रानीपुर-बीएचईएल सीट का चेहरा न बदलने पर भाजपा की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव निकट आ रहे हैं वैसे-वैसे दावेदारों के नाम भी सामने भी आने लगे हैं। जबकि सिटिंग एमएलए भी अपनी दावेदारी बनाए हुए हैं। हरिद्वार की रानीपुर-बीएईएल सीट पर विधायक आदेश चौहान को लेकर भी चर्चाएं गर्म हैं कि उन्हें इस बार टिकट मिलेगा या नहीं? जबकि यहां आदेश चौहान सहित भाजपा के देवकीनंदन पुरोहित, पालिका अध्यक्ष राजीव शर्मा व उज्जवल पंडित के नाम दावेदारों के रूप में सामने आ चुके हैं। विधायक आदेश चौहान को लेकर मतदाताओं की जो राय बदली हुई दिख रही हुए उससे कार्यकर्ता भी अनभिज्ञ नहीं है। लेकिन कार्यकर्ताओं में बाहर से जो देखा जा रहा है अंदरखाने उसकी हकीकत कुछ और ही है। विधानसभा क्षेत्र से जो बातें उभर कर सामने आ रही हैं उसमें पार्टी कार्यकर्ता सामने तो खुश दिख रहे हैं पीछे का दृश्य ठीक नहीं लग रहा है। लोग अब चेहरा बदलना चाहते हैं। विधायक जी के 10 साल के कामकाज की समीक्षाओं का दौर भी शुरू हो गया है। अगर विधायक आदेश चौहान के पुराने कार्यकाल की तरफ जाएं तो उनके 2012 में चुनाव जीतने के बाद जब 2013-14 में शिवालिकनगर नगर पालिका के लिए आंदोलन चला था उस समय क्षेत्र में पार्टी नेतृत्व होने के बावजूद नगर पालिका आंदोलन में भाजपा के बैनर का इस्तेमाल ही नहीं किया गया था। जबकि कांग्रेस के.हरीश रावत तो धरने तक में शामिल हुये थे। आज भाजपा से जुड़े लोग ही यह बात उठा रहे हैं कि कालांतर में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में बीडीसी बहादराबाद के लिए बीजेपी ने जिस व्यक्ति को टिकट दिया, विधायक जी ने उससे इतर निर्दलीय को ही स्पोट किया, जो आज भी उन्हीं के साथ प्रमुख सलाहकार के रूप में है। वर्ष 2016 मे यह भी हवा उड़ी कि विधायक आदेश चौहान काग्रेस में जा रहे हैं। तब इससे साफ लग रहा था कि पार्टी में अंदरखाने सब ठीक नहीं है। सामाजिक स्थिति को देखें तो कुछ वर्ष पूर्व जब तत्कालीन मुख्मंत्री त्रिवेन्द्र रावत द्वारा रानीपुर विधानसभा क्षेत्र के बहादराबाद में महाराणा प्रताप की मूर्ति का आनावरण किया था। उसकी अनावरण पट्टिका तक में क्षत्रिय समाज ने विधायक का नाम अंकित नहीं किया, जबकि विधायक उसी समाज से आते हैं, और यह उनकी विधानसभा का बड़ा कार्यक्रम था। नेतृत्व से उनकी नराजगी इस रूप मे भी सामने दिखी कि जब 2018 में शिवालिक नगर नगर पालिका चुनाव में विधायक पर अध्यक्ष पद के लिए पार्टी लाइन से बाहर जाकर एक निर्दलीय को चुनाव लड़वाने का भी आरोप लगा था। तब कई लोगों के इस्तीफे हुए थे लेकिन अब वही लोग इस क्षेत्र में पार्टी भी चला रहे हैं। अब जनता उनको कितना स्वीकार करती है, यह देखने वाली बात होगी। एक विधानसभा मे एक संगठन इकाई के बजाय तीन हिस्से हो गए हैं जिसमें क्षेत्रवार तीन अध्यक्ष हैं इससे गुटबाजी को हवा ही मिली है। जिसका सीधा असर पार्टी की लोकप्रियता और उसके अनुशासन पर पड़ा है।
विगत 10 सालों में विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत जिस विकास की बात की जा रही है उसका एक बड़ा हिस्सा बीएचईएल उपनगरी का है, जो पहले से ही विकसित है। दूसरा हिस्सा सिडकुल का है, सिडकुल भी औद्योगिक विकास के कारण विकसित है और यहां तमाम सुविधाएं उपलब्ध है। इसके बाद तीसरा प्रमुख स्थान शिवालिक नगर का है। शिवालिक नगर को विधायक द्वारा ऐसे सजाने का प्रयास किया गया है जैसे ब्यूटी पार्लर में दुल्हन को सजाया जाता है । शायद उन्होंने इससे बाहर फोकस ही नहीं किया। जबकि इन स्थानों पर नौकरी पेशा वाले लोग अधिक हैं जिस कारण विशेष विद्रोह नहीं दिखाई देता। लेकिन शिवालिक नगर से बाहर निकलने पर नवोदय नगर, टिहरी विस्थापित कॉलोनी, सुभाष नगर, सलेमपुर, नई बस्ती रावली महदूद, रानीपुर गांव, राजा गार्डन, नवोदय नगर टिहरी विस्थापित, टीरा हजारा, औरंगाबाद, हेतमपुर आदि क्षेत्रीय विकास और रोजगार की स्थिति की कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। सिडकुल का सारा औद्योगिक क्षेत्र संविदा कर्मचारियों से भरा हुआ है। यहां पर कंपनी रोल पर कर्मचारियों को रखने के बजाय ठेका प्रथा पर लंबे समय से रखा जा रहा है। 70% उत्तराखंड के लोगों को रोजगार देने के बजाय उत्तर प्रदेश के बिजनौर, सहारनपुर और मुजफ्फरनगर जैसे पड़ोसी जिलों के लोग बड़ी संख्या में सेवायोजित हैं। बार-बार स्थानीय लोगों को रोजगार में प्रमुखता देने की आवाज उठने के बावजूद इस दिशा में विधायक की भूमिका पर उंगलियां उठती रही हैं। जो आगामी चुनाव में निश्चित रूप से विधायक और बीजेपी के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं।