राजनैतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार उत्तराखण्ड के लिए सबसे बड़ा खतरा
देहरादून में आयोजित पहली ‘प्रवासी Meet’ में छलका लोगों का दर्द
त्रिलोक चन्द्र भट्ट
देश के विभिन्न राज्यों और महानगरों में बसे होने के बावजूद अपने गौरवशाली अतीत को याद कर अपने जड़ों से जुड़ने की ललक लिये लोगों की शनिवार 25 दिसंबर, 2021 को देहरादून के उज्जवल रेस्टोरेंट में पहली ‘प्रवासी मीट’ आयोजित हुई। यह प्रवासी डममज प्रवासियों और निवासियों की अपनी कथा-व्यथा के साथ वर्तमान पीढ़ी को आत्मचिंतन का ऐसा संदेश दे गयी है जिस पर अगर अमल हुआ तो उत्तराखण्ड देश का सबसे सुन्दर, प्रगतिशील और आदर्श राज्य बन कर उभर सकता है।
मुंबई में कौथिक के माध्यम से महाराष्ट्र में उत्तराखण्ड को एक नई पहचान दे चुके केशर सिंह बिष्ट की प्रवासी मीट की परिकल्पना जब उत्तराखण्ड जनमंच के संयोजन में आरंभ हुई तो इसमें उत्तराखंड की जड़ों से जुड़े और विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले व्यवसायी, उद्योगपति, बैंकर, पत्रकार, वकील, शिक्षाविद् और राजनैतिक प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया। परिचर्चा आरंभ होने पर एक-एक कर सबके मन की पीड़ायें और दर्द भी छलक कर बाहर आया। देर रात तक चली इस परिचर्चा में उत्तराखंड के आम आदमी के हितों के संरक्षण के लिए भ्रष्ट नौकरशाही और राजनीति पर लगाम लगाने के लिए प्रेशर ग्रुप बनाने की विचारधारा उभर कर सामने आयी। प्रवासियों और निवासियों के इस मिलन में राजनैतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार को उत्तराखण्ड के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया गया। एक उद्योगपति निवेशक ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण कुछ ही दिनो में वे अपना 4 करोड़ रूपया गवां चुके हैं तो एक युवा उद्यमी ने बताया कि राज्य के एक महानिदेशक स्तर के अधिकारी ने उन्हें सिर्फ इसलिए काम नहीं दिया क्योंकि दूसरी एमएनसी उन्हें महंगी गाड़ियों की सुविधा और साल में फ्री फॉरेन ट्रिप कराती हैं, जो वे नही दे सकते थे। परिचर्चा में यह भी सामने आया कि उत्तराखण्ड में विभिन्न स्रोतों से एक लाख हजार करोड़ रूपया आ रहा है। लेकिन धरातल पर खर्च होने के बजाय एक बड़ी राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है। कहा गया कि पटवारी से लेकर अधिकारी तक हर टेबल पर उनके प्रोजक्ट की फाइलों को इसलिए रोका जाता कि उनको कुछ मिल जाये। कहा गया कि नेताओं और राजनैतिक पार्टियों को मोटा डोनेशन चाहिए। अन्यथा नौकरशाही और राजनीति के गठजोड़ के बीच फंसी फाइलों पर आपत्ति के बाद आपत्ति और नोटिस देकर इस कदर परेशान कर दिया जाता है कि निवेशक अपना प्रोजक्ट लगाने के विचार ही छोड़ देता है या बीच में ही प्रोजक्ट छोड़ कर चला जाता है।
उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं को अभाव, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की लचर व्यवस्थाओं के कारण हो रहा पलायन, पहाड़ और मैदान के बीच जनसंख्या असंतुलन, रीवर्स माइग्रेशन, स्थायी राजधानी सहित तमाम वह मुद्दे प्रवासी मीट में छाये रहे जिसका सीधे-सीधे आम आदमी से सरोकार था। यह बड़ी अजीब बात है कि वर्षों पहले अपना घर, गांव छोड़ कर वापिस आने लोग जब अपने क्षेत्र और राज्य के विकास के लिए कुछ काम करना चाह रहे हैं या पूंजी निवेश करना चाह रहे हैं तो उन्हें आज किसी बाहरी से नहीं बल्कि अपनों से ही उनकी वैचारिक सोच के साथ भी संघर्ष करना पड़ रहा है। बहरहाल प्रवासी मीट का सफर जारी है, उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तराखण्ड की बेहतरी के लिए संवाद की यह कड़ी कदर दर कदम आगे बढ़ते हुए एक नयी विचारधार और विकल्प को जन्म देगी। प्रवासी Meet’ में शांति प्रसाद भट्ट, मनमोहन लखेड़ा, शंकरसिंह भाटिया, योगेश दुबे, गजेंद्र गौड़ (उद्योगपति, मुंबई), दिनेश डोभाल (उद्योगपति मुंबई), डी के जोशी (वरिष्ठ पत्रकार), दिनेश जुयाल (वरिष्ठ पत्रकार), सरिता भंडारी-बलूनी (जयपुर), सुनील जुयाल (अभिनेता), शांति प्रसाद भट्ट, पत्रकार मनोज इस्टवाल, मोहन भुलानी, इंदरसिंह नेगी, नंदलाल भारती, इंदु नवानी, कुलबीरसिंह पांगती, रमेश पेटवाल, गिरीश चंद्र जोशी, सुनित्स बौड़ाई, कविता पाल, राजेंद्र गोस्वामी, त्रिलोक चंद्र भट्ट, जगदम्बा प्रसाद मैठाणी, शंकर सिंह भाटिया, योगेश भट्ट, दीपक नौटियाल, ललितेन्द्र नाथ, बालकृष्ण शास्त्री, सुरेंद्र बिष्ट, कांता प्रसाद, मनु जोशी, राज आर्यन, विकेश बाबा, नरेंद्रसिंह नेगी सहित बड़ी संख्या में लोगों ने वैचारिक चिंतन के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।