उत्तराखण्ड: कुंभकरणी निद्रा में अधिकारी, बिना मान्यता के चलते रहे स्कूल, लाखों के अनुदान देने में भी बड़ी लापरवाही
उत्तराखण्ड के विद्यालयों को अनुदान और मान्यता देने के मामले में शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा बरती गयी लापरवाहियों औ सरकारी अधिकारियों द्वारा कार्रवाही के मामले में बरती गयी उदासीनता पर महालेखाकार (लेखा परीक्षा)-कैग ने नाराजगी जताई है। लेकिन सरकारी मशीनरी का जो हाल है उससे लापरवाही के साथ बड़े भ्रष्टाचार के भी संकेत मिल रहे हैं। मानको के विपरीत विद्यालयों को शासकीय मान्यता के साथ-साथ अशासकीय स्कूलों को जिस तरह अनुदान दिया जता रहा है वह चौंकाने वाला है। हालात यह रहे कि हवालबाग, ऊखीमठ, बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, चमोली में 35 स्कूल तो बिना मान्यता के ही चलते रहे। बच्चों का भविष्य अधर में लटकाने वाले इन इन विद्यालयों को कहीं न कहीं शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों की छत्रछाया मिलती रही है।
शिक्षा विभाग में कैग ने आर्थिaक अनियमितता के मामले पकड़े तो जांच के दौरान स्कूलों को अनुदान और मान्यता देने में अधिकारियों की लापरवाही के भी कई मामले सामने आए। वर्ष 2011 से अब की आडिट आपत्तियों पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जो उदासीन रवैया अपनाया उस पर महालेखाकार (लेखा परीक्षा)-कैग ने नाराजगी जताई है। बेसिक, माध्यमिक और समग्र शिक्षा अभियान की जब अनियमितताएं सामने आयी तो पौड़ी, नैनीताल और चमोली ही नहीं राज्य के कई जिलों मानकों की अनदेखी कर स्कूलों को मान्यता देने के मामले भी सामने आ गये। लेकिन अधिकारियों ने मामलों की जांच कर कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठायी। देहरादून, ऊधमसिंहनगर, पौड़ी, चमोली, टिहरी, हरिद्वार, रुद्रप्रयाग और बागेश्वर में बुनियादी सुविधाओं के मानक पूरे न करने वाले अशासकीय स्कूलों को भी अनुदान दिया गया। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने जियोलॉजिकल सर्वे कराए बिना और निर्माण कार्य का एम.ओ.यू. कराए बिना ही एक कार्यदायी संस्था को 99.41 लाख रुपये जारी कर दिए।
बीते वर्ष दिसंबर में जब महालेखाकार ने शिक्षा सचिव को नाराजगीभरा पत्र भेजा तो तब कहीं जाकर अर शिक्षा विभाग में कुछ हलचल हुई है। मुख्यालय द्वारा अब परियोजना अधिकारियों से वस्तुस्थिति की रिपोर्ट मांगी जा रही है। इसके बावजूद भी लापरवाही और अनियमितता बरतने वाले अधिकारियों के विरूद्ध कार्रवाई होगी, इसमें भी शंका बनी हुई है।