कार्रवाई की संस्तुति के साथ जिला प्रशासन को पत्र भेजा था। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी भी इस खेल में लिप्त लोगों के इतने प्रभाव में थे कि कार्यवाही करने की हिम्मत ही नहीं जुटा सके।
एक अनुमान के अनुसार हरिद्वार की धार्मिक सम्पत्तियों पर नियम विरूद्ध सैकड़ों फ्लेट बना कर की गयी खरीद-फरोख्त में एक 100 करोड़ से अधिक के राजस्त की चोरी की गयी है। जबकि हालिंया खरीद-फरोख्त जांच में 80 करोड़ से अधिक के राजस्व चोरी का मामला सामने आया है, जिसके और बढ़ने की संभावना है। सूत्रों से मिल जानकारी के अनुसार इस तरह के ढाई हजार से अधिक मामले हैं जिनमे से कई की जांच हो चुकी है। स्टाम्प अधिनियम के तहत जहां पर लीज की अवधि 30 वर्ष या इससे अधिक वर्ष की होती है, नियमानुसार उक्त संपत्ति का स्टाम्प शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य के बराबर प्रतिफल के आधार पर देय होता है। लेकिन यहां सारे नियम ताक पर रख दिये गये

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