उत्तराखण्ड में साहसिक पर्यटन

-त्रिलोक चन्द्र भट्ट
साहसिक पर्यटन की विपुल सम्भावनाओं युक्त उत्तराखण्ड की मनोरम वादियों को कुदरत ने जो नैसर्गिक सौन्दर्य दिया है उस प्राकृतिक वातावरण में गगनचुम्बी हिमाच्छादित पर्वत शिखर, दुर्गम पहाड़, ग्लेशियर और सदावाहिनी नदियों के नयानाभिराम दृश्यों ने पर्यटकों में नया जोश और उमंग भर कर हमेशा चुनौती भरा आमंत्रण दिया है। यही कारण है कि यहाँ के प्राकृतिक वातावरण से मत्रमुग्ध पर्यटक यात्रा की सारी थकान भूल कर पर्वतारोहण, हिमक्रीड़ा, जलक्रीड़ा, ट्रेकिंग और ग्लाइडिंग के साहसिक अभियानों के अन्तर्गत दुर्गम क्षेत्रों में जाने को लालायित हो उठता है।
जोखिमपूर्ण अभियानों में भाग लेने वालों में उत्तराखण्ड के लोंगों की एक ऐसी फेहरिस्त है जिन्हांेने इन अभियानों में अपनी जान कुर्बान कर इतिहास में अपना नाम अमर किया। सन् 1985 में एवरेस्ट के दूसरे अभियान में हिम समाधि लेने वाले जयवर्धन बहुगुणा, 21 सितम्बर 1992 को मैकतोली शिखर आरोहण अभियान में जीवित ही बर्फ में समाने वाले रतन सिंह विष्ट, जगदीश सिंह बिष्ट, त्रिभुवन कोरंगा और दीपक कुमार नेगी आदि उन्हीं लोगों में से एक हैं। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का परचम लहराने वालों मे पद्श्री से सम्मानित बछेन्द्रीपाल, चन्द्रप्रभा ऐतवाल, हरीश चन्द्र सिंह रावत, हर्षवर्धन बहुगुणा व हुकम सिंह रावत तथा अन्य हस्तियों में मेजर नरेन्द्र धर जुयाल, अन्वेषक नैन सिंह, मेजर जनरल प्रेमलाल कुकरेती जैसे वह हस्ताक्षर भी हैं जिन्होंने उत्तराखण्ड में साहसिक अभियानों के लिए जमीन तैयार की और आज स्थिति यह है कि इस छोटे से प्रान्त में साहसिक खेल और अभियानों की विपुल सम्भावनाओं पर सबकी नजरें गढ़ी हैं।
अगर उत्तराखंड की मुनस्यारी तहसील के मिलम गांव के निवासी किशन सिंह में पद चालन व पहाड़ों पर चढ़ने की बेमिशाल क्षमता नहीं होती तो अपनी जान जोखिम में डाल कर 1878 में हिमालयी क्षेत्र की 2800 मील लम्बी सर्वेक्षण यात्रा पैदल शुरू कर 4 वर्ष बाद 1882 में भारत नहीं लौट पाते। यह हिमालयी क्षेत्र से शुरू की गई विश्व की वह साहसिक, रोमांचकारी और ऐतिहासिक सर्वेक्षण यात्रा थी जिसमें साधनहीन किशन सिंह यहां से पैदल ल्हासा और वहां से उत्तर की ओर मंगोलिया निकल गये। लुटरों द्वारा आक्रमण करने के बाद भी उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं खोई और गोवी रेगिस्तान के पश्चिमी किनारे पर स्थित तुनहवाड चीनी राज्य कांसू पहुंचे। उत्तरकाशी के नाकुरी गांव की मूल निवासी तथा पद्मश्री और अर्जुन अवार्ड से अलंकृत भारत की प्रथम पहिला एवरेस्ट पर्वतारोही बछेन्द्री पाल भी साहसिक अभियानों में उत्तराखंड का वह गौरव है। जिन्होंने दर्जनों बार कई पर्वत शिखर ही फतह नहीं किये बल्कि 1997 में ‘दि इंडियन वूमेन्स फस्ट ट्रांस-हिमालयन, जर्नी-97’ का नेतृत्व करते हुए सात महीनों में अरूणाचल प्रदेश से भूटान और नेपाल के रास्ते सियाचीन ग्लेशियर तक पैदल चलकर 40 से अधिक दर्रों को पार किया।
उत्तराखंड में गगनचुम्बी पर्वत शिखरों, गहरी घाटियों, दुर्गम मार्गों और उफनती नदियों को पार कर वियावान जंगलों में धर्मिक स्थलों तक पहंुचने व तप करने के लिए दुर्गम मार्गों से यात्रा करना आदिकाल से ही साहसिक अभियानों से ही जुड़ा रहा है। पर्वत शिखरों पर ‘आरोहण’ को आज भले ही पर्वतारोहण अथवा ‘पदचालन’ को ट्रेकिंग का नाम दे दिया गया हो या जंगलों में वन्य जीवों व प्रकृति के अवलोकन को वन्य प्राणी पर्यटन एवं प्राकृतिक पर्यटन की संज्ञा दे दी गई हो। लेकिन अभियानों की मूल प्रकृति में बहुत बड़ी भिन्नता नहीं आयी है। अलबत्ता कालान्तर में प्रचार-प्रसार के साथ संसाधनों की उपलब्धता बढ़ने से साहसिक अभियानों का जोखिम कम हुआ है और लोकप्रियता बढ़ी है। यह सब उत्तराखंड में साहसिक खेलों के लिए अनूकूल परिस्थियां मौजूद होने के कारण ही सम्भव हुआ है। कठिन चुनौतियों को स्वीकार करने वालों के लिये युद्ध का मैदान हो या शांति का क्षेत्र इरादा ‘पक्का’ और हौसला ‘बुलंद’ हो तो कठिन से कठिन राहें भी आसान हो जाती हैं। जीवन में रोमांच और नयापन लाने के लिए ही इस क्षेत्र की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए बड़ी संख्या में आज का युवा साहसिक पर्यटन की ओर आकर्षित हो रहा है। साहसिक खेल, साहसिक अभियान, अथवा साहसिक पर्यटन ये तीनों ही क्षेत्र ऐसे चुनौती भरे हैं जिसमें रोमांच के साथ हर पल अभियान में शामिल व्यक्ति के सिर पर खतरा मंडराता रहता है। फिर भी हजारों लोग परम्परागत पुरानी पर्यटन पद्धति से हट कर अब साहसिक पर्यटन की ओर रूख करते हुये उत्तराखंड में इसका उज्जवल भविष्य देख रहे हैं।
यहां कुछ दशक पूर्व तक दुर्गम मार्गों से गुजरने वाले यात्री पेड़ों की टहनियों व झाड़ियों को पकड़ कर पहाड़ी मार्गों पर चढ़ते उतरते थे। चट्टानी दुर्गम मार्गों पर पैर रखने की जगह न होने पर वे कुदाल आदि खोदने वाले उपकरणों की सहायता से इस लायक जगह बना लेते थे कि वहां पैर रख कर आगे जा सकें। गाड़, गधेरे व गहरी नदियों को पार करने के लिए आदम युग की वैज्ञानिक पद्धति अपना कर उस पर विशाल पेड़ काट कर डाल दिये जाते थे। जो सेतु का काम करते थे। नदी के एक छोर से दूसरे छोर पर रस्सियां बांधकर भी नदी पार की जाती थी। पर अब साधन इतने विकसित हैं कि साहसिक अभियानांे के अन्तर्गत आरोहण के लिए रस्सियों व नदियों को पार करने के लिए इंजन चलित फाइवर व रबड़ की नावों का प्रयोग होने लगा है। जल क्रीड़ाओं के लिये लाइफ जैकिट व सिर की सुरक्षा के लिये हैलमेट, बेस कैम्पों अथवा नियंत्रण कक्षों से सम्पर्क के लिए द्रुतगामी संचार सुविधाएं तथा आसानी से उपयोग किये जा सकने वाले हल्के उपकरण व वस्त्रादि उपलब्ध हैं।
पहले पर्वतारोहण, शिलारोहण, रीवर राफ्टिंग, कयाकिंग, कनोइंग, पैडल वोट्स, स्पीड बोट्स, स्कीइंग, ट्रेकिंग, पैरा ग्लाइडिंग, हैंग ग्लाइडिंग, गुब्बारे की उड़ान, वन्य प्राणी पर्यटन एवं प्राकृतिक पर्यटन के लिए पश्चिमी देशों के पर्यटक ही भारतीय उप महाद्वीप के पर्वतीय क्षेत्रों का रूख करते थे। लेकिन अब बड़ी संख्या में भारतीयों ने भी इन खेलों में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी है। पर्वतारोहण, हिमक्रीड़ा, जलक्रीड़ा और एयरो स्पोटर्स जैसे साहसिक और रोमांचक अभियानों में जिस तरह आकर्षण बढ़ने से इसमें लोगों की भागीदारी बढ़ रही है उसके लिए उत्तराखण्ड में भी सरकारी तथा गैर सरकारी स्तर पर नई सम्भावनाएं तलाशी जा रही हैं। पूर्व से ही संचालित कुछ अभियानों और नई सम्भावनाओं के चलते एशिया ही नहीं विश्व के अनेक देशों का ध्यान उत्तराखण्ड की ओर आकर्षित हो रहा है जो राज्य की आर्थिक उन्नति के साथ पर्यटन उद्योग के लिए अच्छी विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला माध्यम बन सकता है। पर्यटन विभाग की सकारात्मक पहल के कारण इन खेलों अथवा अभियानों में भाग लेने के इच्छुक लोगों के लिए प्रशिक्षण के संसाधन तथा सुविधाएं पहले की अपेक्षा अब आम आदमी की जेब और पहुंच के भीतर हैं।
साहसिक अभियानों पर जाने वाले टेªकरों के लिए यहाँं कई ट्रैकिंग रूट हैं। कुमाऊँ मे बागेश्वर जिले में 3352 मीटर से 4625 मीटर की ऊँचाई पर फैला पिण्डारी ग्लेशियर, सुन्दरढूंगा (6053 मी0), व कफनी ग्लेशियर (3840 मी0) तथा सुन्दरढूंगाखाल के दक्षिणी ढाल पर 5 कि0मी0 लम्बा मैकतोली ग्लेशियर है। पिथौरागढ़ के नामिक (4830 मी0), मुख्य हिमालय श्रंृखला के 16 कि0मी0 दक्षिणी ढाल पर मिलम (4242 मी0) तथा इसी जिले में पोंटिग ग्लेशियर (3650मी0) प्रमुख हैं। अन्य ग्लेश्यिरों में रालम का नाम भी उल्लेखनीय हैं। गढ़वाल हिमालय में उत्तरकाशी के भागीरथी बेसिन में मध्यम श्रेणी का दोकरियानी तथा 4000 से 6902 मी0 की ऊँचाई पर गंगोत्री ग्लेशियर, यमुना बेसिन में बन्दरपुंछ, टिहरी जिले में भिलंगना के उद्गम पर खतलिंग, रूद्रप्रयाग जिले में चोरबारी बमक, चमोली जिले में दूनागिरी, भ्यूंडर गंगा बेसिन में तिपरबमक, पूर्वी अलकनन्दा बेसिन में बद्रीनाथ से 17 कि0मी0 दूर सतोपंथ, नन्दादेवी शिखर के दक्षिणी ढाल पर स्थित नन्दादेवी ग्लेशर समूह आदि ग्लेशियर भी हैं।
उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी और हिमाचल को जोड़ने वाला श्रंृगकंठ दर्रा, उत्तरकाशी से ही तिब्बत (चीन) को जोड़ने वाले थागला व मुलिंगला दर्रा है। चमोली जिले से तिब्बत को जोड़ने वाले माणा, नीति, कुंगरी बिंगरी व दारमा दर्रों का ट्रेकिंग मार्ग रोमांचक ही नहीं जोखिमपूर्ण भी है। इसी तरह बागेश्वर व पिथौरागढ़ को जोड़ने वाला ट्रेल पास, पिथौरागढ़ व तिब्बत के मध्य लिपूलेख, चमोली व पिथौरागढ़ के बीच बाराहोती, ग्वालदम से नंदकेसरी, मंुदोली, वाण, कनौल, सुतोल, पाणा, इराणी, झिंझी, खारतोली से क्वारीपास होते हुए तपोवन को जाने वाला प्राचीन लार्ड कर्जन ट्रैक साहसिक घुमक्कड़ी के शौकीनों के लिए जीवन के क्षणों को अविस्मरणीय बना देता है।
केदारनाथ, मद्महेश्वर, तुंगनाथ, रूद्रनाथ, कल्पनाथ अनसूया देवी, हेमकुंड-लोकपाल, पूर्णागिरि चन्द्रबदनी, सुरकुण्डा देवी आदि कई देवालयों तक पहुंचने के लिए भी अच्छी ट्रेकिंग ही करनी होती है। आदि कैलाश अर्थात छोटा कैलाश की तवाघाट से मालपा, गुंजी जोलिंगकांग और सिनलापास होते हुए दग्तू व सेला के रास्ते तवाघाट तक करीब 185 कि0मी0 की साहसिक टेªकिंग धर्मिक आस्थाओं से जुड़ी है। धर्मिक व साहसिक ट्रेकिंग अभियान में गढ़वाल और कुमाऊँ के जनमानस की सांस्कृतिक एकता और श्रद्धा की प्रतीक नन्दा देवी राजजात (यात्रा) भी उत्तराखण्ड की स्वस्थ और समृद्ध संस्कृति का अनूठा परिचायक है। मायके आई नन्दा (पार्वती) को ससुराल भेजने का यह विदाई पर्व 280 किलोमीटर की लम्बी पदयात्रा के रूप में मात्रा धर्मिक आयोजन ही नहीं नौटी, कांसुआ, सेम, कोटी, भगोती, कुलसारी, चैपड़ो, नन्द केसरी, फल्दियागांव, मुंदोली, वाण, गैरोजी पातल, पातर नचौण्डा और शिला समुद्र होते हुये होमकुण्ड तक दुर्गम पहाड़ी रास्तों, गहरी घाटियों और ऊँचे हिम शिखरों से होता हुआ पूरे विश्व में अपनी तरह का एक अनूठा साहसिक (ट्रेकिंग) अभियान है। हिमालय का यह कुम्भ भारतीय ही नहीं अब विदेशी सैलानियों को भी बड़ी संख्या में आकर्षित कर रहा है। नन्दा देवी राजजात जैसे वृहद् आयोजन और ऊँचे हिमालयी क्षेत्र में इससे बड़े ट्रेकिंग का अवसर विश्व में किसी पर्यटक को मिलना सम्भव नहीं है। देवरिया ताल और फूलों की घाटी भी टेªकिंग रूटों से ही जुड़े हैं।
राज्य का हिमालयी क्षेत्र उच्च शिखरों का विशिष्ट क्षेत्र है। चमोली जिले के 7816 मीटर ऊँचे नंदादेवी शिखर, कामेट (7756 मी0), त्रिशूल (7120 मी0), चौखम्बा (7138 मी0), द्रोणागिरि (7066 मी0) व नंदाघूंटी (6310 मी0) पिथौरागढ़ का पंचाचूली (6904 मी0), बागेश्वर का नंदाकोट शिखर (6861 मी0) एवं उत्तरकाशी के बंदरपूंछ (6315 मी0), गंगोत्राी (6674 मी0), नीलकंठ (6596 मी0), शिवलिंग (6543 मी0) आदि शिखर पर्वतारोहियों को हमेशा आरोहण के लिये आकृर्षित करते रहे हैं।
भागीरथी, अलकनन्दा, यमुना, पिण्डर, काली, धैली, सरयू आदि नदियों में रीवर राफ्टिंग को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को भी रोजगार से जोड़ा जा सकता है। इन नदियों में जल क्रीड़ाओं का अच्छा भविष्य देखा जा रहा है। नन्द प्रयाग से कर्ण प्रयाग, रूद्र प्रयाग, देव प्रयाग, वे ऋषिकेश जल मार्ग में रीवर राफ्टिंग पहले से ही होती रही है। कौड़िया व शिवपुरी से ऋषिकेश तक का जल मार्ग राफ्टिंग करने वालों में काफी लोकप्रिय है। लक्ष्मण झूला से ऋषिकेश होते हुए हरिद्वार में सप्तसरोवर क्षेत्र तथा हरिद्वार के भीमगोड़ा बैराज से निकलने वाली पूर्वी गंग नहर, यहीं मायापुर डाम से निकलने वाली पश्चिमी गंग नहर टनकपुर में शारदा बैराज से निकलने वाली शारदा नहर में स्पीड वोट्स नौकायन ही विपुल संभावनाएं मौजूद हैं। सामान्य नौकायन, पैडल वोट्स, कयाकिंग, कनोइंग व स्पीड वोट्स नौकायन उधमसिंह नगर जिले में स्थित नानकमत्ता सरोवर, जमरानी व तुमड़िया बांध पौड़ी जिले का कालागढ़ बांध, आसन बैराज (देहरादून), भीमगोड़ा बैराज (हरिद्वार) सुप्रसिद्ध नैनीझील (नैनीताल) भीमताल, नौकुचियाताल आदि में नौकायन प्रतियोगिताएं आयोजित कर पर्यटकों का आकृषित किया जा सकता है। आसान बैराज देहरादून में वाटर स्कीईंग पहले से ही आकर्षण पैदा करती रही है। टिहरी बाँध जलाशय सहित राज्य में निर्माणाध्ीन विभिन्न बाँधों के जलाशयों में इस तरह के आयोजनों के लिए अनूकूल वातावरण मौजूद है।
स्कीइंग के लिये औली, दयारा बुग्याल, मुनस्यारी व मुण्डाली में अच्छा भविष्य है तो पिथौरागढ़, भीमताल, जौलीग्रान्ट और पौड़ी में भी हैंग ग्लाडिंग व पैराग्लाइडिंग के लिए विपुल सम्भावनाएं हैं। समतल ढलान वाले कई नये क्षेत्र भी यहां मौजूद हैं जो हिम क्रीड़ाओं के लिए विकसित किये जा सकते हैं।
ट्रेकिंग, पर्वतारोहण, वन्य प्राणी पर्यटन एवं प्राकृतिक पर्यटन आदि साहसिक अभियानों के लिए संबधित क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले लोग सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। इन क्षेत्रों के निवासी पर्यटक गाइड और स्थानीय कुली ऐसे अभियानों में अधिक लाभदायक भी सिद्ध होते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करने वाले लोग पहाड़ों पर चलने, चढ़ने व प्रतिकूल मौसम का सामना करने के अच्छे अभ्यस्त हैं। बाहरी लोगों के बजाय वे कुशल मार्गदर्शक और अच्छे भारवाहक भी साबित होते हैं। पदचालन और आरोहण की भी इनमे अच्छी क्षमता होती है। उत्तराखंड में यह सब सुविधाएं मौजूद हैं। जरूरत सिर्फ सही तरीके से पर्यटन की मार्केटिंग एवं उसके विकास की है। स्थानीय, क्षेत्रीय और राज्य स्तर पर वर्गानुसार स्वेदशी तथा विदेशी पर्यटकों के मार्ग दर्शन के लिए बहुभाषी गाइडों का प्रशिक्षिण, अच्छे होटल, विश्राम गृह, खानपान, परिवहन, संचार, और मार्केटिंग की सुदृढ़ व्यवस्थाएं जिस तरह प्रतिस्थापित हो रही हैं उससे यह निश्चित है कि निकट भविष्य में देशी-विदेशी पर्यटक भारत के अन्य प्रान्तों की अपेक्षा उत्तराखंड को पहली प्राथमिकता देंगे।

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