आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाने में लगी भ्रष्ट अफसरों की गैंग
खास बातें
- पर्दे के पीछे उत्तराखंड सचिवालय से चल रहा है पूरा खेल
- 3 साल जेल काटकर आए एक भ्रष्ट अधिकारी को विश्वविद्यालय में नियुक्त करना चाहते हैं कुछ नौकरशाह
- ईमानदार कर्मठ आयुष चिकित्सक की चरित्र हत्या के हो रहे हैं प्रयास
- साजिश में आयुष सचिव एवं पूर्व कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा के नाम की हैं चर्चाएं
संवाद सूत्र
देहरादून। लगता है उत्तराखंड के आयुष सचिव के पास सिर्फ एक ही काम रह गया है, वह है आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाना। इसलिए सचिव हर रोज कुलपति के खिलाफ एक नई जांच बैठाते हैं। हर जांच बैठाने के बाद सचिव खुद ही मीडिया को खबर फीड कर रहे हैं। जिसमें कुलपति पर वित्तीय अनियमितता से लेकर भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोप लगाए जा रहे हैं। हर रोज उनको लेकर नई खबर बनाई जा रही है और कोशिश की जा रही है कि उन्हें एक भ्रष्ट अधिकारी घोषित किया जाए।
कुलपति डा.सुनील जोशी के खिलाफ पहले अपर सचिव सुमन सिंह बल्दिया को जांच सौंपी गई। दबाव बनाया गया कि वह 15 दिन में जांच रिपोर्ट दें। जांच में विलंब होता देखा तो एक और नई जांच हाई कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में बैठा दी। फिर मीडिया में इस समाचार को सुर्खियां बनाया। हर समाचार में डा.सुनील जोशी पर आर्थिक अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। जब जस्टिस शाही ने आरोप पत्र दिया तो उसमें डा.सुनील जोशी से तीन सवाल पूछे गए। तीनों उनकी नियुक्ति से संबंधित हैं। भ्रष्टाचार और आर्थिक अनियमितता के जो इतने बड़े आरोप सचिव और उनकी टीम मीडिया के सामने उठाती रही है, उस पर एक भी सवाल नहीं है।
क्या भ्रष्टाचार के आरोप सिर्फ एक इमानदार और कर्मठ आयुष चिकित्सक के चरित्र हत्या के लिए लगाए जा रहे हैं? इस पूरे प्रकरण का सिर्फ एक सूत्रीय एजेंडा डा. सुनील जोशी को आयुर्वेद विश्वविद्यालय से हटाना है। ताकि आयुर्वेद विश्वविद्यालय में किए गए भ्रष्टाचार की वजह से तीन साल जेल काटकर आए एक विवादित अधिकारी को आयुर्वेद विश्वविद्यालय में फिर से नियुक्त किया जाए, ताकि आयुर्वेद विश्वविद्यालय में जो एक बेहतर वातावरण बन रहा है, लोग आयुर्वेद चिकित्सा के लिए बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं, उस पूरी व्यवस्था को ध्वस्त किया जा सके?
इस पूरे प्रकरण में सिर्फ एक विवादित भ्रष्ट पूर्व कुलसचिव और एक सचिव शामिल नहीं है, इस प्रकरण में सक्रिय रूप से आयुष विभाग के पूर्व सचिव से लेकर सचिवालय में भ्रष्ट अफसरों की पूरी गैंग काम कर रही है। जो व्यवस्थाओं को पटरी पर नहीं आने देना चाहते हैं। उन्हें चिंता इस बात की भी है कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय अस्पताल की व्यवस्थाएं बेहतर क्यों हो रही है? इसे पटरी पर उतारने के लिए वह पहले भी एक प्रयास कर चुके हैं। आयुर्वेद छात्रों के स्टाइक फंड को लेकर पहले हुए समझौते को लागू करने में शासन स्तर पर किए गए विलंब की वजह से छात्र हड़ताल पर चले गए थे, जिसके तहत की गई तालाबंदी और तोड़फोड़ की वजह से पूरी व्यवस्था चरमरा गई थी। यह सब फिल्मी अंदाज में जानबूझ कर सचिवालय से संचालित किया गया।
इनका गुस्सा यह भी है कि जब आयुर्वेद विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार करने की वजह से जेल गए पूर्व कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा तीन साल बाद जब जेल से छूटे, छूटते ही उन्हें आयुर्वेद विश्वविद्यालय में फिर से कुलसचिव बनाकर भेजा गया, डा.सुनील जोशी ने उन्हें कार्यभार क्यों नहीं संभालने दिया? इस पूर्व कुलसचिव को मूल विभाग में वापस भेजा गया था, लेकिन इन्हीं भ्रष्ट खैरख्वाहों की वजह से उनको आयुष सचिव से सबंध कर दिया गया। यही पूरी गैंग अब सचिवालय से एक सूत्रीय कार्यक्रम चला रही है। लगता है कि उत्तराखंड में उत्तराखंड मूल के इमानदार, कर्मठ अधिकारियों को काम न करने देने की उन्होंने शपथ ले रखी है, व्यवस्था भी ऐसे ही लोगों का साथ दे रही है। राज्य में हो रहे इस अन्याय के खिलाफ एकजुट होने का वक्त आ गया है। अन्यथा ये भ्रष्ट उत्तराखंड विरोधी, उत्तराखंडियों को इस राज्य से बाहर का रास्ता दिखा देंगे।