बुद्धिमता और सूझबूझ की मिसाल ‘पद्मविभूषण’ सम्मान प्राप्त घनानन्द पाण्डे
संकलन/लेखन : त्रिलोक चन्द्र भट्ट
उत्तराखण्ड की धरती पर ऐसे महान व्यक्तित्व पैदा हुए हैं जिन्होंने राजकीय सेवाओं में रहते हुए अपनी बुद्धिमिता और सूझबूझ की ऐसी मिसाल छोड़ी कि सेवानिवृत्ति के उपरान्त भी सरकार ने उनकी सेवाओं का उपयोग किया। कामयाबी की मंजिलें तय करते हुए उन महान लोगों ने मात्र अपने लिये ही इज्जत व शोहरत नहीं बटोरी बल्कि उत्तराखण्ड को भी भरपूर सम्मान दिलाया। ऐसे ही लोगों में घनानन्द पाण्डे का नाम बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ लिया जाता है।
अल्मोड़ा में ‘कैरियर गाइड लाइन्सश् तथा ‘उत्तराखण्ड विकास संस्थानश् के संस्थापक और इंजीनियरिंग के क्षेत्रा में राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करने वाले घनानन्द पाण्डे मूलतः सिमल्टी (चम्पानौला) अल्मोड़ा के निवासी थे। 1 जनवरी, सन्ा 1902 से अल्मोड़ा से शुरू हुआ उनके जीवन का सफर सन्ा् 1983 में जीवन के अंतिम क्षणों तक सफलता की कई सीढ़ियाँ तय करवा गया। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा के नार्मल स्कूल में हुई। तदोपरान्त राजकीय इन्टर कॉलेज से उन्होंने इन्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। पढ़ाई में उनकी विशेष रूचि थी जिसके चलते इन्होंने विज्ञान की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के म्योर सेन्ट्रल में प्रवेश लिया। सन्ा 1922 में विज्ञान का स्नातक बनने के बाद उन्होंने इंजीनियरिग करने का निर्णय लिया। इसी उम्मीद के साथ ‘थाम्सन कालेज आफ सिविल इन्जीनियरिंगश् (वर्तमान में आई0आई0टी0) रूड़की में सिविल इंजीनियरिंग करने के लिए दाखिला लिया। 1925 में उन्होंने इंजीनियरिंग की परीक्षा 81 प्रतिशत अंकों के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर अनेक पुरस्कार प्राप्त किये।
सम्मान के साथ इंजीनियरिंग की परीक्षा उत्तीर्ण करने के तुरन्त बाद ही उनको रेलवे में इन्जीनियर की नौकरी मिल गई। इसी वर्ष स्व0 मुरलीधर पन्त की पुत्री चन्द्रावती के साथ ये परिणय सूत्रा में बंधे। पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए वे रेलवे की नौकरी में भी तरक्की करते गये। वे उत्तर-पूर्वी रेलवे और गंगा पुल परियोजना में महा प्रबन्धक के पद पर आसीन रहे। विभाग की श्रेष्ठ सेवा की बदौलत भारत सरकार ने सन् 1954 के उपरान्त उन्हें रेलवे बोर्ड का अध्यक्ष बनाया। रेलवे की सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बावजूद सरकार ने इनके प्रशासनिक अनुभवों का लाभ उठाते हुए इनकी सेवाएँ ली। इन्हें ‘हिन्दुस्तान स्टील्सश् का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। संस्थान के अध्यक्ष के रूप में इस्पात उत्पादन को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाने में उन्होंने अथक परिश्रम किया। 1961 में घनानन्द पाण्डे को रूड़की विश्व विद्यालय का कुलपति बनने का अवसर प्राप्त हुआ। 5 साल तक विश्वविद्यालय की सेवा करते हुए उन्होंने रुड़की इंजीनियरिंग कालेज को देश के प्रतिष्ठित और विशिष्ठ इंजीनियरिंग कालेजों की श्रेणी में ले जाकर खड़ा किया। उनकी वैज्ञानिक प्रतिभा, और विशिष्ट योग्यताओं के लिए 1967 में ‘रुड़की विश्वविद्यालयश् और ‘कुमाऊँ विश्व विद्यालयश् ने उन्हें ‘डाक्टर ऑफ इन्जीनियरिंग‘ की मानद उपाधि से सम्मानित किया। विभिन्न संस्थाओं में अध्यक्ष, सलाहकार व सदस्य के रूप में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले पाण्डे जी 1969 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मविभूषणश् से सम्मानित किया गया।
घनानन्द पाण्डे के व्यक्तित्व को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान जगजीत सिंह ने अपनी पुस्तक ‘80 Most Eminent Indian Scientist’ में स्थान देकर उस पंक्ति में खड़ा किया है जिसमें सी0वी0 रमन, एस0 चन्द्र शेखर, जे0सी0 बोस, एस0 रामानुजम, होमी जहाँगीर भाभा जैसी ख्याति प्राप्त हस्तियों के नाम अंकित हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर कार्यवाह प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह ‘रज्जू भैयाश् पाण्डे जी को पुरानी पीढ़ी के ऋषि तुल्य व्यक्ति बताते थे। सन् 1983 में अपना जीवन त्यागने तक पूरे जीवन काल में उन्होंने अपने सिद्धान्तों से कभी समक्षौता नहीं किया।