दुनिया के खतरनाक रास्तों सुमार गर्तांगली पर्यटकों के लिए खुला
दुनिया के खतरनाक रास्तों में सुमार भारत और तिब्बत के बीच होने वाले व्यापार और ऐतिहासिक वास्तुकला की बेजोड़ निशानी गर्तांगगली को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। पर्यटकों के लिए कोविड एसओपी का अनुपालन और भैरवघाटी के पास की चेकपोस्ट पर पंजीकरण अनिवार्य किया गया है।
उत्तरकाशी से करीब 88 कि0मी0 दूर भैरोंघाटी के समीप स्थित ट्रेक का जीर्णाेद्धार कर 136 मीटर लंबे व 1.8 मीटर चौड़े लकड़ी से निर्मित सीढ़ीदार ट्रेक तैयार किया गया है। पर्यटकों व ट्रेक की सुरक्षा के लिए एक बार में अधिकतम 10 लोगों को ही यहां जाने की अनुमति है। ट्रेक में झुंड बनाकर आवागमन करने या एक जगह बैठने के साथ ट्रेक की रेलिंग से नीचे झांकने पर भी पाबंदी लगाई गई है। यह सीढ़ीदार ट्रेक खड़ी चट्टानों को काटकर लकड़ी से बनाया गया है। प्राचीन समय में सीमांत क्षेत्र में रहने वाले जादूंग, नेलांग को हर्षिल क्षेत्र से पैदल मार्ग के माध्यम से जोड़ा गया था। मार्ग से स्थानीय लोग तिब्बत से व्यापार भी करते थे। सेना भी सीमा की निगरानी के लिए इस मार्ग का उपयोग करती थी। लेकिन बाद में चलन से बाहर होने पर ट्रेक क्षतिग्रस्त हो गया
समुद्रतल से 10500 फीट की ऊंचाई पर एक खड़ी चट्टान को काटकर बनाए गए इस सीढ़ीनुमा मार्ग से गुजरना बहुत ही रोमांचकारी अनुभव है। 140 मीटर लंबा यह सीढ़ीनुमा मार्ग 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर बनाया था। 1962 से पहले भारत.तिब्बत के बीच व्यापारिक गतिविधियां संचालित होने के कारण नेलांग घाटी दोनों तरफ के व्यापारियों से गुलजार रहती थी। दोरजी (तिब्बती व्यापारी) ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर सुमला, मंडी व नेलांग से गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे।
भारत.चीन युद्ध के बाद गर्तांगली से व्यापारिक आवाजाही बंद हो गई। हालांकि सेना की आवाजाही होती रही। भैरव घाटी से नेलांग तक सड़क बनने के बाद 1975 से सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया। देख.रेख के अभाव में इसकी सीढ़ियां और किनारे लगाई गई लकड़ी की सुरक्षा रेलिंग जर्जर होती चली गई। जिसका अब जीर्णाेद्धार किया गया है।