बापू की मौजूदगी में असहयोग आंदोलन की 1920 में पड़ी थी मुरादाबाद में नींव
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में आजादी के अमृत महोत्सव पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मुरादाबाद के योगदान पर हुई संगोष्ठी
ख़ास बातें
-टीएमयू के छात्र-छात्राओं में देशभक्ति की जगाई अलख
-कुलाधिपति के छोटे दादू-श्री केशव सरन जैन का भावपूर्ण स्मरण
-कुलपति के पूर्वजों का भी जंग-ए- आजादी से गहरा नाता
-मुरादाबाद, रामपुर, अगवानपुर, धामपुर, नगीना की यादें की ताजा
-क्रांतिकारी पूर्वजों का स्मरण कर बताई अंग्रेजों की क्रूरता की दांस्तां
-एजुकेशन के प्राचार्यों ने अतिथियों को शॉल और तुलसी के पौधे किए भेंट
प्रो.श्याम सुंदर भाटिया/सतेंद्र सिंह
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी का ऑडी 1857 के आंदोलन से लेकर 1947 तक की जंग-ए-आजादी की स्मृतियों का गवाह बना। देशभक्ति के नारों, तरानों, बहादुरी के किस्सों, क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच टकराव, देशभक्ति के जज्बे से ऑडी में मौजूद छात्र-छात्राओं में जोश, जुनून और देशभक्ति का संचार हुआ। क्रांतिकारियों के परिजनों और शिक्षाविदों ने इन राष्ट्रभक्तों का भावपूर्ण स्मरण किया। कुलाधिपति श्री सुरेश जैन के छोटे दादू-श्री केशव सरन जैन के उल्लेखनीय योगदान को भी याद किया गया। कुलपति प्रो. रघुवीर सिंह ने कहा, मेरे पूर्वजों का भी जंग-ए-आजादी से गहरा नाता रहा है। मुरादाबाद की धरा का आजादी में अविस्मरणीय बलिदान है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संग-संग कांग्रेस के बड़े नेताओं की गरिमामयी मौजूदगी में 1920 में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव मुरादाबाद में ही पारित हुआ था। इससे पूर्व टीएमयू के कुलपति प्रो. रघुवीर सिंह बतौर अध्यक्ष, निदेशक छात्र कल्याण प्रो. एमपी सिंह बतौर प्रोग्राम कॉर्डिनेटर के संग-संग अतिथि वक्ताओं श्री इशरत उल्ला खां, श्री धवल दीक्षित, डॉ. आईसी गौतम, डॉ. मनोज रस्तौगी, श्री देवेन्द्र सिंह सिसौदिया, श्री विश्व बंधु विश्नोई ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर संगोष्ठी का आगाज़ किया। संगोष्ठी में देश के उल्लेखनीय संघर्ष के अलावा मुरादाबाद, रामपुर, अगवानपुर, धामपुर, नगीना आदि में बहादुरी के किस्सों और अंग्रेजों की क्रूरता की यादें ताजा हो गईं। इस मौके पर अतिथि वक्ताओं को शॉल ओढ़ाकर और उन्हें तुलसी के पौधे भेंट कर स्वागत किया गया। संगोष्ठी का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। संचालन की बागडोर डॉ. प्रदीप शर्मा ने संभाली। डॉ. शर्मा ने बीच-बीच में अनुुशासन के लिए न केवल छात्र-छात्राओं की पीठ थपथपाई बल्कि दोहों, संस्कृत के श्लोकों, कहावतों, मुहावरों, जाने-माने साहित्यकारों का उल्लेख करके स्टुडेंट्स का ज्ञानवर्धन किया। हर अतिथि वक्ता से पहले अति संक्षिप्त परिचय भी दिया। निदेशक छात्र कल्याण प्रो. एमपी सिंह ने यूपी के 72वें स्थापना दिवस पर सबको हार्दिक बधाई देते हुए विशेषकर अतिथि वक्ताओं का संगोष्ठी में आने के लिए आभार व्यक्त किया।
संगोष्ठी में कुलपति प्रो. सिंह ने देश के प्रति कर्तव्यों का स्मरण कराते हुए कहा, हम अपने अधिकारों की तो बात करते हैं, लेकिन कर्तव्यों को भूल जाते हैं। राष्ट्र के संदर्भ में जब भी कोई बात आए तो हमें राष्ट्र से लेने की नहीं बल्कि देश को कुछ देने का जुनून होना चाहिए। उन्होंने अंग्रेजी कहावत का उल्लेख करते हुए कहा, यदि हम इतिहास को विस्मृत कर देंगे तो इतिहास अपने आप को दोहरा सकता है, इसीलिए हमें अपने इतिहास का स्मरण रहना चाहिए। स्वतंत्रता आंदोलन से मेरे परिवार का भी गहरा नाता रहा है। मेरे दादा जी के तीन भाई आजाद हिन्द फौज का हिस्सा रहे हैं। श्री धवल दीक्षित ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, हमें कोई भी ज्ञान प्राप्त करने से पहले अपनी धरा का ज्ञान होना आवश्यक है। उन्होंने पान दरीबा के दंश की जलियांबाला बाग से तुलना करते हुए इसे अविस्मरणीय बताया। श्री दीक्षित ने कहा, किसी भी देश की शक्ति उस राष्ट्र के लोगों के त्याग और समर्पण में निहित होती है। उन्होंने टीएमयू के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन के छोटे दादू- श्री केशव सरन जैन के अद्वितीय योगदान को याद करते हुए कहा, राष्ट्र हमेशा उनका ऋणी रहेगा। अमृत महोत्सव की विस्तृत व्याख्या करते हुए बोले, अमृत महोत्सव का अर्थ है-खोए हुए को एकत्रित करने का महोत्सव, अमृत महोत्सव के मायने है-स्वंय को आत्मनिर्भर बनाने का महत्व, अमृत महोत्सव का मतलब है- देश के लिए हमारी योग्यता का महत्व। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मनोज रस्तौगी ने 1857 के आंदोलन से लेकर 1947 तक की जंग-ए-आजादी की स्मृतियों का विस्तार से उल्लेख किया। डॉ. रस्तौगी ने क्रांतिकारियों को नमन करते हुए मुरादाबाद, रामपुर, अगवानपुर, धामपुर, नगीना आदि के बहादुरी के किस्सों और अंग्रेंजों की क्रूरता की तारीख, बरस और स्थान की विस्तार से यादें ताजा की। उन्होंने नवाब रामपुर की सेना के प्रो और एंटी तेवरों की भी चर्चा की। उन्होंने क्रांतिकारी मज्जू खां की बहादुरी की भी विस्तार से चर्चा की। संगोष्ठी में अतिथि वक्ताओं श्री इशरत उल्ला खां, डॉ. आईसी गौतम, श्री देवेन्द्र सिंह सिसौदिया, श्री विश्व बंधु विश्नोई ने भी अपने क्रांतिकारी पूर्वजों का भावपूर्ण स्मरण किया। संगोष्ठी में एजुकेशन कालेजों के प्राचार्यों- प्रो. रश्मि मेहरोत्रा, डॉ. कल्पना जैन, डॉ. विनोद जैन, डॉ. रत्नेश जैन, डॉ. अशोक लखेरा के अलावा एआर श्री दीपक मलिक की भी मौजूदगी रही।