उत्तराखंड में पारंपरिक और जैविक उत्पादों के संरक्षण के लिए बनेगा जीआई बोर्ड

कुमांऊ के च्यूरा ऑयल, मुनस्यारी की राजमा, उत्तराखंड के भोट क्षेत्र का दन, उत्तराखंड के ऐपण, रिंगाल क्राफ्ट, ताम्र उत्पाद एवं थुलमा को मिल चुका है जीआई टेग

उत्तराखंड में पारंपरिक और जैविक उत्पादों के संरक्षण और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाने के लिए राज्य भौगोलिक संकेत बोर्ड (ज्योग्राफिकल इंडिकेटर) बनाया जाएगा। कृषि मंत्री गणेश जोशी की ओर से प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जीआई बोर्ड बनाने की घोषणा की है। इस बोर्ड के बनने से उत्तराराखण्ड के स्थानीय उत्पादों को कानूनी संरक्षण भी मिलेगा।
भौगोलिक संकेतांक यानि जीआई टैग एक विशिष्ट प्रकार का संकेतांक है। इसका प्रयोग किसी विशिष्ट क्षेत्र में पैदा होने वाले या बनाए जाने वाले उत्पाद को पहचान देने में किया जाता है। उत्तराखंड में सबसे पहले तेजपत्ता को जीआई टैग मिला था। इस टैग के मिलने से संबंधित वस्तु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक विशिष्ट पहचान के साथ स्थापित हो जाती हैं।
उत्तराखंड में अब तक सात उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। इनमें कुमांऊ के च्यूरा ऑयल, मुनस्यारी की राजमा, उत्तराखंड के भोट क्षेत्र का दन, उत्तराखंड के ऐपण, रिंगाल क्राफ्ट, ताम्र उत्पाद एवं थुलमा शामिल हैं। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र में पैदा होने वाला लाल चावल, बेरीनाग की चाय, गहत, मंडुआ, झंगोरा, बुरांस का शरबत, काला भट, चौलाई/ रामदाना, अल्मोड़ा की लाखोरी मिर्च, पहाड़ी तोर दाल और माल्टा को भी जल्दी ही जी आई टेग मिल सकता है।

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