देवस्थानम बोर्ड एक्ट निरस्त किया जाना, हक हकूक धारियों और कांग्रेस के संघर्ष की जीत : मनोज रावत

केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने उत्तराखंड सरकार द्वारा देवस्थानम बोर्ड एक्ट को निरस्त किए जाने पर इसे हक हकूक धारियों और कांग्रेस के संघर्ष की जीत बताया है। उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री द्वारा चारधाम देवस्थानम बोर्ड एक्ट को निरस्त करने के पीछे चारों धामों सहित पर्वतीय जनपदों के कुल 51 मंदिरों से जुड़े हक-हकूकधारियों और कांग्रेस पार्टी द्वारा सड़क से विधानसभा तक किये संघर्ष की जीत है । आनन-फानन में लिए गए इस निर्णय के पीछे कांग्रेस की सड़क से लेकर विधानसभा तक शसक्त विपक्ष के रूप में आक्रमक भूमिका भी थी।
उन्होंने कहा कि श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति , श्री गंगोत्री , श्री यमनोत्री मंदिर समितियों को भंग कर उत्तराखंड के चारों धामों का नाम हटा कर जब चार भधाम श्राइन बोर्ड के नाम से कानून बनाने का निर्णय 27 नवंबर 2019 को कैबिनेट में पास किया गया उस दिन से कांग्रेस पार्टी प्रदेश की भाजपा सरकार के सनातन धर्म के मंदिरों पर कब्जा कर उनकी कमाई से सरकार चलाने के निर्णय का विरोध कर रही थी।
श्री रावत ने कहा कि 4/5 दिसंबर 2021 जिस दिन विधानसभा में यह बिल आया और पास किया गया उस दिन कांग्रेस ने इस बिल का पूरा विरोध किया। मैंने इस बिल के विपक्ष में जमकर बात रखी। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस की मांग थी कि हकूकधारियों से बिना चर्चा के पास किये जा रहे इस बिल को व्यापक चर्चा के लिए प्रवर समिति को भेज कर सभी संबंधित लोगों से सलाह के बाद ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिए परंतु बहुमत के अहंकार में चूर भाजपा सरकार ने तुरंत ही इस बिल को पास कर दिया।
श्री रावत ने कहा यदि सरकार के इरादे नेक होते और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर उसका विश्वास होता तो कम से कम बिल को प्रवर समिति को भेजती। लेकिन केंद्र से लेकर राज्य तक भाजपा की सरकारें अहंकार के दम पर पहले अलोकतांत्रिक तरीकों से कानून पास करवा रही हैं और फिर वापस ले रही हैं।
श्री रावत ने कहा पिछले 2 साल से उत्तराखंड की धर्मावलंबी जनता इस निर्णय के विरोध में सड़क पर थी। कुछ महीनों पहले मानसून सत्र में कांग्रेस पार्टी इस बिल के निरसन के लिए प्राइवेट मेंबर बिल भी लायी थी। सरकार में थोड़ी भी सम्बेदनशीलता होती तो प्राइवेट मेंबर बिल के पक्ष में मतदान करके इस कानून को पास करवा देती लेकिन तब तक भी सरकार के मंत्री अहंकार भरे बयान दे रहे थे।
विधायक रावत ने कहा कृषि कानूनों की तरह जब सरकार ने देखा कि हकूकधारियों और तीर्थ पुरोहितों को मनाना मुश्किल है और पूरे देश की सनातन धर्म को मनाने वाली जनता हमेशा धर्म की सीढ़ी चढ़ कर सत्ता में पहुचने वाली भाजपा की सरकार को बर्दाश्त भी नही कर पा रही है तो मजबूरी में सरकार ने ये निर्णय लिया। सरकार के दिन गिने-चुने रह गए हैं उसे मालूम था कि कांग्रेस की सरकार बनते ही पहला निर्णय बोर्ड को भंग करने का होना है इसलिए मजबूरी में सरकार ने बोर्ड को भंग करने का निर्णय लिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!