सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट ने रद्द किया महाराष्ट्र के बीजेपी विधायकों का निलंबन
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा से 12 भाजपा विधायकों के एक साल के निलंबन को असंवैधानिक करार देते हुए निलंबन रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि विधायकों का निलंबन सिर्फ उसी सत्र के लिए हो सकता है, जिसमें हंगामा हुआ था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान भी तल्ख टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रवि कुमार की बेंच ने कहा था कि ये फैसला लोकतंत्र के लिए खतरा ही नहीं बल्कि तर्कहीन भी है।
गौरतलब है कि गत वर्ष महाराष्ट्र सरकार द्वारा भाजपा विधायकों पर विधानसभा के अध्यक्ष के कक्ष में पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया था। जिस पर राज्य के संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब ने विधानसभा में 12 विधायकों के निलंबर का प्रस्ताव पेश किया था सदन ने इसे ध्वनि मत से पारित किया था। इन विधायकों को पिछले साल पांच जुलाई को विधानसभा से निलंबित कर दिया गया था।
निलंबित 12 विधायकों में संजय कुटे, आशीष शेलार, अभिमन्यु पवार, गिरीश महाजन, अतुल भटकलकर, पराग अलवानी, हरीश पिंपले, योगेश सागर, जय कुमार रावत, नारायण कुचे, राम सतपुते और बंटी भांगड़िया शामिल थे।
इससे पहले 19 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने संबंधित पक्षों से कहा था कि वे एक हफ्ते के अंदर-अदर लिखित दलीलें दें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, कि एक साल का निलंबन निष्कासन से भी बदतर है। क्योंकि, इस दौरान निर्वाचन क्षेत्र का कोई प्रतिनिधित्व नहीं हुआ। यदि निष्कासन होता होता है तो उक्त रिक्ति भरने के लिए एक तंत्र है। एक साल के लिए निलंबन, निर्वाचन क्षेत्र के लिए सजा के समान होगा। जब विधायक वहां नहीं हैं, तो कोई भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, निलंबन सदस्य को दंडित नहीं कर रहा है बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को दंडित कर रहा है।