कुमाऊँनी एकता समिति ने होली गायन की परंपराओं को जीवंत किया, देर रात तक चला होली गायन

हरिद्वार। कुमाऊं की होली गीतों से जुड़ी है, जिसमें खड़ी व बैठकी होली ग्रामीण अंचल की ठेठ सामूहिक अभिव्यक्ति है। कुमाऊँनी एकता समिति ने होली गायन की उन्हीं परंपराओं को जीवंत करते हुए शिवालिकनगर हरिद्वार में धूमधाम के साथ होली मनाई। बीती सायं आरंभ हुई आध्यात्मिक रसों, भक्ति, शृंगार आदि से जुड़ीं होलियों का गायन देर रात तक चला जिसका श्रोताओं ने जम कर लुत्फ उठाया।
होली हर्ष, उल्लास और ऋतु परिवर्तन का पर्व है। कुमाऊं में होली गायन की परंपरा का आरंभ 16वीं सदी में राजा कल्याण चंद के समय में हुआ। कुमाऊं की बैठकी होली का नियमित गायन वर्ष 1850 से माना जाता है। वर्ष 1870 से कुमाऊं में इसे वार्षिक समारोह के रूप में मनाया जाने लगा। दवैसे जनसामान्य इसे होलिका एवं प्रहलाद के प्रसंग से जोड़कर देखता है, जिसमें होली का मनोविनोद, गीत संगीत, मिलना, रंग खेलना एक पक्ष है तो होलिका दहन दूसरा पक्ष है। यहां कुमाऊँनी एकता समिति ने मनोविनोद, गीत संगीत, मिलने, और रंग खेलने वाले पक्ष के साथ होलिकोत्सव मनाया।
सामुदायिक केन्द्र शिवालिक नगर में जब परिवार, समाज में होने वाली विभिन्न घटनाओं, स्त्री पुरुष प्रसंग, हास्य ठिठोली से भरी होली गायन प्रारंभ हुआ तो झनकारो, झनकारो झनकारो…… गोरी प्यारो लगो तेरो झनकारो की झंकार के साथ होल्यार ढोलक की थाप पर स्वयं थिरक उठे। इसमें शिव के मन माहि बसे काशी….. हरि धरै मुकुट खेले होरी…. पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। बृज कुंजन मोर मुकुटधारी….भरत हम कपि से उऋण नाहीं…., लंकापति हर लै गयो सीता, लांघ्यो सागर श्रम नाहिं, आज बिरज में होली रे रसिया, होली है रे रसिया….,
अबीर गुलाल के थाल भरे हैं, केसर रंग छिड़़काओ रे रसिया, मुरलिया बाजे नंदलाल, कांस कटोरा भर के केशर, झोला भर के अबीर गुलाल, और गई-गई असुर तेरी नारि, मंदोदरि सिया मिलन गई बागा में की प्रस्तुतियों के साथ देर रात्रि तक होली गायन चलता रहा।

कुमाऊं की होली के काव्य में विस्तृत भाव एवं संगीत पक्ष में शास्त्रीयता है। कुमाऊँनी एकता परिषद होली गायन को उसी रूप से नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास कर रही है।

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