निर्दयी और निष्ठुर प्रशासन, एकाएक उदार और आत्मीय हुआ

राजीवलोचन शाह

चमोली का जिला प्रशासन, जो कुछ समय पूर्व तक निर्दयी और निष्ठुर था, एकाएक बहुत उदार और आत्मीय हो गया है। 26 जुलाई को कारगिल दिवस के महत्वपूर्ण कार्यक्रम छोड़ कर एक ए. डी. एम. साहब हेलंग गाँव में श्रीमती मंदोदरी देवी के घर पहुँचे। उन्होंने मंदोदरी देवी से कहा कि वे तो अपना पर्यावरण बचाने के लिए महत्वपूर्ण काम कर रही हैं। अब उनकी चारागाह में कोई भी मलवा नहीं डालेगा। यदि कोई इस बात को न माने तो वे आधी रात को भी ए.डी.एम. साहब को फोन कर सकती हैं।
यह वही जिला प्रशासन है, जिसके आदेश पर 15 जुलाई को पुलिस और केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के जवानों ने मंदोदरी देवी और उनकी साथ की घसियारियों के न केवल घास के गट्ठर छीने, बल्कि उनके साथ बदसलूकी भी की। उन्हें घण्टों हिरासत में रखा और पीने के लिए पानी तक नहीं दिया। इन औरतों के साथ एक छोटी सी बच्ची भी हवालात में भूख-प्यास से तड़पती रही।
इस घटना के वीडियो वायरल हो जाने पर पूरे उत्तराखंड में लोगों का खून खौल उठा। जगह-जगह इस घटना के विरोध में प्रदर्शन हुए और ज्ञापन दिये गए। पुराने आंदोलनकारियों ने एक व्हाट्सएप ग्रुप बना कर एक दूसरे से संपर्क किया। तथ्यान्वेषण तथा हेलंग की महिलाओं से एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए ‘हेलंग चलो’ का आह्वान किया गया। 24 जुलाई को उत्तराखंड के कोने-कोने से दर्जनों लोग, जिनमें पूर्व आंदोलनकारी, समाजसेवी, पत्रकार, वकील और छात्र-युवा शामिल थे, पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हेलंग पहुँचे। उन्होंने वहाँ जुलूस निकाला और सभा की। सभा में भारी संख्या में स्थानीय लोगों, जिनमें महिलाओं का आधिक्य था, ने शिरकत की। ये लोग पटवारी द्वारा सभा में न जाने के स्पष्ट निर्देश दिये जाने के बावजूद आये थे। कुछ लोग डर कर नहीं भी आये। सभा में तमाम लोगों के साथ मन्दोदरी देवी ने भी अपनी बात रखी।
इस प्रतिरोध का खासा असर हुआ। कांवड़ियों के चरण पखारने और उन पर हेलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा करवाने की व्यस्तता के बीच मुख्यमंत्री के हृदय में अपने प्रदेश की घसियारियों के प्रति ममता जगी और उन्होंने गढ़वाल कमिश्नर को इस घटना की जाँच के आदेश दे दिये। महिला आयोग ने भी इस घटना का संज्ञान लिया है।
आंदोलकारी सरकार-प्रशासन के इस हृदय परिवर्तन से सन्तुष्ट नहीं हैं। वे जिलाधिकारी के स्थानांतरण और घटना के दोषी अधिकारियों-जवानों को दण्डित करने की माँग कर रहे हैं। वे बाँध निर्माण करने वाली कंपनियों, जो इस घटना के मूल में हैं, पर नकेल कसने और इस घटना की जाँच हाई कोर्ट के जज से करवाने की माँग कर रहे हैं।
रेणी, जहाँ पचास साल पहले गौरा देवी ने ‘चिपको’ का बिगुल फूँका था, हेलंग से ज्यादा दूर नहीं है। गौरा देवी को अब देश का बच्चा-बच्चा जानता है। उत्तराखंड में उनके नाम से सरकार हर साल एक प्रतिष्ठित पुरस्कार देती है। गौरा देवी ने अविभाजित उत्तर प्रदेश सरकार की शह पर काम कर रही साइमंड कम्पनी के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया था। मन्दोदरी जनता के संघर्ष से बने स्वशासित उत्तराखंड के सरकार-प्रशासन और उनकी आड़ में पनप रहे कम्पनी राज के खिलाफ मोर्चा ले रही हैं।
उनके संघर्ष को सलाम!

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