भाषा परिचय एवं राजभाषा हिंदी

-त्रिलोक चन्द्र भट्ट
‘भाषा’ किसी भी समाज में संवाद और संचार का माध्यम होती है। राष्ट्रीय संदर्भ में यह राष्ट्र की पहचान होती है। भाषा प्रायः विचारों के समान प्रतिमानों को अभिव्यक्त करती है। यह सामाजिक और सांस्कृतिक स्मृतियों को अपने में संजोकर आगे बढ़ते हुए चलती है।‘भाषा’ विचारों की संवाहिका और अभिव्यक्ति का ऐसा सरल माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने भावों और विचारों को दूसरों के सामने प्रकट करते हैं। यह अभिव्यक्ति और अनुभूति के मध्य संतुलन स्थापित करने वाली संवाहिका है। सीधे सरल शब्दों में कहें तो भाषा विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम होती है। भाषा जितनी ही सरल, सरस और सुमधुर होती है उतनी ही लोकप्रिय भी होती है।

मानव उद्भव के इतिहास का अवलोकन करने पर ऐसा पाया जाता है कि शायद प्रथम मानव किसी भाषा का प्रयोग नहीं जानता होगा, इस पर कई विद्वानों का मत है कि वह मात्र ध्वनि के संकेतों से अपने मनोभावों को व्यक्त करता होगा इसीलिए कालान्तर में ध्वनि से शब्द और शब्द से भाषा का उद्भव हुआ होगा। इसके लिए आदि काल के मानव ने जिह्‌वा, तालु, तथा ओष्ठों का प्रयोग किया। आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक संकेतों की अभिव्यक्ति, जो अभिव्यंजना हेतु मानव के होंठो से अभिव्यक्त होती है वही वर्णों में व्यक्त वाणी या भाषा बन गई और समय से साथ-साथ इसकी नई-नई परिभाषाएं भी बनती चली गई। हर राष्ट्र के पास अपना एक चिंतन और भावनाएं होती हैं, जिसे वह अपनी भाषा में व्यक्त करता है। भाषा केवल अभिव्यक्ति का ही माध्यम नहीं होती बल्कि उससे बोलने वालों की संस्कृति और संस्कार भी जुड़े होते हैं। भाषा जहाँ अपनी सांस्कृतिक विरासत से उपजी हुई है, वहीं वह इस विरासत को आगे आने वाली पीढ़ी तक भी पहुँचाती है।
सामान्यतः भाषा की कुछ उप-भाषाएं और बोलियाँ होती हैं जिनका कुछ लिखित साहित्य और लोक साहित्य होता है। हिंदी की भी अनेक उप-भाषाएं और बोलियां हैं। हिंदी की कई उप-भाषाए समृद्ध रही हैं। भारतीय जनभाषा 1961 के अनुसार हिंदी में 97 भाषा रूप हैं जिन्हें हिंदी, पूर्वी हिंदी, राजस्थानी हिंदी, बिहारी हिंदी, पहाड़ी हिंदी आदि में वर्गीकृत किया गया है। बिहारी के अंतर्गत 34, राजस्थानी में 73, पहाड़ी के अंतर्गत (गढ़वाली तथा कुमाऊँनी) 16 भाषा रूपों की गणना की गई है। जैसे ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली आदि। विभिन्न विद्वान इसे अपने-अपने तरीके से परिभाद्गिात करते हैं।
प्रत्येक देश की अपनी एक ऐसी घोषित भाषा होती है, जिसमें वहां का सारा कामकाज होता है। अलग अलग भाषाओं के बावजूद सुविधा की दृष्टि से सरकारी कामकाज में जिस भाषा को प्रमुखता प्रदान की जाती है वह झ्राजभाषाश् की श्रेणी मे आती है। फिर भी कई लोगों को राष्ट्रभाषा, राजभाषा, राज्य भाषा व बोली के विषय में जिज्ञासा रहती है। इनकी भिन्नता का विवरण निम्नानुसार दिया गया है।
राष्ट्र भाषा
किसी भी देश में एक से अधिक भाषाएं होती हैं किंतु पूरे देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए एक भाषा ऐसी होती है जो पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है। संपूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा को ही राष्ट्र भाषा कहा जाता है। राष्ट्र भाषा के माध्यम से संपूर्ण राष्ट्र में विचार-विनिमय एवं संपर्क किया जाता है। प्रायः राष्ट्र भाषा ही किसी देश की राजभाषा होती है लेकिन इस श्रेणी में उस देश के अधिकाधिक लोगों द्वारा बोली या समक्षी जाने वाली एक से अधिक भाषाएं भी शामिल होती हैं।
राजभाषा
किसी भी देश की वह घोषित भाषा जिसका सभी राजकीय प्रयोजनों और सरकारी कार्यालयों में प्रयोग होता है उसे राजभाषा कहते हैं। दूसरे शब्दों में राजभाषा वह भाषा होती है जिसका प्रयोग देश की शासन व्यवस्था को चलाने के लिए किया जाता है। इस दृष्टि से इसे सरकारी कामकाज की भाषा भी कहा जाता है। राजभाषा का प्रयोग सरकारी पत्र-व्यवहार, प्रशासन न्याय व्यवस्था आदि सामाजिक कार्यों के लिए होता है।
राज्य भाषा

प्रदेश सरकार द्वारा अपने राज्य के अंतर्गत प्रशासनिक कार्यों को करने के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है उसे राज्य भाषा कहते हैं। राज्यों की विधानसभा द्वारा अपने राज्य में प्रचलित एक या एक से अधिक भाषाओं को राज्य भाषा घोषित किया जा सकता है। राज्य भाषा राज्य के प्रशासन और जनता के बीच संपर्क के लिए होती है।
मातृ भाषा
मातृ भाषा वह भाषा है जो किसी व्यक्ति के बचपन में उसकी मां द्वारा उसके साथ बोलने में प्रयोग होती है। मातृभाषा के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह राजभाषा या उस प्रदेश की राज्य भाषा हो। यह कोई बोली भी हो सकती है।
संपर्क भाषा
विभिन्न भाषा-भाषियों को परस्पर जोड़ने का काम करने वाली भाषा संपर्क भाषा कहलाती है।
बोली
भाषा की छोटी इकाई को बोली कहते हैं। दूसरे शब्दों में बोली सीमित क्षेत्र में प्रयोग होने वाली भाषा है। देशज तथा घरेलू शब्दावली के बाहुल्य वाली बोली का संबंध ग्राम एवं मंडल से रहता है। क्षेत्र विस्तार के साथ बोलियों में बदलाव आता रहता है।
राजभाषा हिंदी
भारत के संविधान में ‘हिंदी’ को ‘राजभाषा’ का स्थान दिया गया है। इसकी भूमिका राजभाषा के रूप में होने के साथ-साथ संपर्क भाषा की भी है जो पूरे देश के लोगों को आपस में जोड़े रखने का काम करती है।
संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी लेकिन संविधान लागू होने के बाद 15 वर्षों तक अर्थात्‌ा 1965 तक संघ की भाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग किया जाना था और संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह चाहे तो संघ की भाषा के रूप में अंग्रेजी के प्रयोग की अवधि को बढ़ा सकती थी। इसलिए संसद ने 1963 में राजभाषा अधिनियम, 1963 पारित करके यह व्यवस्था कर दी कि संघ भाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग 1971 तक करता रहेगा, लेकिन इस नियम में संशोधन करके यह व्यवस्था कर दी गयी कि संघ की भाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग अनिश्चितकाल तक रहेगा।
संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में से केवल हिंदी ही ऐसी भाषा है जो देश के अधिकांश भागों में और अधिकतर लोगों द्वारा बोली और समक्षी जाती है। यह पूरे देश की संपर्क भाषा है। 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को राजभाषा घोषित करने के साथ इसके प्रयोग के लिए संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक विशेष प्रावधान किए गए हैं। इन प्राविधानों में जो महत्वपूर्ण उल्लेख हैं वह निम्नवत्‌ हैं-

  1. अनुच्छेद 343 में ‘‘संघ की राजभाषा’’
  2. अनुच्छेद 343 में ‘‘राजभाषा के लिए आयोग और संसद की समिति’’
  3. अनुच्छेद में 345, 346, 347 ‘‘में प्रादेशिक भाषाएं अर्थात राज्य की राजभाषा/राजभाषाएं’’
  4. अनुच्छेद 348 में ‘‘उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा अधिनियमों, विधेयकों आदि की भाषा’’
  5. अनुच्छेद 349 में ‘‘भाषा संबंधी कुछ विधियों को अनियमित करने के लिए विशेष ‘प्रक्रिया’
    ०६. अनुच्छेद ३५० में ‘‘व्यथा के निवारण के लिए प्रयुक्त भाषा, प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं तथा भाषायी अल्पसंखयक वर्ग के लिए विशेषाधिकार’’
  6. अनुच्छेद 351 में झ्झ्हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देशश्श्
    14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार करने के बाद वर्तमान स्थिति तक पहुँचने के लिए हिंदी ने एक लंबा सफर तय किया है। १९५२ में शिक्षा मंत्रालय द्वारा हिंदी भाषा का प्रशिक्षण ऐच्छिक तौर पर प्रारंभ किया गया था। इसी वर्ष 27मई, 1952 को राज्यपालों, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों में अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा व भारतीय अंको के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप के अतिरिक्त अंकों के देवनागरी स्वरूप का प्रयोग प्राधिकृत किया गया। जुलाई, 1955 में हिंदी शिक्षण योजना की स्थापना से केंद्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों, संबद्ध व अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण का मार्ग प्रशस्त हुआ। अक्तूबर, 1955 में हिंदी शिक्षण योजना गृह मंत्रालय के अंतर्गत प्रारंभ की गई। 3 दिसंबर, 1955 को संविधान के अनुच्छेद 343 (2) के परन्तुक द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए संघ के कुछ कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का प्रयोग किए जाने के आदेश जारी किए गए।
    27 अप्रैल, 1960 को संसदीय समिति की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति के आदेश जारी किए गए इनमें हिंदी शब्दावलियों का निर्माण, संहिताओं व कार्यविधिक साहित्य का हिंदी अनुवाद, कर्मचारियों को हिंदी का प्रशिक्षण, हिंदी प्रचार, विधेयकों की भाषा, उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों की भाषा आदि मुद्दे हैं। 10 मई, 1963 को अनुच्छेद 343 (3) के प्रावधान व पं. जवाहरलाल नेहरू के आश्वासन को ध्यान में रखते हुए राजभाषा अधिनियम बनाया गया। इसके अनुसार हिंदी संघ की राजभाषा व अंग्रेजी सह-भाषा के रूप में प्रयोग में लाई गई। 5 सितंबर, 1967 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय हिंदी समिति का गठन किया गया। यह समिति सरकार की राजभाषा नीति के संबंध में महत्वपूर्ण दिशा-निदेश देने वाली सर्वाेच्च समिति है। इस समिति में प्रधानमंत्री, सांसद तथा हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के विद्वान सदस्य के रूप में शामिल किए जाते हैं।
    16 दिसंबर, 1967 के दिन दोनों सदनों के द्वारा राजभाषा संकल्प पारित किया गया जिसमें हिंदी के राजकीय प्रयोजनों हेतु उत्तरोत्तर प्रयोग के लिए अधिक गहन और व्यापक कार्यक्रम तैयार करने, प्रगति की समीक्षा के लिए वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करने, हिंदी के साथ-साथ ८वीं अनुसूची की अन्य भाषाओं के समन्वित विकास के लिए कार्यक्रम तैयार करने, त्रिभाषा सूत्र को अपनाए जाने, संघ सेवाओं के लिए भर्ती के समय हिंदी व अंग्रेजी में से किसी एक के ज्ञान की आवश्यकता अपेक्षित होने तथा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उचित समय पर परीक्षा के लिए संविधान की ८वीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की बात कही गई है। (संकल्प 18.08.1968 को प्रकाशित हुआ)
    8 जनवरी, 1968 को राजभाषा अधिनियम, 1963 में संशोधन किए गए। तदनुसार धारा 3 (4) में यह प्रावधान किया गया कि हिंदी में या अंग्रेजी भाषा में प्रवीण संघ सरकार के कर्मचारी प्रभावी रूप से अपना काम कर सकें तथा केवल इस आधार पर कि वे दोनों ही भाषाओं में प्रवीण नहीं हैं, उनका कोई अहित न हो। धारा 3 (5) के अनुसार संघ के राजकीय प्रयोजनों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त कर देने के लिए आवश्यक है कि सभी राज्यों के विधान मंडलों द्वारा (जिनकी राजभाषा हिंदी नहीं है) ऐसे संकल्प पारित किए जाएं तथा उन संकल्पों पर विचार करने के पश्चात अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त करने के लिए संसद के हरेक सदन द्वारा संकल्प परित किया जाए। इसी वर्ष राजभाषा संकल्प 1968 में किए गए प्रावधान के अनुसार 1968-69 से राजभाषा हिंदी में कार्य करने के लिए विभिन्न मदों के लक्ष्य निर्धारित किए गए तथा उसके लिए वार्षिक कार्यक्रम तैयार किया गया।
    1 मार्च, 1971 को केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो का गठन किया गया और 1973 में इसके दिल्ली स्थित मुखयालय में एक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई।
    1974 में तीसरी श्रेणी के नीचे के कर्मचारियों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों तथा कार्य प्रभारित कर्मचारियों को छोड़कर केंद्र सरकार के कर्मचारियों के साथ-साथ केंद्र सरकार के स्वामित्व एवं नियंत्रणाधीन निगमों, उपक्रमों, बैंकों आदि के कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए हिंदी भाषा, टंकण एवं आशुलिपि का प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया। एक वर्ष बाद जून, 1975 में राजभाषा से संबंधित संवैधानिक, विधिक उपबंधों के कार्यान्वयन हेतु राजभाषा विभाग का गठन किया गया। 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए इसी वर्ष संसदीय राजभाषा समिति का भी गठन हुआ।
    25५ अक्टूबर, 1983 को केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों, विभागों, सरकारी उपक्रमों, राष्ट्रीयकृत बैंकों में यांत्रिक और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों द्वारा हिंदी में कार्य को बढ़ावा देने तथा उपलब्ध द्विभाषी उपकरणों के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से राजभाषा विभाग में तकनीकी कक्ष की स्थापना की गई। कर्मचारियों व अधिकारियों को हिंदी भाषा, हिंदी टंकण और हिंदी आशुलिपि की पूर्णकालिक गहन प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराने के लिए 21 अगस्त, 1985 को केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान का गठन किया गया।
    24 जनवरी, 2000 को राजभाषा विभाग के पोर्टल का लोकार्पण किया गया इसमें विभाग से संबंधित जानकारियां द्विभाषिक रूप में उपलब्ध कराई गई हैं।
    कंप्यूटर की सहायता से विभिन्न भारतीय भाषाओं में प्रबोध (प्राइमरी), प्रवीण (मिडिल), तथा प्राज्ञ (मैट्रिक), स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए राजभाषा विभाग ने कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार करवा कर सर्व साधारण हेतु इसका निःशुल्क प्रयोग करने के लिए राजभाषा विभाग की वेब साइट पर उपलब्ध कराया है।

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